अक्षय गीत ....
मैं हार कहूँ या जीत कहूँ ,या टूटे मन की प्रीत कहूँ
तुम ही बताओ कैसे प्रिय ,मैं कोई अक्षय गीत कहूँ
मैं पग पग आगे बढ़ता हूँ
कुछ भी कहने से डरता हूँ
पीर हृदय की कह न सकूं
बन दीप शलभ मैं जलता हूँ
शशांक का विरह गीत कहूँ,या रैन की निर्दयी रीत कहूँ
तुम ही बताओ कैसे प्रिय , मैं कोई अक्षय गीत कहूँ
अतृप्त तृषा है. घूंघट में
अधरों की हाला प्यासी है
स्वप्न नीड़ पर नयनों के
पी बिन घोर उदासी है
देह की अतृप्त धड़कन को ,निष्ठुर पलों का संगीत कहूँ
तुम ही बताओ कैसे प्रिय , मैं कोई अक्षय गीत कहूँ
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
आदरणीया प्रतिभा जी प्रस्तुति के भावों को आत्मीय प्रशंसा से शोभित करने का हार्दिक आभार।
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी प्रस्तुति को अमूल्य समय देकर उसे और भी आकर्षित रूप देने का हार्दिक आभार। आपके संशोधन शिरोधार्य हैं। हार्दिक आभार।
बहुत प्यारा गीत.. वाह ..हार्दिक बधाई आपको आदरणीय सुशील जी
आदरणीय सुशील सरना सर, इतना प्यारा गीत है कि ख़ुद को रोक नहीं पाया. बस अपने गुनगुनाने के लिए कुछ संशोधन किये है-
मैं हार कहूँ या जीत कहूँ ,या टूटे मन की प्रीत कहूँ
स्वयं बताओ कैसे प्रिये,मैं कोई अक्षय गीत कहूँ
मैं पग पग आगे बढ़ता हूँ
कुछ भी कहने से डरता हूँ
मैं पीर हृदय की कह न सका
बन दीप शलभ मैं जलता हूँ
चन्द्र-विरह का गीत कहूँ या.... रैन की निर्दयी रीत कहूँ
स्वयं बताओ कैसे प्रिये, मैं कोई अक्षय गीत कहूँ
अतृप्त तृषा है घूंघट में
अधरों की हाला प्यासी है
इस स्वप्न नीड़ पर नयनों के
प्रियतम बिन घोर उदासी है
संतप्त हृदय की धड़कन को ,निष्ठुर पल का संगीत कहूँ
स्वयं बताओ कैसे प्रिये, मैं कोई अक्षय गीत कहूँ
इस प्रस्तुति पर दिल से ढेर सारी बधाईयाँ दे रहा हूँ. सादर
आदरणीय आशीष यादवजी प्रस्तुति के भावों को आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार।
आदरणीया कल्पना भट्ट जी प्रस्तुति के भावों को आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार।
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