तू अकेला है
किस किस की खातिर तू रोता रहेगा
दिल में…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on March 25, 2011 at 3:30pm —
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on March 25, 2011 at 12:00pm —
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हमनें तो ख्वाव के सहारा पे घर बनाया था
बूटा काँटों का अपनें हाथों से लगाया था…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on March 24, 2011 at 1:15pm —
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on January 11, 2011 at 11:00am —
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आखरी पन्ने - 10
(दीपक शर्मा 'कुल्लुवी')
गतांक - 10 से आगे...
दोस्तों मैं जाते हुए साल 2010 कि बिदाई और आते हुए नव वर्ष 2011 का स्वागत अपनें कुछ भजनों से करना चाहूँगा . खुदा आप सबको ढेर खुशियाँ प्रदान करे वैसे इसी सप्ताह उड़ीसा के मंदिर में घटित शर्मनाक घटना से मन अत्यंत दुखी है जिसमें एक विदेशी महिला को केवल इस बात के लिए मंदिर…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 31, 2010 at 4:00pm —
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 18, 2010 at 4:00pm —
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 16, 2010 at 12:30pm —
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गतांक - 5 से आगे
आखरी पन्ने -6
(दीपक शर्मा 'कुल्लुवी')
भुलाया न गया
लाख चाहा तेरी यादों को भुलाया न गया
आप भी लौट के आये न हमसे जाया गया
दूरियां दिल की नहीं तेरी मेरी जिद्द की…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 15, 2010 at 5:00pm —
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गतांक 4 से आगे
आखरी पन्नें-5 दीपक शर्मा कुल्लुवी
कुछ तो पल जी लेने दे
सपनों में आना छोड़कर
रह जाएंगी बाद तन्हा
यह तनहाइयाँ मेरी
इंसान अपने स्कूल कॉलिज में बिताए पल कभी नहीं भूलता वोह मस्तियाँ ,शरारतें,घूमना ,फिरना, यह वोह समय होता है जब वोह खुद को शहंशाह समझता है कई सपनें संजोता है यह वोह रंगीन पल होते हैं जिन्हें वोह उम्र भर याद करता है इससे अच्छा समय फिर ज़िन्दगी में कभी नहीं आता वोह बेफिक्री,लापरवाही फिर कहाँ नसीब…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 14, 2010 at 1:29pm —
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गतांक से आगे
आखरी पन्नें-4 दीपक शर्मा कुल्लुवी
कितना बदल गया
मेरा शहर कितना बदल गया
मेरे वास्ते अब क्या रहा
मेरा शहर कितना बदल -----
न वोह मंजिलें न वोह रास्ते
जो कभी थे मेरे… Continue
Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 10, 2010 at 3:00pm —
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 9, 2010 at 12:30pm —
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आखरी पन्नें (2) दीपक शर्मा 'कुल्लुवी '
न देख ख्वाब यह साक़ी की कोई थाम लेगा तुझको
संभले हुए दिल तेरी महफ़िल में नहीं आते.........
ज़िन्दगी में इंसान बहुत कुछ जीतता है और बहुत कुछ हार जाता है लेकिन हार कभी नहीं माननी चाहिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए कभी तो मंजिल मिलेगी मंजिल कभी न भी मिले तो कम से कम उसके करीब तो पहुँच जाओगे
कमीं रह गयी
ज़िन्दगी में तुम्हारी कमीं रह गयी
अपनीं…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 7, 2010 at 3:25pm —
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आखरी पन्नें (१) दीपक शर्मा 'कुल्लुवी '
इन आखरी पन्नों में ज़िन्दगी का दर्द है
कुछ हमनें झेला है कुछ आप बाँट लेना
मेरे क़त्ल-ओ-गम में शामिल हैं कई नाम
ज़िक्र आपका आए न बस इतनी दुआ करना
.......
