ग़ज़ल
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यही समाज की उलझन है क्या किया जाए
कि भाई भाई का दुश्मन है क्या किया जाए
हर एक शख़्स गरानी के दौर में देखो
ख़ुद अपने आप से बदज़न है क्या किया जाए
सभी ये कहते हैं यारो हम आशिक़ों के लिये
ये शब अज़ल ही से बैरन है क्या किया जाए
सफ़र प जाने से पहले ये सोचना है हमें
हर एक गाम प रहज़न है क्या किया जाए
जो तू नहीं है तो तेरे बग़ैर ऐ जानम
बहुत उदास ये मधुबन है क्या किया जाए
ये सोच सोच के दिल मेरा बैठा जाता है
ख़फ़ा फिर आज वो चितवन है क्या किया जाए
'समर' ख़ुशी का तसव्वुर करें तो कैसे करें
क़दम क़दम यहाँ शेवन है क्या किया जाए
"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
मुहतरम कबीर साहिब आदाब, जी बेशक, दुरुस्त फ़रमाया आपने। वज़ाहत के लिए बहुत बहुत शुक्रिया। सादर।
आदाब, आदरणीय समर कबीर साहब नमन, टंकण में कुछ भूल हुई, मेरा आशथ , मौसम सम्बंधित कुछ जैसे, कानन, अथवा, प्रेयसी इंगित बिम्ब है, तो आपकी भाषानुसार 'जोबन ( यौवन ) ! सादर
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।
जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।
//लगता है, छठे शे'र में, 'चितवन' के बजाए 'मौसम' बहतर होता! //
भाई, 'चितवन' क़ाफ़िया है, इसकी जगह 'मौसम' शब्द कैसे ले सकता है:-)))
जनाब अमीरुद्दीन 'अमीर' जी आदाब, ग़ज़ल आप बहुत ग़ौर से पढ़ते हैं,आपकी ये आदत मुझे पसंद है ।
//जो तू नहीं है तो तेरे बग़ैर ऐ जानम' में लफ़्ज़ 'ऐ जानम' पर एक बार फिर से विचार किया जा सकता है क्या?//
इस मिसरे पर सिर्फ़ इतना कहूँगा कि ये तख़ातुब ख़त में भी हो सकता है,और फ़ोन पर होने वाली गुफ़्तगू में भी, इसलिये मेरी दानिस्त में ठीक है ।
ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।
मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब, ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । मतले से मक्ते तक एक से एक शेर हुए हैं। एक और सदाबहार गजल के लिए ढेरों बधाइयाँ स्वीकारें ।
और हां.... सादर प्रणाम, आनंदातिरेक, आदरणीय क्षमा करें, औपचारिकता भूल गया था, सादर..
!
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है, मज़ा गया! ! आदरणीय लगता है, छठे शे'र में, 'चितवन' के बजाए 'मौसम' बहतर होता!
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