छंद झूलना
(२६ मात्रा, ७,७,७,५ पर यति , चार पद , अंत गुरु लघु )
गुरु ज्ञान दो, उत्थान दो, वंदन करो स्वीकार
अनुभव प्रवण, उज्ज्वल वचन, हे ईश दो आधार
तज काग तन, मन हंस बन, अनिरुद्ध ले विस्तार
प्रभु के शरण, जीवन- मरण, पाता सहज उद्धार.....
Added by Dr.Prachi Singh on April 23, 2013 at 11:00pm — 35 Comments
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 23, 2013 at 10:00pm — 36 Comments
इंसान की फ़ितरत
मुझे M B C (मॉरिशस ब्रॉड्कास्टिंग कॉर्पोरेशन) में स्पीकर पोस्ट के लिये एक साक्षात्कार देना था . उस दिन तेज़ बारिश हो रही थी . मैं इंटरव्यू देकर बाहर खड़ी , बारिश के रुकने की प्रतीक्षा करने लगी . पानी था कि रुकने का नाम नहीं ले रहा था . एक तो जुलाई का महीना उस पर क्यूपीप की सरदी . ठंड से मेरे दाँत बजने लगे थे . मेरे पास ढंग का स्वेटर भी नहीं था जो साथ लेती . शाम के पाँच बज गये थे और अंधेरा भी होने लगा था. मैं चिंतित होने लगी थी अगर बस छूट जाएगी तो मैं क्या करूँगी ? इसी सोच…
Added by coontee mukerji on April 23, 2013 at 9:27pm — 4 Comments
Added by manoj shukla on April 23, 2013 at 9:00pm — 13 Comments
महानगर के सबसे शानदार इलाके की सबसे अच्छी कोठियों में से एक में ब्रह्मराक्षस रहता है। वो स्वयं को दुनिया का सबसे बड़ा विद्वान समझता है और चाहता है कि उसकी विद्वत्ता के चर्चे चारों दिशाओं में हों। समय समय पर ज्ञान के प्यासे लोग उसके पास आते रहते हैं। वो फौरन उनको अपना शिष्य बना लेता है। फिर उनके कानों में फुसफुसाकर गुरुमंत्र देता है। जैसे ही शिष्य इस गुरुमंत्र का उच्चारण करता है वो कुत्ता बन जाता है। इसके बाद ब्रह्मराक्षस अपनी तमाम पोथियाँ उसके सामने बाँचता है। तत्पश्चात ब्रह्मराक्षस उसके गले…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 23, 2013 at 7:44pm — 12 Comments
बहते अश्कों ने दिल दुखाया है | |
गम की गली में कोई आया है | |
गमगीन चेहरे की क्या कहिये , |
किसी ने हँसते को रुलाया है | |
खिला फूल मुरझाया है अब तो ,… |
Added by Shyam Narain Verma on April 23, 2013 at 5:52pm — 4 Comments
मोहना ओ मेरे मनमोहना, तू कहाँ सो रहा है?
(तस्वीर-गूगल इमेजिस से साभार)
मोहना ओ मेरे मनमोहना, तू कहाँ सो रहा है?…
ContinueAdded by Usha Taneja on April 23, 2013 at 5:30pm — 9 Comments
बस आस तुम्हारी बाकी है
इस आंख में आंसू बाकी है
जब जब झरनों सी तरूणाई
आ आकर फिर लौटी है
तुम बन करके शीत चुभन
याद तुम्हारी लौटी है
मीत मिले दिन…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on April 23, 2013 at 5:14pm — 19 Comments
१-अँधेरा
जिधर देखो उधर अँधेरा ही अँधेरा
तुम नजर उठाओ तो सही
गाँव ,शहर ,या घर में भी
काली रातें, घोर अन्धेरा
और कहीं
कुछ दिखता है क्या ?
बहुत अंधकार दिख रहा है ना
क्या कोई दीपक जल रहा है
तो उसे जलने दो
२-बूढ़ा बाप-
बेजान कमरे में !
मेरा दम घुटने लगा है
यहाँ से नहीं निकाल सकते तो
कम से कम मार ही डालो मुझे
३-दर्द
न दिखने वाले दर्द से दब गया हूँ
इसलिए रो रहा हूँ की
थोड़ा…
Added by ram shiromani pathak on April 23, 2013 at 2:46pm — 27 Comments
रामनवमी के सुअवसर पर मुझे आगरा -मथुरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर यमुना किनारे स्थित सूरकुटी के नेत्रहीन विद्यालय के नेत्रहीनों के साथ कुछ समय बिताने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।यह क्षेत्र सूर-सरोवर (कीठम-झील) के समीप हैऔर महाकवि सूरदास की कर्मस्थली गऊघाट पर अवस्थित है।यहीं सूर-श्याम मंदिर भी है,जहाँ सूरदास जी श्यामसुंदर की भक्ति में डूबे रहते थे।इसके समीप ही पाँच सौ वर्ष प्राचीन वह कुआँ भी है,जिसके विषय में यह किवदंती प्रचलित है कि एक बार जन्मांध सूरदास जी इस कूप में गिर गए थे,तब भगवान श्रीकृष्ण ने…
ContinueAdded by Savitri Rathore on April 23, 2013 at 1:57pm — 12 Comments
Added by Kedia Chhirag on April 23, 2013 at 1:30pm — 7 Comments
ए दिल्ली थोड़ा रो दे तू!
