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ग़ज़ल - निकले तमाम हाथ तिरंगे लिए हुए

(बलोचिस्तान के ताज़ा हालात पर )

2212 1 21 12 212 12
कुछ मुद्दतो के बाद सही फैसले हुए ।
निकले तमाम हाथ तिरंगे लिए हुए ।।

मत पूछिए गुनाह किसी के हिजाब का ।
देखा कसूरवार के शिकवे गिले हुए ।।

हालात पराये है किसी के दयार में ।
है वक्त बेहिसाब बड़े हौसले हुए ।।

तकसीम कर रहा था हमारा मकान जो।
शायद उसी के घर में कई जलजले हुए ।।

पत्थर न फेंकिए है शहीदों का कारवां ।
कैसे हिमाकतों से लगे सिलसिले हुए ।।

कातिल तेरा कलाम मुकम्मल कहां रहा ।
नाकामियों के नाम तेरे पैतरे हुए ।।

तुझको तेरी जुबान में देना जबाब था ।
तेरी अदावतों से खड़े फ़लसफ़े हुए ।।

हिन्दोस्ताँ का अम्न मिटाने की हसरतें ।
हो कर गयीं हैं दफ़्न यहां मकबरे हुए ।।

बूढा फ़कीर तान के सीना खड़ा मिला ।
टूटा तेरा वजूद बहुत फासले हुए ।।

-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक एवम् अप्रकाशित ।

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Comment

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Comment by Naveen Mani Tripathi on September 1, 2016 at 9:28pm
आ0 आशीष सिंह ठाकुर अकेला जी सादर आभार ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on September 1, 2016 at 9:27pm
आ0 सुरेश कुमार कल्याण जी आभार ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on September 1, 2016 at 9:26pm
आ0 बृजेश जी आभार
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 1, 2016 at 12:29pm
बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी , बधाई स्वीकार करें ।
Comment by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on August 31, 2016 at 3:32pm

बहुत खूब त्रिपाठी जी !!!

Comment by Naveen Mani Tripathi on August 29, 2016 at 9:19am
आ0 कबीर सर आपकी सलाह अत्यंत महत्वपूर्ण है । ग़ज़ल तक आने के लिए तहे दिल से शुक्रिया सर ।
Comment by Samar kabeer on August 28, 2016 at 2:56pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
तीसरे शैर का ऊला मिसरा यूँ तो बह्र में है लेकिन इसे इस तरह कर लें तो रवानी में आ जायेगा:-
"हालात हैं पराये किसी के दयार में"
Comment by Naveen Mani Tripathi on August 27, 2016 at 5:49pm
आ0 बृजेश जी सादर आभार ।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 27, 2016 at 1:53pm

क्या कहने क्या कहने बहुत ही शानदार ग़ज़ल हार्दिक बधाई 

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