आदरणीय लघुकथा प्रेमियो,
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आदरणीय तेजवीर सिंह जी, बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है आपने. हार्दिक बधाई. वाकई बिलकुल नई तरह से कथान्त लगा मुझे क्योकि मैंने इस लघुकथा के कुछ ऐसे होने का अनुमान लगाया था-
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"सुनिये राजीव जी”
राजीव ने मुड कर देखा, क्लास की सबसे खूबसूरत लडकी मृदुला उसे आवाज़ दे रही थी! वह गॉव का सीधा सादा किसान का बेटा! किसी भी स्तर पर मृदुला की समानता नहीं कर सकता था!
घबराते हुए बोला,"जी कहिये"!
"मुझे आपकी मदद चाहिये"!
राजीव पुनः असमंजस में कि वह तो पढाई में भी औसत है , यह खुद प्रथम श्रेणी की छात्रा है, रुपये पैसे के मामले में भी, वह कहीं नहीं टिकता, फ़िर इसे कैसी मदद की जरूरत पड गई!
उसने संकोच करते हुए पूछा," क्या मुझ जैसा अदना व्यक्ति भी किसी के काम आ सकता है "!
"मुझे आपकी शर्ट चाहिये, कॉलेज के वार्षिक रंगारंग कार्य क्रम में हम लडकियां एक नाटक कर रहे हैं,मुझे लडके का रोल मिला है "!
"ओह, जी अवश्य"!
मृदुला राजीव के साथ हॉस्टल की ओर बढ़ गई. मृदुला को दरवाजे पर खड़े रहने के लिए कहकर वह अपने कमरे की तरफ भागा. अब एक नयी परेशानी थी कि कौन सी शर्ट दे! उसके पास तो कोई ढंग की शर्ट थी भी नहीं थी! अचानक उसकी नज़र रूम मेट की मेज पर पडी नयी शर्ट के पैकिट पर गयी! राजीव ने बिना कुछ सोचे समझे वह शर्ट उठाई और दरवाजे पर आकर मृदुला को देने लगा!
"अरे ये तो बलकुल नई शर्ट है राजीव जी. ये तो मैं खुद भी खरीद सकती थी. आप समझिये न! मुझे नाटक में...... एक गरीब लड़के का रोल करना है!"
प्रस्तुत लघुकथा किसी लम्बी कहानी का एक अंश सी लगती है, अच्छी लघुकथा हुई है, बहुत बहुत बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह जी.
कमाल
मित्र की तरफ से चित्र सन्देश आया।साथ ही एक चुनौती भी।
"इस चित्र में कमाल ढूँढो।एक चुनौती तुम्हारे लिए।"
चुनौती पढ़ते ही दिमाग की घण्टी बजी और इसे अपनी शान पर ले बैठा। चित्र को बड़ा कर देखने लगा।किसी व्यक्ति द्वारा लिया स्वचित्र (सेल्फ़ी) थी। किसी स्थानीय बस के अंदर का हाल।एक दूसरे में फंसे अटे खड़े स्वार।गोदी में बमुश्किल बच्चे को सम्भालती महिला।पसीने से तर बतर बिलखता बच्चा।थोड़ा और ज़ूम किया तो झुक कर सीट को पकड़े खड़ी बूढ़ी महिला।सीट पर बैठे खिलखिलाते युवा। सीसे से झांकती ख़स्ता हाल सड़क। चित्र बड़ी ख़ूबसूरती से लिया गया।पर कमाल जैसा प्रतीत नहीं हुआ। थोड़ा और वर्द्धित किया चित्र तो धुंधला सा गया।पर खिड़की के बाहर से एक बड़ा बैनर नज़र आया।जिस पर मंत्री जी की आगे कदम बढ़ाते हुए सादगी में मुस्कराते हुए तस्वीर नज़र आई और उनके आगे बढ़े दाएँ पैर के पास लिखा वाक्य:
"अभी तो हुआ है एक साल,देखो किया कितना कमाल।"
(मौलिक एवम् अप्रकाशित)
सरकारी वादे का उपहास करती उम्दा कथा ,एकबार सरसरी निगाह से ही पढ़ने पर रचना की गंभीरता और गहराई स्पष्ट होती हैं जिसके लिए हार्दिक बधाई ।
सुन्दर नया कथानाक व्यवस्था के वादों पर गहरी चोट करता हुआ ,हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय सतविंदर जी
आदरनीय सतविन्द्र जी, बातों बातों में कही यह लघुकथा कमाल का असर छोड़ गई, बहुत बहुत बधाई कुबूल करें
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