किया जो प्यार का वादा न जाने क्यों भुलाती है
अँधेरी रात में हमको नहीं राहें दिखाती है
छलक जाती न जाने क्यों कभी भी आँख ये मेरी
न जाती याद उसकी है मुझे हर पल रूलाती है
उसे दिल में बसाने की लिये चाहत मरेंगे क्या
बने अंजान वो यारो हमें पागल बताती है
मिले जब वो कभी हमसे बताये हाल दिल का क्या
न रहता होश अपना जब हमें नगमे सुनाती है l
शिकायत हम करें किससे बता दो जिन्दगी मुझको
बसी जो दिल में मेरे क्यों वही हमको सताती है
अखंड…
Added by Akhand Gahmari on October 21, 2014 at 8:53pm — No Comments
हाय राम क्या करे जी कोई ...जवाब चाहिए
उत्तर जहां से अब तो कुछ लाजवाब चाहिए
लौकी आलू भिण्डी टमाटर लड़ते हैं बाजार में
इस दिवाली हमको ही इक खिताब चाहिए
पटाखों फुलझड़ी को देख बच्चे मचल रहे हैं
टूटी आस लिए वो पूछें कितने बेताब चाहिए
मजबूरियों में निःशब्द बाप आंसू बहा रहे हैं
फीकी जेब तेज हाट में माथों पर आब चाहिए
लड्डू बर्फ़ी रसगुल्ला हमसे यूँ अब दूर हुए
मिश्री घोलें रिश्तों में मिठास बेहिसाब…
ContinueAdded by anand murthy on October 21, 2014 at 5:00pm — No Comments
किसी की सरफ़रोशी चीखती है
वतन की आज मिट्टी चीखती है
हक़ीक़त से तो मैं नज़रें चुरा लूँ
मगर ख़्वाबों में दिल्ली चीखती है
हुकूमत कब तलक ग़ाफिल रहेगी
कोई गुमनाम बस्ती चीखती है
भुला पाती नहीं लख्ते-जिगर को
कि रातों में भी अम्मी चीखती है
बहारों ने चमन लूटा है ऐसे
मेरे आंगन में तितली चीखती है
गरीबी आज भी भूखी ही सोई
मेरी थाली में रोटी चीखती है
महज़ अल्फ़ाज़ मत समझो इन्हें तुम
हरेक पन्ने पे स्याही चीखती…
Added by Samir Parimal on October 21, 2014 at 4:30pm — 13 Comments
वह रात भर छटपटाता रहता, रटी रटाई बातोँ के सिवाय वह कुछ और बोल भी तो नही सकता था । लेकिन पिंजरें के अन्दर ही सही उसे कभी भी भूखा नही रहना पडा था । उसने सोचा, मेरा मालिक भीखू जैसे भो हो, पर मेरा पसंदीदा आहार जुटाता है, और हर तरह से अब तक मेरी हिफाजत करता है । बन्धन मे पडना मेरा प्रारब्ध है और बिकना मेरी क्रूर नियति है । फिर भी मै अब तक जिंदा हूँ, कितना प्यार करता है भीखू मुझे ! वो गरीब है पर फिर भी उसका व्यवहार उत्तम रहा है । भीखू ने सदा मुझे दोस्त समझा है, इसी कारण मेरे दिल मे भी उसके लिए…
ContinueAdded by Bipul Sijapati on October 21, 2014 at 11:00am — 7 Comments
दीप जले हैं जब-जब
छँट गये अँधेरे।
अवसर की चौखट पर
खुशियाँ सदा मनाएँ
बुझी हुई आशाओं के
नवदीप जलाएँ
हाथ धरे बैठे
ढहते हैं स्वर्ण घरौंदे
सौरभ के पदचिह्नों पर
जीवन महकाएँ
क़दम बढ़े हैं जब-जब
छँट गये अँधेरे।
कलघोषों के बीच
आहुति देते जाएँ
यज्ञ रहे प्रज्ज्वलित
सिद्ध हों सभी ॠचाएँ
पथभ्रष्टों की प्रगति के
प्रतिमान छलावे
कर्मक्षेत्र में जगती रहतीं
सभी…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on October 21, 2014 at 10:47am — 2 Comments
१२१२ ११२२ १२१२ २२
सहज लगाव हृदय में हिलोड़ जाते हैं ।
अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं ॥
किसी उदास की पीड़ा सजल हृदय में ले
निशा निराश हुई, चुप वृथा पड़ी-सी थी
तथा निग़ाह कहीं दूर व्योम में उलझी…
Added by Saurabh Pandey on October 21, 2014 at 5:30am — 20 Comments
Added by किशन कुमार "आजाद" on October 20, 2014 at 10:50pm — 3 Comments
“तू लड़की होकर भी हमेशा गली में लड़कों के साथ खेलती रहती है, ये बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता |“
पड़ोसी अंकल ने रितिका को समझाते हुए कहा |
“हाँ अंकल जी ! मगर ये तो अच्छा लगता होगा न कि लड़के हमें देखकर छींटाकशी करें, और हमें चुप रहने और घर में रहने की नसीहत दी जाए ?”
