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गणात्मक “मनहरण घनाक्षरी “

गणात्मक “मनहरण घनाक्षरी “
(रगण जगण)x2 +रगण+लघु, (रगण जगण)x2 +रगण
(चार चरण प्रति चरण ३१ वर्ण १६,१५ पर यति)

 

आन बान शान ध्यान, में रखे उठो जवान

मान देश का घटे न, स्वाभिमान लाइए

कर्मशील धीर वीर, सत्य मार्ग में रुके न

काम क्रोध मोह त्याग, धर्म को बढाइये

भूल लोक-लाज धर्म, जो हुआ युवा अचेत

रीत प्रीत शंख फूंक, नींद से जगाइए

लाज नार की लुटे न, देवियाँ यही महान

नारियाँ पुनीत पूज्य, देश में बचाइए

 

संदीप पटेल “दीप”

 

मौलिक एवं अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 16, 2013 at 9:19pm

अय-हय, हय-हय !!! .. ग़ज़ब-ग़ज़ब-ग़ज़ब ! ..  क्या मनहरण कवित्त प्रस्तुत किया है .. वाह-वाह !

क्या प्रवाह .. क्या संयोजन !.. बहुत-बहुत खूब, संदीप भाईजी..  शिल्प हेतु दिल से बधाई स्वीकार करें...

कहन और तथ्य को आज के हिसाब से कसिये अब ..   :-)))

एक बात : 

सूत्र तो ठीक बनाया है आपने .. लेकिन चार चरण प्रति चरण ३१ वर्ण १६,१५ पर यति   का वस्तुतः क्या अर्थ निकलता है, इसपर सोचा है, भाईजी ? 

कवित्त या घनाक्षरी के एक पद में चार चरण और ऐसे-ऐसे चार पद कहें तो पढ़ने-समझने वालों को सहुलियत भी हो.  अनावश्यक क्लिष्टता किस लिये, भाई ?

जो चरण को पद और पद को चरण कहने का घालमेल करते हैं उन्हें या ऐसी पुस्तकों को उनके हाल पर छोड़ दें न भाईजी.  यह अवश्य है कि कई पुराने विद्वान ८,८,८,७  की यति नहीं मानते थे. अ हम उन्हें हने दें न.. क्योंकि पाठ के क्रम में यही यति आपरूप बनती है. भले पद  १६,१५ इकटे क्यों न हों.

शायद हम बिगाड़ नहीं कर बैठे न ? ..  

शुभ०शुभ

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