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कहाँ गए वो लोग

औरों के गम में रोने वाले
संग दालान में सोने वाले।
साँझ ढले मानस का पाठ
सुनने और सुनाने वाले ।

होती थी जब बेटी विदा
पड़ोस की चाची रोती थी
फूल खिले किसी के आँगन
मिलकर सोहर गाने वाले

पाँव में भले दरारें थी
पर निश्छल निर्दोष हंसी
शादी के महीनो पहले
ब्याह के गीत गाने वाले

पूजा हो या कार्य प्रयोजन
पूरा गाँव उमड़ता था
किसी के घर विपत्ति हो
सामूहिक रूप से लड़ता था
किसी के भी संबंधी को
अपना कुटुंब बताने वाले ।

गाँव की पंचायतों में
स्वयं परमेश्वर बसता था।
सहकारी परंपरा से
सारा कार्य निबटता था।
किसी के घर के चूने पर
मिलकर छप्पर छाने वाले ।

कहाँ गए वो लोग।
कहाँ गए वो लोग।

.... नीरज नीर

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Neeraj Neer on October 21, 2014 at 9:18am

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी आपकी टिप्पणी एवं आपके स्नेह हेतू आपका अनेकानेक धन्यवाद। 

Comment by Neeraj Neer on October 21, 2014 at 9:17am

आपके समर्थन एवं हौसला आफजाई के लिए आपका हार्दिक आभार। आ सोमेश जी ॥ 

Comment by Neeraj Neer on October 21, 2014 at 9:16am

आदरणीय जवाहर जी विषय से सहमति हेतू आपका हार्दिक धन्यवाद ॥ 

Comment by Neeraj Neer on October 21, 2014 at 9:15am

आपका आभार आदरणीया सरिता जी ॥ 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 20, 2014 at 4:40pm

रहिमन अब वे बिरछ कह जिनकी छांह  गभीर

बागन बिच-बिच देखियत सेहुण ढाक  करीर  

Comment by somesh kumar on October 19, 2014 at 10:38pm

शहर , चकाचौंध और बाज़ार ले गई सब यारियाँ

अब हर चीज़ की कीमत है हर काम में दुश्वारियां |

बदलते समाजिक-स्वरूप पर सुंदर-चिंतन

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on October 19, 2014 at 8:25pm

गाँव की पंचायतों में 
स्वयं परमेश्वर बसता था। 
सहकारी परंपरा से 
सारा कार्य निबटता था। 
किसी के घर के चूने पर 
मिलकर छप्पर छाने वाले ।

अब तो मिलकर छप्पड़ उजाड़नेवाले ही मिलेंगे... 

Comment by Sarita Bhatia on October 19, 2014 at 8:18pm

वाकई कहाँ गए वो लोग ??

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