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अल्लाह जानता है (लघुकथा)/शेख़ शहज़ाद उस्मानी

अस्पताल में आई. सी. यू. में भर्ती बेगम साहिबा को अपने जीवन के अंतिम पलों का अहसास होने लगा था । लेकिन मज़ाकिया स्वभाव के ज़िंदा दिल मिर्ज़ा साहब उनका हौसला बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे।
"अब तो जा रहीं हूँ जनाब, अपना ख़्याल रखियेगा, ऐसे ही ख़ुशमिज़ाज बने रहियेगा!" बेगम ने मिर्ज़ा जी की हथेली थामते हुए कहा।
"पगली, ये भी कोई मज़ाक का वक़्त है, लोग 'करवा चौथ' मना रहे हैं आज और तू जाने की बात सोच रही है, ऐं!" मिर्ज़ा जी ने उनके माथे पर बोसा देते हुए कहा।
"मैं कहती थी न कि मैं तुम्हारे ख़ानदान का 'सदा सुहाग' मरने वालों का रेकॉर्ड तोड़ूंगी! सदा सुहागन ही मरूंगी!" आँखों को नम करते हुए बेगम ने कहा।
तभी आई. सी. यू. में अफ़रा-तफ़री मच गई। शॉर्ट-सर्किट से भड़की आग बुझाने की कोशिशें की जाने लगीं। कुछ शवों के साथ ही बेगम और मिर्ज़ा साहब के शव भी उनके परिजन के समक्ष रखे हुए थे। परिजन में से किसी ने कहा- "उसके भेद निराले, वो ही जाने, अल्लाह जाने!"
किसी रिश्तेदार ने कहा-"जहां चाह, वहां राह!"

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 21, 2016 at 5:13pm
रचना पर समय देकर प्रोत्साहित करने के लिए तहे दिल से बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीय विजय निकोरे जी।
Comment by vijay nikore on October 24, 2016 at 3:20pm

इस सुन्दर मार्मिक लघुकथा के लिए बधाई।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 19, 2016 at 11:57pm
मेरी इस ब्लोग पोस्ट/लघुकथा पर समय देकर अपने विचार साझा करते हुए रचना के अनुमोदन व स्नेहिल हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब डॉ. विजय शंकर जी, मोहतरम जनाब शिज्जु 'शकूर' साहब, जनाब हरिकिशन ओझा जी व आदरणीय सुशील सरना जी।
Comment by Sushil Sarna on October 19, 2016 at 6:54pm
जनाब उस्मानी साहिब बहुत ही सुंदर और मार्मिक लघु कथा का प्रस्तुतिकरण हुआ है। हार्दिक बधाई सर।
Comment by harikishan ojha on October 19, 2016 at 12:58pm

बहुत सुन्दर कथा, बधाई स्वीकार करे आ. शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 19, 2016 at 10:44am

जनाब उस्मानी साहब हृदयस्पर्शी लघुकथा का सृजन किया है आपने बधाई आपको

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 19, 2016 at 9:27am
कहानी कहाँ से कहाँ मुड़ जाती है अचानक , बस यही एक बात है जो किसी को पता नहीं होती है कि अगला क्षण क्या ला रहा है। और यही न जानना ही जिंदगी है।
बहुत ही खूबसूरत ( मार्मिक भी ) कहानी। बधाई , आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी , सादर।

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