"चंदा ने चांदनी से कहा
इस दिल ने अपनी ज़िन्दगानी से कहा
बतलाऊँ तुझको क्या मैं अपनी रज़ा
कहूँ अर्ज़ ए हाल क्या ,करूँ कैसे बयाँ
हुआ जबसे ये दिल तुझसे आश्ना
नासमझ से हो गई आशिकी की ख़ता ,मेरी ज़ाँ
लहरों ने पानी से कहा
इस दिल ने अपनी ज़िन्दगानी से कहा
अंजुमन का तेरे अलग ही है समाँ
सफ़र ज़िन्दगी का लगे ख्वाबों सा
सिखा दी कुर्बत ने तेरे ,जीने की अदा
मिली तुम मुझे
,लगा ज़िंदगी मेहरबाँ ,मेरी ज़ाँ
धडकनों ने रागिनी से कहा
इस दिल ने अपनी ज़िन्दगानी से कहा
जुदा तुझसे तो मैं अधूरा ही रहा
ये रुत ,सबा ,फ़ज़ा ,सावन की घटा
सूना सूना सा था ये सारा जहाँ
होना न कभी मुझसे ख़फा ,मेरी ज़ाँ
तसव्वुर ने कहानी से कहा
इस दिल ने अपनी ज़िन्दगानी से कहा
चाहा बढ़कर ज़िंदगी से तुझे ,चाहूँगा सदा
बिछा दूँ क़दमों में तेरे ,फूलों की रिदा
न ले अब और मेरे सब्र का इम्तिहाँ
हो इंतज़ार की इन्तहा ,मेरी ज़ाँ
`चराग़' ने रौशनी से कहा
इस दिल ने अपनी ज़िन्दगानी से कहा''
~~~ चिराग़
April 22, 2013
[पूर्णतः मौलिक एवं अप्रकाशित ]
रज़ा [चाहत]
आश्ना [परिचित]
कुर्बत [सानिध्य]
तसव्वुर [कल्पना]
रिदा [चादर]
Comment
आदरणीय केडिया जी
सादर
सुन्दर प्रयास
लगे रहिये
बधाई.
आदरणीय,आप सभी से जो प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन मुझे प्राप्त हुआ उसके लिए सर्वथा कृतज्ञ रहूँगा ....मैं कोई कवि नहीं न काव्य विधा के नियम कानून से परिचित हूँ यद्यपि आप सभी गुरु समान अग्रजों के क्षत्रछाया में इसे सीखने और समझने की अभिलाषा से ही यहाँ आया हूँ ताकि मैं अपनी रचना की त्रुटियों को सही कर काव्य विधा सम्मत स्वरुप में उन्हें अद्यतन कर सकूँ ......मुझे आप सभी के स्नेहाशीष एवं पथ प्रदर्शन की सर्वथा आवश्यकता रहेगी ....... सादर /चिराग़
बहुत सुन्दर भाव पूर्ण रचना आदरणीय चिराग जी बधाई कुबुलें.
रचना के बहुत सुन्दर भाव, तदनुरूप सुन्दर शब्द चयन इस हेतु हार्दिक बधाई
किन्तु रचना में सुगढ़ शिल्प का अभाव भी है, जिसे और वक्त दे कर आसानी से साधा जा सकता है...आदरणीय बृजेश जी और गीतिका जी के सुझाव सर्वथा उचित हैं...
रचनाकर्म और सुगढ़ होता रहे यही शुभकामनाएं हैं.
लिखना जारी रखें।
इस प्रयास पर ढेरों बधाई।
सादर!////////////////////भाई ब्रिजेश जी की बात से मै सहमत हूँ //हार्दिक बधाई
सारी सलाहें आदरणीय बृजेश जी ने दे दी ...उनको संज्ञान में लीजिये ....
बड़ी रचनाएँ पाठकों को भटका देती है ...छोटी और सारगर्भित रचना प्रभाव छोड़ने में सफल रहती है ...
सुन्दर रचना पर बधाई लीजिये
चिराग जी आपने यहां अपनी अलख जला दी इसके लिए बधाई। एक बात कहना चाहूंगा कि आप रचना के बीच में जो शब्दाथ लिखते हैं ऐसा न किया करें। इससे पढ़ते समय तारतम्यता भंग होती है। शब्दार्थ रचना के नीचे दिया करें।
दूसरी बात यह जरूर प्रयास किया करें कि रचना किस विधा में लिखी गयी है इसका जिक्र जरूर किया करें। इससे खुद को लाभ होता है।
तीसरी बात रचना लिखने के बाद खुद जरूर रचना को कई बार पढ़कर संतुष्ट हो लें कि रचना कोई संशोधन तो नहीं चाह रही है।
मैंने आपकी यह पहली रचना पढ़ी है। पहली बार के लिए इतना ही सुझाव। आगे जैसे प्रयास करते जाएंगे रचना का स्तर खुद ब खुद और सुंदर होता जाएगा। लिखना जारी रखें।
इस प्रयास पर ढेरों बधाई।
सादर!
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