दिल दिल्ली का बहुत बड़ा, पाषाण हृदय है बहुत कड़ा।
(फिर भी) ए दिल्ली थोड़ा रो दे तू!
ना कोई चिन्ता ना ग्लानि, ना करुणावश बिलखानी
नीति नैतिकता के ह्रास पर,अनामिका की लाश पर,
ए दिल्ली थोड़ा रो दे तू!
बिसर गए कर्तव्यों पर, दिशाहीन वक्तव्यों पर,…
ContinueAdded by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on April 23, 2013 at 11:30am — 10 Comments
पीछे से बुलाते हो |
एक दिन सोचूंगी मैं
कि तुम्हारी ओर लौट जाऊं
तितलियों से आगे
कागज का जहाज
उडाऊं मैं |
अभी हिम्मत है, हौसला है, जोश है
और जिम्मेदारियों का फैला बोझ है
पत्ता पत्ता हरियाली उपजाऊं मैं
इस जंगल से निकलने का मार्ग न पाऊं मैं
तू ही बता ऐसे में कैसे आऊं…
ContinueAdded by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on April 23, 2013 at 11:00am — 14 Comments
!!! जय जय हनुमान !!!
(मकरी - कालनेमि राक्षस का उध्दार)
तारक तात तड़ाग तरावहिं, तापर तोष तना तन तावत।
दीन दयाल दया दम दानव, देवम दामन दास दिलावत।।
धारति धाय धरा धन धानम, धूल धमाल धरे धड़कावत।
नारद नाच नरेन्द्र निहारत, नाथ नरायन नाम नसावत।।
के0पी0सत्यम/मौलिक एव अप्रकाशित
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 23, 2013 at 8:58am — 9 Comments
छोड़ आए गाँव में वो, ज़िंदगानी याद है।
सौंपकर पुरखे गए जो, वो निशानी याद है।
गाँव था सारा हमारा, ज्यों गुलों का इक चमन,
शीत, गर्मी, बारिशों की, ऋतु सुहानी याद है।
एक हो खाना खिलाना, रूठ जाने की अदा,
फिर मनाने मानने की, वो कहानी याद है।
छुप-छुपाते, खिलखिलाते, हँस हँसाते रात दिन,
फूल, बगिया, बेल-चम्पा, रात रानी याद है।
मुँह अँधेरे, त्याग बिस्तर, भागना भूले कहाँ?
हाथ में माँ से मिली, गुड़ और धानी याद…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on April 22, 2013 at 10:30pm — 30 Comments
छली जा रहीं नारियां, गली-गली में द्रोह ।
नष्ट पुरुष से हो चुका, नारिजगत का मोह |
नारिजगत का मोह, गोह सम नरपशु गोहन ।
बनके गौं के यार, गोरि-गति गोही दोहन ।…
ContinueAdded by रविकर on April 22, 2013 at 5:00pm — 3 Comments
प्रिय मित्र के अमेरिका से अपने देश" भारत " आने पर ,
आपका आपके देश भारत में , तहेदिल से स्वागत है .
…
ContinueAdded by अशोक कत्याल "अश्क" on April 22, 2013 at 5:00pm — 3 Comments
मत तोड़ फूल को शाख से
झूमते झूलते संग हवा के
हिलोरें ले रही शाखाओं पर
सज रहें ये खिले खिले पेड़
बहने दो संगीतमय लहर
यही तो गीत है जीवन का
....................................
रहने दो फूल को शाख पर
वहीँ खिलने और झड़ने दो
बिखरने दो इसे यूं ही यहाँ
आकुल है भूमि चूमने इसे
महकने दो आँचल धरा का
सृजन होगा नवगीत यहाँ
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Rekha Joshi on April 22, 2013 at 4:33pm — 15 Comments
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 22, 2013 at 3:24pm — 20 Comments
धरती का संताप
1
विलाप करती वसुमती – ‘ कह रही ‘
हे सागर ! उदधि महान !
उगता जब मेरे आँचल में
आकाश मण्डल दिशा
सूर्य चंद्र और नक्षत्र घटा
प्रताड़ित क्यों हूँ इतनी
बता !…
Added by coontee mukerji on April 22, 2013 at 1:22pm — 11 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |