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मेरा बचपन का दोस्त कबीर इस बार तीन साल बाद दुबई से ईद मनाने खास तौर पर अपने देश आया था। मुझे  खाने पर बुलाया था। तीन साल पहले वह  आया था तो नया मकान बनवाया था। मैं उस समय देश से बाहर था तो नहीं जा पाया था। इस बार तो जाना ही था। दोस्तों से सुना था कि खूब कमाई कर रहा है दुबई में।

शाम को कुछ मिष्ठान, चॉकलेट और गुलाब के फूलों  का  गुलदस्ता लेकर खोजते पूछते पहुंचा तो घर का बाहरी आवरण देख कर बड़ी निराशा हाथ लगी।घर की बाहरी दीवार पर सीमेंट भी नहीं था।पानी की निकासी की  नाली  में बिजली का पोल गढ़ा हुआ था।  गली इतनी तंग थी कि गाड़ी खड़ी करने को भी जगह नहीं थी। ऐसा पैसा कमाना किस काम का।

लेकिन जब घर के अंदर गया तो मेरी आँखें फटी रह गयीं।बड़े बड़े कमरे पूर्ण रूप से सुसज्जित।हर कमरे में बड़े वाले टी वी,ए सी, शानदार कालीन बिछे हुए, मंहंगे सोफ़ासेट, दीवारों पर कीमती ऑयल पेंटिंग्स और  रेशमी पर्दे।बाहर से कोई अनुमान ही नहीं लगा सकता कि अंदर से यह मकान इतना भव्य और  आलीशान होगा।

इस विरोधाभाष पर मुझसे चुप नहीं रहा गया,"यार कबीर,थोड़ा पैसा घर के बाहरी हिस्से पर भी खर्च कर दे।"

"नहीं भाई, यह तो मैंने जान बूझकर ही नहीं किया।"

"कोई विशेष कारण?"

"हाँ मित्र,कुछ कारण भी थे।"

"क्या मैं जान सकता हूँ?"

"क्यों नहीं मित्र? तू तो मेरा जिगरी दोस्त है।"

"तो बता दे यार?"

" जब यह मकान बनवाया था तो मैंने इस बिजली के पोल को नाली से बाहर हटाने की अर्ज़ी दी थी। उन्होंने जो खर्चा लिखकर दिया था वह भी जमा करा दिया। लेकिन तीन साल बाद भी यह पोल वहीं का वहीं है।"

"यार फिर आगे कोई कार्यवाही नहीं की।"

"सब कुछ कर लिया।"

"थोड़ी मेहनत और कर लेता।"

"नहीं भाई, अब कुछ नहीं करूंगा|"

"ऐसा क्यों?"

"यार वैसे भी बाहरी दिखावा और तड़क भड़क, हम लोगों के लिये अकसर  कोई ना कोई मुसीबत ही लाता है।

 मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by TEJ VEER SINGH on August 25, 2019 at 5:00pm

हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी। आदाब।

Comment by Samar kabeer on August 25, 2019 at 11:48am

जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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