For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

SANDEEP KUMAR PATEL's Blog (238)

"फूल हो क्या तुम" ????

"फूल हो क्या तुम" ????

तुमसे खूबसूरत कौन होगा

क्या नाज़ुकी है

क्या तराश है

इस दुनिया मैं कोई नही

दूजा तुमसा

भँवरे तुम्हे यूँ भरमाते हैं

और तुम

इठलाने लगती हो

फूल हो क्या तुम ??

पता है

एक कोना होता है

जिस्म में

छोटा सा

जो हम सब को

सच ही बताता है

सच ही दिखाता है

रूको रूको

यूँ मत मुस्कुराओ

तुम जो सोच रही हो न !

दिल नहीं है

वो है दिमाग

जो काम नहीं करता

हाई टेक झूठ…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 16, 2013 at 12:29pm — 4 Comments

ग़ज़ल "खार दामन में रक्खे है गुलाब क्या कहिये"

 

इक ग़ज़ल पेशेखिदमत है

 

 

ये ज़माना अजल से है खराब क्या कहिये

खार दामन में रक्खे है गुलाब क्या कहिये

 

चंद खुशियाँ मिली थी इश्क में हमें लेकिन   

दर्द दिल को मिला है बेहिसाब क्या कहिये 

 

आब की जद में जब रहा वजूद कायम था

आ के बाहर खुदी मिटे हुबाब क्या कहिये

 

गर्दिशों से निकल के रौशनी में आते ही

टूट जाते हैं मेरे सारे ख्वाब क्या कहिये

 

बाद पीने के किसको होश क्या कहे न कहे

बोल…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 15, 2013 at 10:34pm — 5 Comments

गणात्मक “मनहरण घनाक्षरी “

गणात्मक “मनहरण घनाक्षरी “

(रगण जगण)x2 +रगण+लघु, (रगण जगण)x2 +रगण

(चार चरण प्रति चरण ३१ वर्ण १६,१५ पर यति)

 

आन बान शान ध्यान, में रखे उठो जवान

मान देश का घटे न, स्वाभिमान लाइए

कर्मशील धीर वीर, सत्य मार्ग में रुके न

काम क्रोध मोह त्याग, धर्म को बढाइये

भूल लोक-लाज धर्म, जो हुआ युवा अचेत

रीत प्रीत शंख फूंक, नींद से जगाइए

लाज नार की लुटे न, देवियाँ यही महान

नारियाँ पुनीत पूज्य, देश में बचाइए

 

संदीप पटेल…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 14, 2013 at 10:46pm — 1 Comment

ग़ज़ल "है ज़रा मुश्किल मगर रब राहबर मेरा भी है"

झूठ की गलियों में सच तक का सफ़र मेरा भी है

है ज़रा मुश्किल मगर रब राहबर मेरा भी है

बेबफा तुझसे बिछड़कर हाले दिल अब क्या कहें

जो उधर है हाल तेरा वो इधर मेरा भी है

मुंतज़िर होना नहीं खलता है हमको अब सनम

वक़्त का पाबंद तुझ सा मुंतजर मेरा भी है

दूध पीने की खबर पर यूँ पुजारी कह पड़े

संग में रब है मगर कुछ तो हुनर मेरा भी है

टूट कर बिखरा हुआ इक आइना इतरा रहा

शहरे बुत में हो रही हलचल असर मेरा भी…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 14, 2013 at 1:13pm — 7 Comments

ग़ज़ल "उड़ा न देना कहीं आँख से ये तू पानी"

====== ग़ज़ल========

वो दौर और था जिसमे था आबरू पानी

नहीं उबाल रहा अब के है लहू पानी

नदी में फेंक दिए हमने आज कुछ कंकर

दिखा रहा था मेरा अक्स हू-ब-हू पानी

नया है दौर हुई रस्में यहाँ भाप मगर

उड़ा न…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 13, 2013 at 3:00pm — 8 Comments

सवैया

फागुन के रंग छंदों के संग

सवैया


गोल कपोल गुलाल लगे तन सोह रही अति सुंदर चोली
केश घने घन से लगते करते अति चंचल नैन ठिठोली
रूप अनूप धरे हँसती कह कोयल सी मन मोहक बोली
रंग फुहार करे मदमस्त लगे तन मादक खेलत होली


संदीप पटेल "दीप"

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 12, 2013 at 3:30pm — 2 Comments

लिखना चाहता हूँ

लिखना चाहता हूँ



वो गाँव की अमराई

बहार आते ही जो बौराई

सरसों की अंगड़ाई

बाली बाली गदराई



पर कैसे ??

कहाँ से ले आऊँ

वो रंग भरी स्याही

स्याही…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 7, 2013 at 3:06pm — 17 Comments

ग़ज़ल "इस हुनर को देख शायर हो गया हैरान है"

=========ग़ज़ल =========



झूठ कहता बाप से माँ से हुआ अनजान है

भूल क्यूँ जाता है बेटा वो उन्ही की जान है



है दगा रग रग में जिसकी झूठ जिसकी शान है

दूर से पहचान लें वो इक सियासतदान है



मौन हर मौसम में वो रहता है गम हो या ख़ुशी

इस हुनर को देख शायर हो गया हैरान है



खूब भर लो धन घरों में याद रखना तुम मगर

आखिरी मंजिल सभी की है तो कब्रिस्तान है



हर तरफ ही लूट हत्या रेप ऐसे…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 5, 2013 at 10:42pm — 14 Comments

ग़ज़ल

===========ग़ज़ल===========



खामोश लब पलकें झुकीं हालात देखिये

इस मौन में सिमटे हुए जज्बात देखिये



हमको मिली जो इश्क की सौगात देखिए

हर सुब्ह रोशन चाँदनी है रात देखिये



इंसानियत से बढ़ के क्या मजहब हुआ कोई

फिर भी वो हमसे पूछते हैं जात देखिये



पंजा कमल हाथी हथोडा सारे हो जमा

समझा रहे हैं आपकी औकात देखिये



पल पल मे बदले रंग वो माहौल देख के

गिरगिट के जैसे हो गयी हर बात देखिए



सब “दीप” मांगे बिन मिला हमको जुगाड़…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 2, 2013 at 12:00pm — 9 Comments

ग़ज़ल

======ग़ज़ल=======

 

मौसमे गुल से अदावत सीखी

कैसे ढाना है क़यामत सीखी

 

हर कोई चोर नज़र में जिनकी

उनकी नज़रों से नजारत सीखी

 

हम गरीबों के लिए दिल दौलत   

बेच के जिसको तिजारत सीखी

 

उसको हाथी से क्या डराते हो

जिसने चींटी से बगावत सीखी

 

वक़्त से तुम तो हुए संजीदा

हमने बस “दीप” शरारत सीखी

 

संदीप पटेल “दीप”

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 23, 2013 at 11:36pm — 13 Comments

"ग़ज़ल "

"ग़ज़ल "

आज बेमौत मर रहा होगा,

जो सवालों से डर रहा होगा ।

बाग़ की झुरमुटों में हलचल है,

नव युगल प्यार कर रहा होगा ।

अपने होने लगे हैं बेगाने,

कोई तो कान भर रहा होगा ।…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 18, 2013 at 3:30pm — 46 Comments

एक प्रयोग “चौपाई-त्रिभंगी” गीत

एक प्रयोग “चौपाई-त्रिभंगी” गीत

 

दृग सरिता मुख चन्द्र चकोरी, केश मेघ तन स्वर्ण किशोरी

कैसे करूँ कल्पना कोरी, होय नहीं समता भी थोरी

 

अधरों में रस भर, लाज शर्म धर, नैन झुकाए, मुस्काती

सकुचाती काया, लगती माया, दूर खड़ी हो, इठलाती

मन आह भरे है, चाह करे है, चंचल मन अस, उकसाती

हर रात जगे हम, भर भर कर दम, चैन नहीं है, दिन राती

 

अंतर्मन की जोरा जोरी, कहूँ दशा क्या तुमसे गोरी

दृग सरिता मुख चन्द्र चकोरी, केश मेघ तन स्वर्ण…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 17, 2013 at 6:00pm — 11 Comments

"बसंत"

"बसंत"

मैंने देखा है 

आज दीवार के पीछे से 

*ढूंक रहा था 

कहीं कोई देख न ले 

उसको ऐसे नग्न 

इस बार प्रेम की 

तेज हवाएं 

उतार के ले गयीं 

उसके पीले वस्त्र 

और 

बदले में दे गयीं थी 

कुछ ताज़ा गुलाब 

जिनकी पंखुड़ी पंखुड़ी …

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 16, 2013 at 12:00pm — 12 Comments

"माँ शारदा स्तुति" बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं

सभी आदरणीय सदस्यों को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं 

"माँ शारदा स्तुति" 



दोहा-

विद्या दाती शारदे, दो विद्या का दान 

मोह लोभ का नाश हो , मिटे दंभ अभिमान 



चौपाई- 

वागीश्वरि माँ शारद प्यारी|  पूजें तुमको सब नर नारी ।।

माँ सब तुमसे वाणी पाते|  देव दनुज नर सारे ध्याते ।।

श्वेत वर्ण सम चन्द्र सुशोभित| चार भुजा मुख मंडल…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 15, 2013 at 4:00pm — 8 Comments

