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जीत उसको मिली जो लड़ा ही नहीं
कौन सच में लड़ा ये पता ही नही
साजिशों से अँधेरा किया इस क़दर
कब्र उसकी बनी जो मरा ही नहीं
झूठ के पाँव पर मुद्दआ था खड़ा
पर्त प्याज़ी हठी, कुछ मिला ही नहीं
यूँ बदी अपना खेमा बदलती रही
अब किसी के लिये कुछ बुरा ही नहीं
इन ख़ुदाओं को देखा तो ऐसा लगा
इस जहाँ में कहीं अब ख़ुदा ही नहीं
छोड़ दी जब गली, नक्श भी मिट गये
चाहतें क्या रहें ? जब गिला ही नहीं
क्या कुबूल अब ख़ुदा भी करे सोचिये
जब किसी लब पे कोई दुआ ही नहीं
जिसने समझा मुझे उसने देखा मुझे
मुझको खोजो नहीं, मै छिपा ही नहीं
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय मदन मोहन सक्सेना भाई , गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका आभारी हूँ ॥
आदरनीया अन्नपूर्णा जी , उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभार ।
आदरनीय नादिर खान भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।
आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , हौसला अफज़ाई का बेहद शुक्रिया आपका ।
वाह सर जी वाह खूब ग़ज़ल हुई है बधाई
जीत उसको मिली जो लड़ा ही नहीं
कौन सच में लड़ा ये पता ही नही
साजिशों से अँधेरा किया इस क़दर
कब्र उसकी बनी जो मरा ही नहीं
छा गए आदरणीय गिरिराज भंडारी जी छा गए हमारे दिलो दिमाग पर छा गए .... शे'र दर शे'र दिल से दाद कबूल फरमाएं। ...._/\_
जीत उसको मिली जो लड़ा ही नहीं
कौन सच में लड़ा ये पता ही नही
साजिशों से अँधेरा किया इस क़दर
कब्र उसकी बनी जो मरा ही नहीं
बहुत शानदार ग़ज़ल शानदार भावसंयोजन हर शेर बढ़िया है आपको बहुत बधाई
क्या खूब गजल है , वाह वाह आदरणीय भण्डारी जी
साजिशों से अँधेरा किया इस क़दर
कब्र उसकी बनी जो मरा ही नहीं
झूठ के पाँव पर मुद्दआ था खड़ा
पर्त प्याज़ी हठी, कुछ मिला ही नहीं
बहुत उम्दा ग़ज़ल कही आदरणीय गिरिराज सर बहुत मुबारकबाद आपको ....
जिसने समझा मुझे उसने देखा मुझे
मुझको खोजो नहीं, मै छिपा ही नहीं ..................सच को बयां करता उम्दा शेर है। ..
अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय गिरिराज जी, दिली दाद कुबूल करें।
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