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वो यारों का कोई किस्सा पुराना ढूँढ लेता है "ग़ज़ल"

इक ताज़ा ग़ज़ल पेशेखिदमत है आपके जानिब

 

वो यारों का कोई किस्सा पुराना ढूँढ लेता है

ग़मों में मुस्कुराने का बहाना ढूँढ लेता है

 

फकीरो पीर पैगम्बर खुदा क्या आदमी है क्या  

बुराई हर किसी में ये ज़माना ढूँढ लेता है

 

मुसलसल चोट खाता है मगर आशिक है क्या कीजे

मुहब्बत करने को मौसम सुहाना ढूँढ लेता है

 

बुरी आदत है उसकी एक का दो चार करने की

पडोसी पर नज़र रख के फ़साना ढूँढ लेता है

 

अहम् झूठा नहीं करता गिला शिकवा नहीं करता

सभी के दिल में वो अपना ठिकाना ढूँढ लेता है

 

उसे क्या देखते हो तुम हिकारत भर के आँखों में  

ये वो बच्चा है जो कूड़े में खाना ढूँढ लेता है

 

उजालों ने कभी उस दीप की कीमत नहीं जानी

जो खुद जलने अँधेरों का खजाना ढूँढ लेता है 

 

संदीप पटेल “दीप”

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Comment

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 18, 2013 at 9:32pm

आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर जी सादर प्रणाम 

ग़ज़ल को सराहने और उत्साह बढाने हेतु आपका बहुत बहुत आभार 

स्नेह और आशीष यूँ ही बनाये रखिये 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 17, 2013 at 12:07am

एक उम्दा कोशिश के लिए बधाई और शुभेच्छाएँ... .

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 10, 2013 at 10:57pm

आदरणीय संदीप भाई सादर

आपकी सराहना और हौसलाफजाई के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

सादर आभार आपका

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 10, 2013 at 10:56pm

आदरणीय मित्रवर अरुण भाई सादर

आपसे ओ बी ओ फॉर्मेट में प्रतिक्रिया पाना सुखद अनुभूति दे रहा है

ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

आपका बहुत बहुत शुक्रिया और सादर आभार

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 10, 2013 at 7:27pm

बेहतरीन अश'आर संदीप भाई.. मगर जो शे'र सबसे ज़्यादा पसंद आया..

उसे क्या देखते हो तुम हिकारत भर के आँखों में  

ये वो बच्चा है जो कूड़े में खाना ढूँढ लेता है -- वाह साब वाह.. बधाई हो..!

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 10, 2013 at 5:54pm

वो यारों का कोई किस्सा पुराना ढूँढ लेता है

ग़मों में मुस्कुराने का बहाना ढूँढ लेता है .... वाह भाई वाह बहुत जोरदार मतला हुआ है.

 

फकीरो पीर पैगम्बर खुदा क्या आदमी है क्या  

बुराई हर किसी में ये ज़माना ढूँढ लेता है............आहा भाई आह निकाल दी आपने जवाब नहीं आपका

 

मुसलसल चोट खाता है मगर आशिक है क्या कीजे

मुहब्बत करने को मौसम सुहाना ढूँढ लेता है ..... भाई दिल की बात कह दिया क्या ?

 

बुरी आदत है उसकी एक का दो चार करने की

पडोसी पर नज़र रख के फ़साना ढूँढ लेता है .... हाहाहा क्या बात कह दी भाई

 

अहम् झूठा नहीं करता गिला शिकवा नहीं करता

सभी के दिल में वो अपना ठिकाना ढूँढ लेता है ... मस्त मस्त मस्त

 

उसे क्या देखते हो तुम हिकारत भर के आँखों में  

ये वो बच्चा है जो कूड़े में खाना ढूँढ लेता है .... वाह वाह वाह भाई मज़ा आ गया

 

उजालों ने कभी उस दीप की कीमत नहीं जानी

जो खुद जलने अँधेरों का खजाना ढूँढ लेता है ... भाई जो खुद जलने मुझे लगता है जलके लिखा होगा आपने.

मित्रवर इस शानदार ग़ज़ल हेतु मेरी ओर से दिल से भर भर के ढेरों दाद ढेरों बधाई स्वीकारें.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 10, 2013 at 5:46pm

आदरणीय अशोक सर जी सादर प्रणाम

इस हौसलाफजाई के लिए आपका बहुत बहतु शुक्रिया

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये सादर आभार आपका

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 10, 2013 at 5:45pm

आदरणीया सावित्री जी सादर

इस सराहना के लिए आभार आपका

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 10, 2013 at 5:45pm

परम आदरणीय तिलक सर जी सादर प्रणाम

आपकी दाद मिलना मेरे लिए एक तोहफा है

आपकी सराहना पाना लेखन के लिए निश्चित तौर पे कैटेलिस्ट की तरह है

आपका बहुत बहुत शुक्रिया और सादर आभार

ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 10, 2013 at 5:42pm

आदरणीया मीना जी सादर

ग़ज़ल को सराहने हेतु आभार आपका

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

कृपया ध्यान दे...

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