For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अब भी कुछ संभावनाएँ शेष हैं (ग़ज़ल)

2122 2122 212

जानता हूँ आपदाएँ शेष हैं।
क्यों डरूँ?जब तक दुआएँ शेष हैं।

जन्म लेते ही रहेंगे राम-कृष्ण,
जब तलक धरती पे माँएँ शेष हैं।

कोशिशें तो आप सारी कर चुके,
अब तो केवल प्रार्थनाएँ शेष हैं।

सूर्य ढलने को अभी कुछ वक़्त है,
अब भी कुछ संभावनाएँ शेष हैं।

बोलिये! इस दौर में कैसे जिये?
जिसके दिल में भावनाएँ शेष हैं।

मंदिरों से देवता ग़ायब हुए,
मूर्तियों में आस्थाएँ शेष हैं।

बस्तियाँ तो बाढ़ में गुम हो गयीं
हाँ! मगर, परियोजनाएँ शेष हैं।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 631

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 18, 2016 at 4:24pm

बोलिये, इस दौर में..  इस शेर के मूल विन्यास को यदि बहुवचन कर दिया जाय तो यह वाकई बहुआयामी शेर हो सकता है. भाई जयनित अच्छी ग़ज़ल हुई है. कई शेर अच्छे बन पड़े हैं और आपके दौर और माहौल का प्रतिनिधि हैं. यह क़ाबिले-ग़ौर बात है.

शुभेच्छाएँ 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 17, 2016 at 9:39pm

badhiaa prasytuti , vaa---h

Comment by जयनित कुमार मेहता on August 17, 2016 at 6:33pm
आदरणीया कल्पना जी, हार्दिक धन्यवाद आपको।
Comment by जयनित कुमार मेहता on August 17, 2016 at 6:07pm
आदरणीय धर्मेन्द्र जी, हार्दिक धन्यवाद आपको।
Comment by जयनित कुमार मेहता on August 17, 2016 at 6:06pm
आदरणीय शेख जी, आपके उद्गारों के प्रति हार्दिक आभार प्रकट करता हूँ।
Comment by जयनित कुमार मेहता on August 17, 2016 at 6:04pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, आपकी सराहना पाकर अत्यधिक प्रसन्नता हुई। बहुत बहुत आभारी हूँ आपका। सादर!
Comment by Samar kabeer on August 17, 2016 at 3:36pm
जनाब जयनित कुमार मेहता जी आदाब,बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई है, हर शैर क़ाबिल-ए-दाद है, ढेरों मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
'सूर्य ढलने को अभी कुछ वक्त है'इस मिसरे में "को"की जगह "में" करने से शैर और सुंदर हो सकता है, देखियेगा ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 17, 2016 at 9:13am
बहुत खूब आदरणीय जयनित जी । हार्दिक बधाई ।
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 16, 2016 at 10:17pm

बहुत ख़ूब आदरणीय जयनित जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है, दाद कुबूल कीजिए।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 16, 2016 at 6:02pm
अब रहा क्या शेष है?? ग़ज़ल बन पड़ी विशेष है । खेद है, रोष है, शिक़ायत है, परामर्श है, बेहतरीन ग़ज़लकार को अब कहना क्या शेष है। बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीय जयनित कुमार मेहता जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा हुआ है। हार्दिक बधाई।"
38 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
41 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
56 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आ. रिचा जी, सादर आभार।"
58 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत टिप्पणी और अच्छे सुझाव के लिए आभार। भविष्य में प्रयास…"
58 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आ. भाई संजय जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।  अच्छे सुझाव के लिए…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति , उत्साहवर्धन और सुझाव के लिए आभार।"
1 hour ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय दयाराम जी, अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें। "
2 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय दयाराम जी, बहुत धन्यवाद"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई के लिए बेहद ममनून हूँ।"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"लोग क़ाबिज  अजीब हरक़त में वो दबाते  है   आँख    लानत में जो शऊर इक…"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, प्रोत्सयाहन के लिए हार्दिक आभार।"
4 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service