For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दिल्ली चीखती है

किसी की सरफ़रोशी चीखती है
वतन की आज मिट्टी चीखती है

हक़ीक़त से तो मैं नज़रें चुरा लूँ
मगर ख़्वाबों में दिल्ली चीखती है

हुकूमत कब तलक ग़ाफिल रहेगी
कोई गुमनाम बस्ती चीखती है

भुला पाती नहीं लख्ते-जिगर को
कि रातों में भी अम्मी चीखती है

बहारों ने चमन लूटा है ऐसे
मेरे आंगन में तितली चीखती है

गरीबी आज भी भूखी ही सोई
मेरी थाली में रोटी चीखती है

महज़ अल्फ़ाज़ मत समझो इन्हें तुम
हरेक पन्ने पे स्याही चीखती है

मियाँ, मुश्किल बहुत है शायरी ये
ग़ज़ल कहने पे बीवी चीखती है

जिसे तू ढूँढने निकला है 'परिमल'
तेरे सीने में बैठी चीखती है

© समीर परिमल

Views: 948

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 1, 2015 at 4:38am

एक एक अशआर कमाल का हुआ है, हर एक अशआर ने दिल को छुआ है, वाह आदरणीय समीर भाई जी ... ढेरो दाद कुबूल करें .... एक दिन सार्थक हुआ, इस कमाल को पढ़कर. ह्रदय से बधाइयाँ प्रेषित है. स्वीकार करें... 

Comment by Meena Pathak on November 25, 2014 at 4:28pm

बहुत सुन्दर ..गज़ल की बारीकियाँ मैं नहीं जानती , पढ़ कर आनंद आ गया ..बेहद उम्दा ..हार्दिक बधाई आप को 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 3, 2014 at 6:57pm

एक एक शेअर सीधे दिल में उतरने वाला हुआ है आ० समीर परिमल जी, अभिनन्दन एवं बधाई स्वीकार करें।   


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 31, 2014 at 9:02pm

एक-एक शेरशोला, एक-एक शेर गुहर !

इस सुगढ़ ग़ज़ल के लिए बार-बार दाद, आदरणीय समीर परिमलजी.

Comment by savitamishra on October 30, 2014 at 9:13pm

बहुत खुबसुरत

Comment by Samir Parimal on October 25, 2014 at 6:44pm
तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ वन्दना जी
Comment by Samir Parimal on October 25, 2014 at 6:41pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी.... हार्दिक आभार
Comment by vandana on October 25, 2014 at 6:22pm


हुकूमत कब तलक ग़ाफिल रहेगी
कोई गुमनाम बस्ती चीखती है

बहारों ने चमन लूटा है ऐसे
मेरे आंगन में तितली चीखती है

बहुत खूब आदरणीय समीर जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 22, 2014 at 10:17pm

सुन्दर ग़ज़ल लिखी है समीर जी ,

भुला पाती नहीं लख्ते-जिगर को
कि रातों में भी अम्मी चीखती है-----हृदय स्पर्शी शेर बहुत खूब 

बधाई आपको 

Comment by Samir Parimal on October 22, 2014 at 8:27pm
शुक्रिया आदित्य जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
3 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
20 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
21 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
23 hours ago
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
23 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
23 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service