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मुसाफ़िर थोड़े हूँ, मैं रास्ता हूँ (ग़ज़ल)

1222 1222 122

विरह की ठंड से जब काँपता हूँ।
तेरी यादों की चादर ओढ़ता हूँ।

पहुंचना ही नहीं मुझको कहीं पर
मुसाफ़िर थोड़े हूँ, मैं रास्ता हूँ।

न जाने कौन मुझको मिल गया है
कई दिन से मैं ख़ुद से लापता हूँ

बस इक उम्मीद का आलम है ये, मैं
हर आहट पर उचक कर देखता हूँ।

हुआ है ख़ाक कब का जिस्म मेरा
मैं अब तक उसमें दिल को ढूंढता हूँ।

उफनता है तेरी यादों का दरिया
मैं रफ़्ता-रफ़्ता उसमें डूबता हूँ।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by नाथ सोनांचली on December 27, 2016 at 8:46pm
हुआ है ख़ाक कब का जिस्म मेरा
मैं अब तक उसमें दिल को ढूंढता हूँ।

वाह वाह वाह, आदरणीय जयनित कुमार मेहता जी, अच्छी गजल हुयी है, दाद हाजिर हैं।
Comment by जयनित कुमार मेहता on December 27, 2016 at 8:43pm

आप सभी आदरणीय सदस्यों के प्रति आत्मीय आभार प्रकट करता हूँ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 25, 2016 at 3:31pm
वाह बहुत ही उम्दा
Comment by नाथ सोनांचली on December 13, 2016 at 1:43am
आदरणीय जयनित कुमार मेहता जी सादर अभिवादन, बहुत बेहतरीन गजल कही आपने, शैर दर शैर दाद के साथ बधाई कबूल फरमाएँ

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 8, 2016 at 11:49pm

आदरणीय जयनित जी, बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by Sushil Sarna on December 8, 2016 at 6:19pm

विरह की ठंड से जब काँपता हूँ।
तेरी यादों की चादर ओढ़ता हूँ।

पहुंचना ही नहीं मुझको कहीं पर
मुसाफ़िर थोड़े हूँ, मैं रास्ता हूँ।

वाह बहुत सुंदर ग़ज़ल कही है आदरणीय जयनित कुमार जी। हार्दिक बधाई।

Comment by Shyam Narain Verma on December 8, 2016 at 2:58pm
बहुत खूब , हार्दिक बधाई ।
Comment by Samar kabeer on December 8, 2016 at 2:28pm
जनाब जयनित कुमार मेहता जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल है, दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।

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