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वाह री राखी सावंत
कर दिया तूने तंग
ऐसे चिल्लाती हो जैसे
लड़ रही हो जंग
सच बतलाएं मज़ा न आया
बेशक तूने नाम कमाया
देख तिहारी नौटंकी
हुई जाए अखियाँ बंद
नारी हो कुछ शर्म करो
कुदरत के कहर से डरो
इतना चीखना चिल्लाना
एक मर्द को नामर्द बतलाना
कहाँ से इतना ज्ञान पा लिया
हम देख के रह गए दंग
खुद भड़कीले वस्त्र धारणी
उंगली उठाती दूजों पर
राखी के इन्साफ में दिखता
केवल अश्लीलता का रंग

दीपक शर्मा कुल्लुवी
०९१३६२११४८६
१९-११-२०१०

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 20, 2010 at 9:33am
बहुत ही सुंदर कविता लिखे है दीपक साहब, राखी के अश्लीलता को आप ने अच्छी तरह से लानत मलानत की है |
आप की कविता पर कमेंट्स के लिये मैने भी एक कुंडली अभी अभी लिखी है जो यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ, कृपया आशीर्वाद देंगे......

हज को बिल्ली कर चली,नव सौ चूहा साफ़,
ऐसा ही हमको लगे, राखी का इन्साफ,
राखी का इन्साफ स्वयंबर किया बदनाम,
गुठली भी खा जाये कैसे बचे अब आम,
कालिख की है कोठरी बात कहूँ मैं साफ़ ,
मुह काला कीजिये देख राखी का इन्साफ,

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