अंकल जी चुपचाप बेटे को लेकर घर में चले गए |
.
सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by somesh kumar on October 20, 2014 at 10:30pm — 1 Comment
ख्वाब हरगिज न पूरे हमारे हुये I
हम तो बाजी मुहब्बत की हारे हुये II
दोस्त हमको भुलावा ही देते रहे
वक्त जब आ पड़ा तो किनारे हुये I
माफ़ जबसे हमारी खता हर हुई
हमने समझा कि गर्दिश में तार हुये I
उनका नजरे चुराने का ढब देखिये
कैसे-कैसे गजब के इशारे हुये I
इश्क नजरो में जब से नुमायाँ हुआ
कितने दिलकश जहाँ के नज़ारे हुये I
हुस्न अपनी खनक में…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 20, 2014 at 6:00pm — 4 Comments
वो लगातार स्टैंड पे टंगी बोतल से गिरती दवा की एक एक बूँद को गौर से देख रहा था ! नर्स ने काफी देर उसे ऐसा करते देखा तो उसके पास आकर पूछ बैठी !
"इन बूंदों को गिन रहे हैं क्या आप ? लगता है पर बूँद प्राइस निकालेंगे !"
"नहीं ,माँ के शरीर में जा रही है इसलिये दुआ मिला रहा हूँ !"
( मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by Neeles Sharma on October 20, 2014 at 6:00pm — 4 Comments
“माँ वो कोठी वाली मैडम हर दीवाली पर लक्ष्मी जी के पैर बनाती हैं तू क्यूँ नहीं बनाती? इसी लिए हमारे घर लक्ष्मी नहीं आती क्या?”रिक्कू ने बड़े भोलेपन से पूछा|
”बेटा, हमारे घर भी एक बार लक्ष्मी आई थी पर तेरे बापू ने दारु के लिए उसे बेच दिया अब वो कभी नहीं आएगी”|
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(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by rajesh kumari on October 20, 2014 at 3:30pm — 12 Comments
हमेशा दौड़ में पिछड़ा रहा हूँ
मगर चिन्तन में मैं कछुआ रहा हूँ
खिलौना मैं नहीं जो खेल लोगे
हूँ इंसा मैं भी ये समझा रहा हूँ
सितम ढाओं, गुमां कर लो जी भर के
ये मत कहना कि मैं पछता रहा हूँ
मैं मुफ़लिस ही सही कोई नहीं गम
हमेशा दिल से ही सच्चा रहा हूँ
तेरी तस्वीर पलकों में सजा के
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ
मौलिक व् अप्रकाशित
Added by MAHIMA SHREE on October 20, 2014 at 10:00am — 5 Comments
जाने किस तानेबाने मे उलझी, मैं अपनी खिड़की पे खड़ी थी।
इतने में मैंने देखा - एक सदाबहार का पौधा जो कि खिड़की की चौखट और दीवार की संद से निकल कर लहलहा रहा था ।
उसके हरे चिकने पत्ते प्याजी रंग के फूल मुझे अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे, लेकिन दीवार में बरसात का पानी मरेगा , ये सोच कर मैंने उखाड़ने के लिये हाथ बढ़ाया ही था, कि नीचे गली से आवाज आई-
"पौधे ले लो पौधे"
मैंने देखा-तो ठेले पर देसी गुलाब, इंगलिश गुलाब ,बोगन बेलिया ,एरोकेरिया पाम की विभिन्न किस्में रखी थी।
ये इंगलिश…
Added by Dr.sandhya tiwari on October 19, 2014 at 10:30pm — 8 Comments
कविता
कविता हृदय की सहचरी है
भावों से भरी हुई रस भरी है।
जिंदा दिलों की रवानगी है
कविता कवि की वानगी है ।
कविता अपने दिल से उदार है
कवि के भावों की चित्रकार है ।
समेटती कई रहस्यों को अपने में
