For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - हम भी कुछ पत्थर लेते हैं ( गिरिराज भंडारी )

22  22  22  22  22  22  22  22 -- बहरे मीर

छोटी मोटी बातों में वो राय शुमारी कर लेते हैं

और फैसले बड़े हुये तो ख़ुद मुख़्तारी सर लेते हैं

 

वहाँ ज़मीरों की सच्चाई हम किसको समझाने जाते

दिल पे पत्थर रख के यारों रोज़ ज़रा सा मर लेते हैं

 

चाहे चीखें, रोयें, गायें फ़र्क नहीं उनको पड़ता, पर

जैसे बच्चा कोई डराये , वालिदैन सा डर लेते हैं

 

कल का नीला आसमान अब रंग बदल कर सुर्ख़ हुआ है

पंख नोच कर सभी पुराने, चल बारूदी पर लेते हैं

 

वैसे तो ईमान सभी के खून पसीने में है शामिल

लेकिन गंगा भ्रष्ट बही तो वो भी थोड़ा तर लेते हैं

 

कहीं कहीं सूराखें ताज़ा दिखते तो हैं आसमान में

शायद सच हो ! चल हाथों में हम भी कुछ पत्थर लेते हैं

 

उख़ड़ी सांसे काबू करने जिस जा रुकती है पगड़ंडी

वहीं कहीं वीरान ज़मीं पे आ चल अपना घर लेते हैं

***********************************************
मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 715

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 26, 2016 at 12:34pm

आदरनीया राहिला जी , गज़ल पर उपस्थिति , और सराहना के लिये आपका आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 26, 2016 at 12:33pm

आदरणीय मनन भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 26, 2016 at 11:09am
बेहतरीन प्रस्तुति , बधाई , आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , सादर।
Comment by pratibha pande on August 26, 2016 at 10:41am

कहीं कहीं सूराखें ताज़ा दिखते तो हैं आसमान में

शायद सच हो ! चल हाथों में हम भी कुछ पत्थर लेते हैं.... आपकी  रचनाओं के भाव बहुत गहरे होते हैं  आदरणीय  .. बधाई स्वीकार करें इस रचना पर ...सादर 

Comment by Rahila on August 25, 2016 at 10:48pm
"छोटी मोटी बातों में वो राय शुमारी कर लेते हैं
और फैसले बड़े हुये तो ख़ुद मुख़्तारी सर लेते हैं"
जैसे ही ग़ज़ल का पहला शेर पढ़ा यूँ लगा जैसे किसी घर के मुखिया की बात हो रही हो।कहने को तो पूरी ग़ज़ल ही शानदार बनी है।बहुत बधाई आदरणीय सर जी!सादर
Comment by Manan Kumar singh on August 25, 2016 at 9:03pm
आदरणीय गिरिराज भाई,एक अच्छी गजल के लिए दिली बधाइयाँ कबूल फरमायें।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 25, 2016 at 7:53pm

आदरनीय समर भाई , सुखन नवाज़ी और दादो तहसीन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ।

Comment by Samar kabeer on August 25, 2016 at 6:34pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है, शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
11 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
11 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
11 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
12 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
12 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
17 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
20 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service