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मानव का मान करो ….

मानव का मान करो ….

सिर से नख तक
मैं कांप गया
ऐसा लगा जैसे
अश्रु जल से
मेरे दृग ही गीले नहीं हैं
बल्कि शरीर का रोआं रोआं
मेरे अंतर के कांपते अहसासों,
मेरी अनुभूतियों के दर पे
अपनी फरियाद से
दस्तक दे रहे थे
दस्तक एक अनहोनी की
एक नृशंस कृत्य की
एक रिश्ते की हत्या की
दस्तक उन चीखों की
जिन्हें अंधेरों ने
अपनी गहराई में
ममत्व देकर छुपा लिया
मैं असमर्थ था
अखबार का हर अक्षर
मेरी आँखों की नमी से
कांप रहा था
क्या एक पिता
जो परिवार का वट वृक्ष होता है
जो सबकी रक्षा करता है
जिसकी छाँव में
सब अपने आपको
सुरक्षित समझते हैं
क्या वही बागबाँ
अपने आँगन की मासूम कलियों की
असुरक्षा का कारण बन सकता है
क्या अपने ही संरक्षक द्वारा
तीन वर्ष की मासूम के साथ ……..
किसका कलेजा नहीं काँपेगा
ये खबर पढ़ कर
और कितना पतन होगा
इस मानव का
जो दिन प्रतिदिन
हवस का पुजारी होता जा रहा है
अपने जीवन की हर परत को
अपने कर्मों से
एक निंदनीय घृणा के रंग से
रंगता जा रहा है
इसके चलते
आज परिवार की हर कड़ी
अपने आप को असुरक्षित
मानने लगी है
पति-पत्नी ,भाई-बहन,बेटे-बेटी
कितने पावन हैं ये ईश्वरीय रिश्ते
जिस पावन स्नेह के अटूट बंधन से
ये सृष्टि बंधी है
उस पावन स्नेह की डोरी को
क्यूँ अपनी वहशत से
तार तार करते हो
रहम करो, होश में आओ
अपनी हवस को
अपना कर्म न बनाओ
कम से कम अपने अंश को तो
अपनी दरिंदगी का शिकार तो न बनाओ
इस ईश्वरीय प्रदत चोले में निहित
मानवीय कर्मों का मान करो
अरे मानव हो मानव बन के
मानव का मान करो

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on January 30, 2015 at 7:31pm

आदरणीय    जितेन्द्र पस्टारिया जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल शुक्रिया।  आभार  विलम्ब के लिए क्षमा। 

Comment by Sushil Sarna on January 30, 2015 at 7:30pm

आदरणीय    मिथिलेश वामनकरजी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल शुक्रिया।  आभार  विलम्ब के लिए क्षमा। 

Comment by Sushil Sarna on January 30, 2015 at 7:30pm

आदरणीय   Er. Ganesh Jee "Bagi" जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल शुक्रिया।  आभार  विलम्ब के लिए क्षमा। 

Comment by Sushil Sarna on January 30, 2015 at 7:29pm

आदरणीय   Dr. Vijai Shankerजी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल शुक्रिया।  आभार  विलम्ब के लिए क्षमा। 

Comment by Sushil Sarna on January 30, 2015 at 7:29pm

आदरणीय   Hari Prakash Dubey जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल शुक्रिया।  आभार  विलम्ब के लिए क्षमा। 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 29, 2015 at 12:10pm

सरना जी

संवेदना से भरी रचना i आपको बधाई  i

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 29, 2015 at 12:01pm

आ० भाई  सुशील सरना जी , सुन्दर और सन्देश देती इस रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकारें l

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 29, 2015 at 9:47am

बहुत मर्मस्पर्शी. जागृत करती प्रभावी पंक्तियाँ , नमन आदरणीय सरना जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 29, 2015 at 12:45am

आदरणीय सुशील सरना सर जी , सुन्दर और सन्देश देती रचना पर आपको हार्दिक बधाई ! सादर


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 28, 2015 at 10:02pm

आदरणीय सरना साहब, बहुत ही मार्मिक कथ्य साझा किया है आपने, क्या कही जाय, मुद्दा सोचनीय है और ईलाज के साथ साथ मर्ज बढ़ते जा रहा है. एक अच्छी और गंभीर रचना पर बहुत बहुत बधाई.

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