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"निजात" लघुकथा :-
"मग़रिब की नमाज़ पढ़कर मैं जब मस्जिद से निकला तो मुझे हामिद मिल गया,वो मुझे बहुत परेशान दिखाई दिया,उसके चहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थीं ।
मैं उसका दिल बहलाने की ग़रज़ से उसे साथ लेकर बाज़ार आ गया, थोड़ी देर टहलने के बाद हम एक होटल में आ गए , वहाँ हमने नाश्ता किया और चाय पी , आज भी हामिद ने अपनी परेशानियों का ज़िक्र मुझसे किया , मैंने उसे समझाया कि , तुम्हे हिम्मत से काम लेना चाहिये ,और कोशिश नहीं छोड़नी चाहिये , उसने कहा , नौकरी तो जब मिलेगी तब मिलेगी , मुझ पर इतना क़र्ज़ हो गया है कि उसका अदा करना मेरे बस में नहीं , सब अपना अपना रूपया मांगते है , कब तक बहाने करूँ ? , उसकी बात सुनकर मैं उसका मुँह देखता रहा , और करता भी क्या ?, कुछ देर हम दोनों चुप चाप बैठे रहे , फिर वो बोला , "आपके पास दस रूपये होंगे ?", मैंने हाँ में गर्दन हिला दी , और जेब से दस रूपये निकाल कर उसे दे दिये , थोड़ी देर बाद वह मुझसे इजाज़त लेकर चला गया , कहाँ ? , मुझे नहीं मालूम ।
अगले दिन सुबह मैं घर से ऑफिस के लिये निकला तो हामिद के घर से सामने भीड़ देख कर ठिठक गया , क़रीब जाने पर लोगों ने बताया कि हामिद के घर का दरवाज़ा सुबह से नहीं खुला , ख़तरनाक अंदेशे मुँह फाड़े मेरे सामने आने लगे , कुछ देर बाद पुलिस आई , दरवाज़ा तोड़ा गया , सब ने देखा कि हामिद का पूरा परिवार मौत की गहरी नींद सो गया है , मेरे दिये हुए दस रुपये से उसने अपने और अपने परिवार के लिये निजात का रास्ता पा लिया था"।

- समर कबीर
मौलिक / अप्रकाशित

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 23, 2016 at 7:04pm

आ० समर कबीर साहिब , बेहद दर्दनाक ,पुरअसर . जय हो . 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 22, 2016 at 3:19pm
बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय समर कबीर जी।

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Comment by गिरिराज भंडारी on January 21, 2016 at 9:43pm

आदरणीय समर भाई , इस मार्मिक लघुकतहा के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।  

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 21, 2016 at 9:45am
आदरणीय समर कबीर साहब, नमस्कार , आदमी जब हालात से लड़ नहीं पाता तब ...... ऐसी भी मजबूरियाँ हो जाती हैं , इस मार्मिक कथा के लिए बधाई , सादर।
Comment by Ravi Prabhakar on January 20, 2016 at 11:27pm

मार्मिक रचना आदरणीय समर कबीर जी, पर इसमें कालखंड दोष नजर आ रहा है। यदि लघुकथा में 'मैं' की जगह कोई दूसरा चरित्र/पात्र होता तो लघुकथा की गोंद में कसाव अधिक रहता क्‍योंकि अक्‍सर कहा जाता है कि लघुकथा में 'मैं' का आना उसकी तीक्ष्‍णता व प्रभाव में हल्‍कापना लाता है। सादर 


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Comment by मिथिलेश वामनकर on January 20, 2016 at 8:52pm

आदरणीय समर कबीर जी, इस प्रभावित करती मार्मिक लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई ... सादर 

Comment by TEJ VEER SINGH on January 20, 2016 at 5:00pm

हार्दिक बधाई आदरणीय समर क़बीर साहब जी!बेहतरीन और मार्मिक प्रस्तुति!

Comment by pratibha pande on January 20, 2016 at 12:09pm

आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी देश  ने गरीबी से निजात नहीं पायी हैI ,नम कर दिया है  आपकी रचना ने ,आदरणीय समर कबीर जी 

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