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आखरी पन्नें-5 दीपक शर्मा कुल्लुवी

गतांक 4 से आगे
आखरी पन्नें-5 दीपक शर्मा कुल्लुवी
कुछ तो पल जी लेने दे
सपनों में आना छोड़कर
रह जाएंगी बाद तन्हा
यह तनहाइयाँ मेरी
इंसान अपने स्कूल कॉलिज में बिताए पल कभी नहीं भूलता वोह मस्तियाँ ,शरारतें,घूमना ,फिरना, यह वोह समय होता है जब वोह खुद को शहंशाह समझता है कई सपनें संजोता है यह वोह रंगीन पल होते हैं जिन्हें वोह उम्र भर याद करता है इससे अच्छा समय फिर ज़िन्दगी में कभी नहीं आता वोह बेफिक्री,लापरवाही फिर कहाँ नसीब होती है जो इस समय होती है
कुछ न कुछ

मेरे शे-रों में कुछ न कुछ तो ज़रूर रहा होगा
वर्ना अश्क आपके,इस कदर न छलकते
अंधेरों में ही सही,चिराग जलाने चले आते हो
वर्ना मेरी मजार के आसपास,इस कदर बेबस न भटकते
मायूस होकर ना देखते,बंद फाइलों में तस्वीरें मेरी
मेरी यादों के लिए,इस कदर ना तरसते
यह तो 'दीपक कुल्लुवी' का वादा था याद रखेंगे
आप तो बेवफा थे,इस कदर बेवजह ना बदलते

दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'
मुझे आज तक अपनें सब दोस्त याद हैं अक्सर उन्हीं याद करते हैं कभी उन्हें भुला नहीं सकता मेरी ज़िन्दगी में खुदा ने मुझे बहुत अच्छे अच्छे दोस्त दिए जिनमें कुछ एक नाम हैं विनोद चावला,रमेश,अनिल रैल्ली,पूर्ण बोद्ध,पवित्र सिहं विर्क, अलका, रितु,हेमंत साहनी,सुभाष शर्मा,नीरज,मनमोहन नेगी,कल्पना,पूनम,कुलदीप,सरोज,नीरू ,हजारों नाम हैं आगे ज़िक्र करता रहूँगा इन सबसे मैनें जहाँ भरपूर प्यार मुहब्बत पाई वहां बहुत कुछ सीखा भी मेरी लेखनी इन सबकी ही देन है यह सब मेरी जन्दगी में न आते तो शयद कुछ लिख ही न पाता सभी का मैं दिल से शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ सबका एहसान मंद हूँ
कहाँ तक

कहाँ तक संजोउं मैं सपने सुहाने
कहाँ तक बचाऊ मैं सपने सुहाने
अपना ही नाम तक भूलने लगा हूँ
कहाँ तक छुपाऊं मैं सपने सुहाने
क्या हूँ मैं किसको पता
क्या था मैं किसको पता
सबको दिखेगा बस मेरा आज
दिखाऊं किसे ज़ख्म दिल के पुराने
कल तक तो 'दीपक' था 'कुल्लुवी' है आज
किसे क्या पता ,है आवाद या बर्वाद
कोई भूल चुका होगा किसी को याद होगा
किसे क्या पता अब तो हम हैं दीवाने
दीपक कुल्लुवी
09136211486
क्रमशा:

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 19, 2010 at 12:29pm

बहुत बढ़िया , यादों के झरोखे से झलकती यह रचना मनमोहक है |

कृपया ध्यान दे...

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