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गज़ल -अगर ग़लत है जहाँ में कोई, तो वो मैं हूँ --- गिरिराज भंडारी

1212  1122  1212  22/112

छिपा के बाहों में रक्खा था तीरगी ने मुझे

नज़र उठा के भी देखा न रोशनी ने मुझे

 

थका थका सा बदन है झुके झुके शाने

परीशाँ कर दिया इस दौरे ज़िन्दगी ने मुझे

 

गली से उनकी जो निकला तभी जहाँ का हुआ  

उसी गली में ही रक्खा था आशिक़ी ने मुझे

नज़र में रूह की सच्चाइयाँ पढ़ूँ कैसे

सिखा दिया है वही इल्म, बेबसी ने मुझें

 

रही तो चाह मेरी भी, तेरे क़रीब आता

तुझी से कर दिया है दूर खस्तगी ने मुझे

 

अगर ग़लत है जहाँ में कोई, तो वो मैं हूँ

यही वो सोच है , जो दी है बन्दगी ने मुझे

***************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

 

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 15, 2016 at 10:33am

आदरणीय शिज्जु भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 15, 2016 at 10:33am

आदरणीय मिथिलेश भाई , आपका तहे दिल से शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 15, 2016 at 10:32am

आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई आपका हृदय से आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 15, 2016 at 10:32am

आदरणीय तेज़ वीर भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 15, 2016 at 10:31am

आदरणीय बृजेश भाई , आपका तहे दिल से शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 15, 2016 at 10:30am

आदरनीय समर भाई , हौसला अफज़ाई का बेहद शुक्रिया । आपकी सलाह के अनुसार दोनो बदलाव कर रहा हूँ , आपका आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 15, 2016 at 10:29am

आदरणीय श्यामभाई , गज़ल की सराहना के लिते आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 13, 2016 at 8:33am
वाहह कमाल की ग़ज़ल है बहुत बहुत बधाई आपको

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 6, 2016 at 11:31pm

आदरणीय गिरिराज सर, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 5, 2016 at 10:59am

आ० भाई गिरिराज जी इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई l

कृपया ध्यान दे...

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