For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बरकत - लघुकथा -

सासुजी के देहांत के पश्चात सुधा के ससुर जी गाँव से शहर आ गये थे। उनके आने से सुधा की गृहस्थी तितर बितर हो रही थी। बात बात पर ससुर जी का हस्तक्षेप सुधा को अखरता था। उसने एक दो बार सुरेंद्र से भी इस मामले में चर्चा की लेकिन उसका रवैया बिलकुल तटस्थ था। क्योंकि उसे अपने पिता की सीरत का पूरा ज्ञान था। वे अनुशासन और संस्कार के कट्ट्रर पक्षधर थे।

आज तो उन्होंने हद ही कर दी। उधर सुधा भी आर पार की स्थिति में आ गयी। बात थी तो मामूली लेकिन दोनों की ज़िद के कारण टकराव के चरम पर जा पहुंची।

ससुर जी ज़मीन पर चटाई बिछाकर भोजन कर रहे थे। उसी समय दीनू माली बगीचे और लॉन की साफ सफाई और निराई गुड़ाई कर के जाने की इजाजत लेने आ गया। यह सब जिम्मेवारी आजकल  ससुर जी ही देख रहे थे। चूँकि ससुर जी खाना खा रहे थे तो उन्होंने दीनू को भी खाने के लिये कह दिया और अपने पास चटाई पर बिठा लिया। फिर सुधा को आवाज़ दी कि बहू एक थाली दीनू के लिये भी लगा दो। सुधा यह सुनकर तिलमिला गयी।

"बाबूजी,किचन में सब धो पोंछ कर रख दिया।"

"दो मिनट लगते हैं, फिर धो लेना।"

"बाबूजी, आटा भी गूंथना पड़ेगा।"

"बहू, ये कैसे सवाल जवाब कर रही हो? क्या हमारे कहने का कोई मान सम्मान नहीं है? एक आदमी को खाना खिलाने की भी हमारी हैसियत नहीं है।"

"बाबूजी, आप बात का बतंगड़ बना रहे हैं।"

"बहू, तुम्हें याद है, गाँव में खाने के वक्त कोई आता था तो तुम्हारी सासु उसे बिना खाना खाये नहीं जाने देती थीं।"

"बाबू जी, गाँव में सब सामान घर के खेत खलिहान में ही होता है। यह शहर है, यहाँ सब कुछ खरीदना पड़ता है।"

 ससुर बहू की नोंकझोंक बढ़ती देख दीनू चुपचाप खिसक लिया।

ससुर जी ने गुस्से से माथा पीट लिया।

"बहू,खाना खाते समय कोई भी आ जाये और उसे खाना खिला दो तो उससे कंगाली नहीं आती बल्कि बरकत होती है।"

मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 601

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on August 16, 2019 at 1:18pm

हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी।

Comment by TEJ VEER SINGH on August 16, 2019 at 1:17pm

हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी।

Comment by Samar kabeer on August 16, 2019 at 11:39am

जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,अछ्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

शीर्षक 'बरक़त' को "बरकत" कर लें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 16, 2019 at 7:36am

आ. भाई तेजवीर जी, बेहतरीन कथा हुई है । हार्दिक बधाई।

Comment by TEJ VEER SINGH on August 15, 2019 at 11:25am

हार्दिक आभार आदरणीय विजय निकोरे जी।

Comment by vijay nikore on August 14, 2019 at 1:36pm

कुछ याद दिलाती हुई, कुछ सिखाती हुई इस लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय तेज वीर सिंह जी।

Comment by TEJ VEER SINGH on August 10, 2019 at 6:09pm

हार्दिक आभार आदरणीय सुशील सरना साहब जी।लघुकथा के संदेश की सही दृष्टिकोण में व्याख्या कर टिप्पणी करने हेतु पुनः हार्दिक आभार।

Comment by TEJ VEER SINGH on August 10, 2019 at 6:05pm

हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी।लघुकथा की भावना और मर्म की गहराई को समझ कर त्वरित प्रेरणात्मक प्रतिक्रिया देने हेतु सादर आभार।

Comment by Sushil Sarna on August 10, 2019 at 5:26pm

वाह आदरणीय वर्तमान समाज का सही आईना दिखाती इस लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई। पुराने संस्कारों को आज की पीढ़ी फ़िज़ूल की बात समझती है। शायद आपसी दरारों का ये मुख्य कारण है।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 10, 2019 at 4:53pm

आदाब। बहुत बढ़िया और उम्दा रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। अतिथि देवो भव:। अतिथि को सर्वोच्च भोजन और दान में सर्वोच्च सर्वोच्च वस्तु हमारे धार्मिक संस्कार में आते हैं। यह नहीं, तो कुछ भी नहीं विकास के नाम पर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
4 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"जी आदरणीय यही कि जिस मुक़द्दमे का इतना चर्चा था उसमें हारने वाले को सज़ा क्या हुई उसका भी चर्चा…"
5 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। सुझावों के बाद यह और बेहतर हो गयी है। हार्दिक बधाई…"
29 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"वक़्त बदला 2122 बिका ईमाँ 12 22 × यहाँ 12 चाहिए  चेतन 22"
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ठीक है पर कृपया मुक़द्दमे वाले शे'र का रब्त स्पष्ट करें?"
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी  इस दाद और हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत…"
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"बहुत बहुत शुक्रिय: आपका"
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय "
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"बहुत बहुत शुक्रिय: आदरणीय "
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर जी सादर प्रणाम । बहुत बहुत बधाई आपको अच्छी ग़ज़ल हेतु । कृपया मक्ते में बह्र रदीफ़ की…"
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय DINESH KUMAR VISHWAKARMA जी आदाब  ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार करें। जो…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय 'अमित' जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
4 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service