For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Dr. Rakesh Joshi
  • Male
  • Dehradun, Uttarakhand
  • India
Share on Facebook MySpace
 

Dr. Rakesh Joshi's Page

Profile Information

Gender
Male
City State
Dehradun, Uttarakhand
Native Place
Village-Gugali,Uttarakhand
Profession
Teaching

Dr. Rakesh Joshi's Blog

ग़ज़ल

जब हकीक़त सामने है क्यों फ़साने पर लिखूँ

ये है बेहतर, दर्द में डूबे ज़माने पर लिखूँ



खेत पर, खलिहान पर, मैं भूख-रोटी पर लिखूँ

बंद होते जा रहे हर कारखाने पर लिखूँ



फूल, भँवरे और तितली की कहानी छोड़कर

आदमी के हर उजड़ते आशियाने पर लिखूँ



ख़त्म होते जा रहे रिश्तों के आँसू पर लिखूँ

आदमी को रौंदकर पैसे कमाने पर लिखूँ



याद तुमको क्यों करूँ मैं, और क्यों करता रहूँ

इक कहानी अब मैं तुमको भूल जाने पर लिखूँ



जिसकी सूरत रात-दिन अब है… Continue

Posted on January 5, 2016 at 9:26pm — 12 Comments

दुष्यंत कुमार को समर्पित मेरी एक ग़ज़ल

आपकी तालीम का हर अर्थ कुछ दोहरा तो है

आकाश पर बादल नहीं पर हर तरफ कोहरा तो है

 

बादशाहों की हमेशा ज़िन्दगी महफूज़ है

लड़ने-मरने के लिए शतरंज में मोहरा तो है

 

इस महल में अब खज़ाना तो नहीं बाकी रहा

द्वार पर दरबान है, संगीन का पहरा तो है

 

शोर करना हर नदी की चाहे हो आदत सही

ये समंदर हर नदी से आज भी गहरा तो है

 

तुम क़सीदे खूब पढ़ लो पर यहाँ हर आदमी

हो न गूंगा आज लेकिन, आज भी बहरा तो…

Continue

Posted on January 4, 2016 at 10:30pm — 15 Comments

मैं गीतों को भी अब ग़ज़ल लिख रहा हूँ (डॉ. राकेश जोशी)

मैं गीतों को भी अब ग़ज़ल लिख रहा हूँ
हरेक फूल को मैं कँवल लिख रहा हूँ

कभी आज पर ही यकीं था मुझे भी
मगर आज को अब मैं कल लिख रहा हूँ

बहुत कीमती हैं ये आँसू तुम्हारे
तभी आँसुओं को मैं जल लिख रहा हूँ

लिखा है बहुत ही कठिन ज़िंदगी ने
तभी आजकल मैं सरल लिख रहा हूँ

समय चल रहा है मैं तन्हा खड़ा हूँ
सदियाँ गँवाकर मैं पल लिख रहा हूँ

मैं बदला हूँ इतना कि अब हर जगह पर
तू भी तो थोड़ा बदल लिख रहा हूँ

"मौलिक व अप्रकाशित"

Posted on October 19, 2014 at 5:30pm — 6 Comments

दो ग़ज़लें (डॉ. राकेश जोशी)

दो ग़ज़लें (डॉ. राकेश जोशी)



1

सब मिला है पर यहाँ सदभाव की बातें नहीं

गाँव का मौसम है लेकिन गाँव की बातें नहीं



आ, यहाँ पर बैठकर सुस्ता लें थोड़ी देर हम

धूप की बातें करेंगे, छाँव की बातें नहीं



इससे ज़्यादा क्या लिखें, इस दौर की नाकामियां

इस अँधेरे युग में भी बदलाव की बातें नहीं



दूर से ही ठीक था फैला समुंदर देखना

अब लहर के पास आकर नाव की बातें नहीं



बाद बरसों के मिले तो दोस्त बनकर हम मिलें

दर्द की बातें तो हों, पर घाव… Continue

Posted on October 12, 2014 at 5:27pm — 7 Comments

Comment Wall

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

  • No comments yet!
 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
14 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
19 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

दोहा सप्तक. . . . . नजरनजरें मंडी हो गईं, नजर बनी बाजार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"कौन है कसौटी पर? (लघुकथा): विकासशील देश का लोकतंत्र अपने संविधान को छाती से लगाये देश के कौने-कौने…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"सादर नमस्कार। हार्दिक स्वागत आदरणीय दयाराम मेठानी साहिब।  आज की महत्वपूर्ण विषय पर गोष्ठी का…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी , सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ.भाई आजी तमाम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"विषय - आत्म सम्मान शीर्षक - गहरी चोट नीरज एक 14 वर्षीय बालक था। वह शहर के विख्यात वकील धर्म नारायण…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service