आखरी पन्नें मेरी ज़िंदगी की अंतिम किताब,अंतिम रचना,आखरी पैगाम कुछ भी हो सकता है हो सकता है यह केवल एक ही पन्नें में ख़त्म हो जाए य सैंकड़ों हजारों और पन्ने इसमें और जुड़ जाएँ क्योंकि कल किसनें देखा है खुदा ने मेरे लिए भी कोई न…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 7, 2010 at 11:55am —
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आखरी पन्नें
ज़िंदगी अपनी यादों की इक खुली किताब है
समेटे हुए हैं जिसमें हम अपने आस पास का दर्द
इसको खोलने से पहले बस इतना ख्याल रखना
आपके अश्क ढल न जाएँ दर्द मेरा देखकर
आखरी पन्नें मेरी ज़िंदगी की अंतिम किताब,अंतिम रचना,आखरी पैगाम कुछ भी हो सकता है
क्योंकि कल किसनें देखा है खुदा ने मेरे लिए भी कोई न कोई दिन तो एसा निश्चित किया होगा जिसका कल कभी न आयेगा मैं एक लेखक हूँ जिसे हर रोज़ कुछ न कुछ नया लिखने की चाह रहती है ,प्यास रहती है और मैं कुछ न कुछ लिखता…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 6, 2010 at 7:35pm —
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रिश्ता-ए-गम
ग़म तो ग़म हैं ग़म का क्या ग़म आते जाते हैं
किसी को देते तन्हाई किसी को रुलाते हैं
'दीपक कुल्लुवी' पत्थर दिल है लोग यह कहते हैं
उसको तो यह ग़म भी अक्सर रास आ जाते हैं
किसने देखा उसको रोते किसने झाँका दिल में
किसने पूछा क्यों कर यह ग़म तुझको भाते हैं
कुछ तो बात होगी इस ग़म में कुछ तो होगा ज़रूर
बेवफा न होते यह साथ साथ ही आते हैं
गम से रिश्ता रखो यारो ताउम्र देंगे साथ
यह आखरी लम्हात तक रिश्ता…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 4, 2010 at 10:00am —
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नसबंदी कैम्प में आये
एक आगन्तुक को देख
डाक्टर साहब झल्लाए
उत्सुकता से चिल्लाये
और उससे पूछने लगे
भैया जहाँ तक मुझे याद है
तुम तो पिछले वर्ष भी कैम्प में आये थे
और हमसे ही अपना नसबंदी आपरेशन करवाए थे
आगन्तुक बोला डाक्टर साहब आपने ठीक फ़रमाया
मैं तो पिछले वर्ष भी आया था
और आपसे ही आपरेशन करवाया था
बदले में प्रोत्साहन राशी १५० रुपये भी पाया था
लेकिन इस बार आप प्रोत्साहन राशि काहे बढ़ाये
१५०…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on November 30, 2010 at 10:30am —
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वाह री राखी सावंत
कर दिया तूने तंग
ऐसे चिल्लाती हो जैसे
लड़ रही हो जंग
सच बतलाएं मज़ा न आया
बेशक तूने नाम कमाया
देख तिहारी नौटंकी
हुई जाए अखियाँ बंद
नारी हो कुछ शर्म करो
कुदरत के कहर से डरो
इतना चीखना चिल्लाना
एक मर्द को नामर्द बतलाना
कहाँ से इतना ज्ञान पा लिया
हम देख के रह गए दंग
खुद भड़कीले वस्त्र धारणी
उंगली उठाती दूजों पर
राखी के इन्साफ में दिखता
केवल अश्लीलता का रंग
दीपक शर्मा…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on November 19, 2010 at 3:00pm —
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छोटी सी भूल (रैगिंग)
'अमन' को आज इन्साफ मिला
हम फिर भी हैं शर्मसार
मेरे हिमाचल के बच्चों ने
ली थी उसकी जान
एक छोटी सी गलती ने
कारागार पहुँचाया
खुद भी हुए कलंकित
हिमाचल को कलंक लगाया
में लेखक हूँ ,मुझको है
अफ़सोस इस घटना पर
विनती है हर नौजवान से
ऐसे कृत्यों से डर
ऐसे कुकर्म से डर
दीपक शर्मा कुल्लुवी
०९१३६२११४८६
११-१०-२०१०.
खबर : मेरी जन्म भूमि काँगड़ा के मेडिकल कालेज टांडा(काँगड़ा)…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on November 12, 2010 at 1:15pm —
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ऐसा हो नहीं सकता
मेरी राख़ को दुनियां वालो
गंगा में ना बहाना
प्रदूषित हो चुकी बहुत
और उसे ना बढ़ाना
करम अगर होंगे अच्छे
तो मिल जाएगी मुक्ति
गंगा जी में बहाने से ही
मुक्ति नहीं मिल सकती
यह है सब बेकार की बातें
ऐसा हो नहीं सकता
किसी के कुकर्मों का अंत
इतना सुखद नहीं हो सकता
गर ऐसा हो जाता
तो हार कोई पापी तर जाता
पाप करने से यहाँ
कोई ना घबराता
कोई ना घबरा----
दीपक शर्मा…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on October 28, 2010 at 5:30pm —
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मैं दूर पहाड़ों से आया
मैं दूर पहाड़ों से आया
जहाँ सर्द हवाएं बहती हैं
है व्यास पार्वती का संगम
जहाँ यादें मेरी बसती हैं
मेरे अपनें सभी वहीँ हैं
लेकिन मैं हूँ सबसे दूर
यह था किस्मत का लिखा
नहीं किसी का कसूर
ना जानें कब जा पाऊंगा
बापिस उन खूबसूरत फिजाओं में
कोई याद तो करता होगा
मुझको मेरे गाँव में
'दीपक शर्मा' था उस वक़्त मैं
अब हूं 'दीपक कुल्लुवी'
शक्ल-ओ-सूरत बदली,तखल्लुस बदला
लेकिन सीरत ना बदली
लेकिन…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on October 27, 2010 at 11:00am —
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