दोहा-रोला गीत

आदरणीय अम्बरीश सर के मार्गदर्शन से दोहा गीत को
दोहा-रोला गीत में परिवर्तित कर नए स्वरुप में प्रस्तुत कर रहा हूँ



सब ऋतुओं से है भला, मोहक परम उदंत

"आराधन रस का लिए, ये ऋतुराज बसंत"



अति जाड़े का अंत, माघ शुक्ला जब आये,

नव दुर्गा का ध्यान, करें ऋतुराज सुहाये,

मना रहे सब संत, जन्म उत्सव वागीश्वरि, …

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 13, 2013 at 8:35am — 24 Comments

ग़ज़ल"हसीन पल बहार के"

दोस्तों बहार के इस हसीन प्रथम सप्ताह पे पेशेखिदमत है इक ग़ज़ल

 

जवाँ दिलो में प्यार के, हसीन पल बहार के  

दिलों में इक खुमार के, हसीन पल बहार के  



नयी नयी हयात औ, खिलि खिली सी कायनात

हैं रौनक-ए-बज़ार के,  हसीन पल बहार के



नज़र नज़र में है खुदा, महक रही है ये फजा

हैं नूर औ निखार के, हसीन पल बहार के



खुदी से एक जंग है , दिलों में इक उमंग है

हैं मौज में शुमार के , हसीन पल बहार के



कली कली है खिल रही, नज़र नज़र से मिल…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 11, 2013 at 6:42pm — 4 Comments

इक प्रयोग "पञ्च चामर ग़ज़ल"

इक प्रयोग "पञ्च चामर ग़ज़ल"



बुरा न बोलिए उसे अगर कठिन गुजर हुआ

सिवाय वक़्त के बता न कौन हमसफ़र हुआ



तलाशते रहा जिसे रखे मिलन कि तिश्नगी

सुनी नहीं सदा अजीज यार बे-खबर हुआ



बदल नहीं सके उसे कहा सनम जिसे कभी

सनम रहा सनम बने न प्यार का असर हुआ



बढीं तमाम गर्दिशें चली हवा गुमान की

बुझा चिराग प्यार का निजाम बेअसर हुआ



गुरूर जिस्म पे कभी न कीजिये हुजूर यूँ

उसूल सुन हयात का मनुज नहीं अमर हुआ



न राह दिख रही मुझे न "दीप" मंजिलें…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 7, 2013 at 8:17pm — 13 Comments

इक प्रयोग "पञ्च चामर ग़ज़ल"



इक प्रयोग "पञ्च चामर ग़ज़ल"



झुके कभी कभी उठे नज़र बड़ी कमाल है

अदायगी ग़ज़ब कि बेनजीर बेमिसाल है



इधर उधर घुमा घुमा अजीब घूर घूर के

जबाब मांगती नज़र बड़ा गहन सवाल है



तराश नाजुकी भरी कि लब लगें गुलाब से

महक रही नफस नफस हसीं शबे विसाल है



नदी नहीं दिखे यहाँ समा रहा जिगर जहाँ

सियाह चश्म झील से गुमा हुआ गजाल है



सदैव सत्य बोलना बुरा भले रहे मगर  

जरूर आजमाइए असर भरा ख़याल है



जहर भरा हरेक हर्फ़ चख सकीं न दीमकें  

इसी…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 7, 2013 at 7:51pm — 10 Comments

"छंद त्रिभंगी "(एक प्रयास)

"छंद त्रिभंगी "

उठ नींद से गहरी , अर्जुन प्रहरी, नयना अपने, खोल ज़रा
पद साथ बढ़ा के , चाप चढ़ा के , इन्कलाब तो, बोल ज़रा
या छोड़ दिखावा, ये पहनावा, भगवा धारण, तुम कर लो
बन संत तजो सब, मौन रहो अब, मन का मारण,तुम कर लो

,,,,,,,दीप ............

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 5, 2013 at 9:42pm — 16 Comments

इक प्रयोग "दुर्मिल ग़ज़ल "

इक प्रयोग "दुर्मिल ग़ज़ल "



सपने किसके किससे कम हैं

सबके अपने अपने गम हैं



पर पीर नहीं दिखती अब तो

हर मानव पत्थर के सम हैं



अपने अफई बन के डसते

बस सोच यही अँखियाँ नम हैं



भरते दम ख्वाब सजा कल के

मन दंभ भरे सब बेदम हैं



खुद को कह वारिस संस्कृति के

फिरते कितने अब गौतम हैं …

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 5, 2013 at 4:30pm — 23 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service