संवेदनावों पर करती प्रहार है ।
उगती है कलम के साथ कागज पर
पहुँच इसकी हृदय के उस पार है ।
कविता माला है भावों और शब्दों की
शुष्क मन को भी करती तार-तार है…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on October 19, 2014 at 10:00pm — 5 Comments
उत्सव लाये हैं ख़ुशी,खूब सजे बाजार
साथ मिठाई के सजे,भिन्न भिन्न उपहार |
रंग रूप लेकर नए ,चमक उठे सब गेह
उत्सव हैं सब गर्व के ,बाँटे खुशियाँ नेह |
उत्सव धनतेरस हुआ,त्रयोदशी के वार
नूतन बर्तन हैं सजे ,और स्वर्ण बाजार |
छोटी दीवाली जले,यम दीपक हर द्वार
मुक्त हुईं कन्या सभी,नरकासुर को मार |
उत्सव दीपों का सभी,मनाते संग प्यार
सबको बाँटे रोशनी ,दीवाली त्यौहार |
अन्नकूट उत्सव रचा, दीवाली पश्चात
भोग…
Added by Sarita Bhatia on October 19, 2014 at 8:00pm — 7 Comments
मैं गीतों को भी अब ग़ज़ल लिख रहा हूँ
हरेक फूल को मैं कँवल लिख रहा हूँ
कभी आज पर ही यकीं था मुझे भी
मगर आज को अब मैं कल लिख रहा हूँ
बहुत कीमती हैं ये आँसू तुम्हारे
तभी आँसुओं को मैं जल लिख रहा हूँ
लिखा है बहुत ही कठिन ज़िंदगी ने
तभी आजकल मैं सरल लिख रहा हूँ
समय चल रहा है मैं तन्हा खड़ा हूँ
सदियाँ गँवाकर मैं पल लिख रहा हूँ
मैं बदला हूँ इतना कि अब हर जगह पर
तू भी तो थोड़ा बदल लिख रहा हूँ
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Dr. Rakesh Joshi on October 19, 2014 at 5:30pm — 6 Comments
Added by seemahari sharma on October 19, 2014 at 4:34pm — 11 Comments
कहाँ गए वो लोग
औरों के गम में रोने वाले
संग दालान में सोने वाले।
साँझ ढले मानस का पाठ
सुनने और सुनाने वाले ।
होती थी जब बेटी विदा
पड़ोस की चाची रोती थी
फूल खिले किसी के आँगन
मिलकर सोहर गाने वाले
पाँव में भले दरारें थी
पर निश्छल निर्दोष हंसी
शादी के महीनो पहले
ब्याह के गीत गाने वाले
पूजा हो या कार्य प्रयोजन
पूरा गाँव उमड़ता था
किसी के घर विपत्ति हो
सामूहिक रूप से लड़ता था…
Added by Neeraj Neer on October 19, 2014 at 3:45pm — 8 Comments
दीपक जलाओ
मैं जीवन रंगोली-रंगोली सजा लूँ
....चलो आज मैं भी दीवाली मना लूँ
माटी बनूँ ! रूँध लो, गूँथ लो तुम
युति चाक मढ़ दो, नवल रूप दो तुम
स्वर्णिम अगन से
जले प्राण बाती-
मैं स्वप्निल सितारे लिये जगमगा लूँ
....चलो आज मैं भी दीवाली मना लूँ
ओढूँ विभा सप्तरंगी…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on October 19, 2014 at 12:00pm — 12 Comments
"अगर पी.पी.एफ कि डिटेल्स मिल जाती तो मैं अपनी सम्पति का ब्यौरा दे देती ताकि वीज़ा मिलने में आसानी रहे |” श्रीमती धनकड़ ने कहा
“आप तो वी.आर.एस.लेकर वहीं सेटल होने वाली हैं ना ?” एक साथी ने पूछ लिया
“दिमाग थोड़े खराब है ! इतनी अच्छी सरकारी नौकरी,मूंगफली फोड़नी नहीं, घुमने-फिरने जाते रहेंगे | वैसे भी वहाँ के क़ानून बहुत सख्त हैं ,अपनी तो यहीं बल्ले-बल्ले है जी |”
सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by somesh kumar on October 19, 2014 at 9:30am — 3 Comments
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