For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

TEJ VEER SINGH's Blog (185)

मेरे पिता मेरा गर्व  - लघुकथा -

मेरे पिता मेरा गर्व  - लघुकथा - 

सुरेखा जी समाज शास्त्र की अध्यापिका होने के कारण   सातवीं कक्षा के बच्चों को "सामाजिक स्तर" क्या होता है। इस विषय पर पढ़ा रहीं थीं। कुछ छात्र सही तौर पर समझ नहीं पा रहे थे। अतः सुरेखा जी ने सभी छात्रों को…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on January 8, 2022 at 1:00pm — 6 Comments

समय का पहिया  - लघुकथा -

समय का पहिया  - लघुकथा - 

सुशीला ने घर परिवार और समाज के विरोध के बावजूद एक राजपूत लड़के को अपना हमसफ़र बनाने का निर्णय किया। समूचा वैश्य समाज हतप्रभ था उसके इस फ़ैसले पर। लड़का राजपूत वह भी फ़ौज में अफ़सर। सारी बिरादरी लड़की के भाग्य को कोस रही थी। माँ ने तो रो रो कर घर आँसुओं से भर दिया था। उनकी एक ही चिंता थी कि एक बनिये की बेटी राजपूत परिवार में कैसे निभा…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on December 11, 2021 at 12:30pm — 6 Comments

रहीम काका - लघुकथा -

रहीम काका - लघुकथा - 

"गोविन्द, यार कहाँ है तू?  बस चलने वाली है।हम  बार बार बस वालों को निवेदन कर रुकवा रहे हैं। अब उन्होंने केवल दस मिनट का समय दिया है।

"मैं पांच मिनट में पहुंच रहा हूँ।"…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on December 4, 2021 at 9:27am — 8 Comments

रद्दी - लघुकथा -

रद्दी - लघुकथा - 

"अरे, ये क्या, सारी की सारी पुस्तकें वापस  लेकर आ गये।" 

"क्या करूं पुष्पा, तुम ही बताओ? पूरा दिन बाजार में घूमता रहा इतना भारी इतनी कीमती पुस्तकों का बैग लेकर, लेकिन कोई दुकानदार…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on October 30, 2021 at 7:05pm — 8 Comments

हे राम (लघुकथा)-

मोहन दास जब यमराज के सामने पहुंचे,"मोहन जी, जब आपको गोलियाँ लग गयीं और आप लगभग मरणासन्न हो गये तो उस वक्त राम को पुकारने का क्या तात्पर्य था?”

"महोदय, आप मेरे "हे राम" उच्चारण का अर्थ शायद समझ नहीं सके।

"क्या इसमें भी कोई गूढ़ रहस्य है? मेरे विचार से तो यह एक मरते हुए व्यक्ति द्वारा अपने इष्ट देव से अपनी रक्षा हेतु मात्र एक याचना…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on October 7, 2021 at 11:30am — 8 Comments

आत्म घाती लोग - लघुकथा -

आत्म घाती लोग - लघुकथा - 

मेरे मोबाइल की  घंटी बजी। स्क्रीन पर दीन दयाल का नाम था। मगर दीन दयाल का स्वर्गवास हुए तो दो साल हो गये।  उसके परिवार ने तो  कभी भी याद ही नहीं किया। आज अचानक कैसे याद आ गई।…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on July 23, 2021 at 9:58am — 4 Comments

प्रेम - लघुकथा

"बाबा, गौर से सुनो, आज फिर मेरे कान्हा की बांसुरी की मधुर स्वर लहरी गूंज रही है।"

बाबा ने अपने दाँये कान के पास हथेली से ओट बनाते हुए सुनने की कोशिश की।

"राधा बेटी मुझे तो कुछ नहीं सुनाई पड़ा ? तू तो बावरी हो गई है उस बहुरूपिया  कान्हा के लिये।"

"आप बूढ़े हो गये हो। आपके कान कमजोर हो गये हैं।"

"बिटिया तू क्यों खुद को झूठी तसल्ली दे रही है।अब वह कभी नहीं आने वाला।"

"मेरा कान्हा अवश्य आयेगा।"

"अब वह केवल तेरा कान्हा नहीं है।अब वह द्वारिका का राजा…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on March 27, 2021 at 7:30pm — 4 Comments

बलात्कार - लघुकथा –

बलात्कार - लघुकथा –

चौबीस पच्चीस साल की युवती रोशनी पुलिस स्टेशन के गेट पर एक अनिर्णय और असमंजस की स्थिति में खड़ी थी।कभी एक कदम अंदर की ओर बढ़ाती लेकिन अगले ही पल पुनः उस कदम को पीछे कर लेती।

उसकी इस मनोदशा को उसका मस्तिष्क तुरंत ताड़ गया,"क्या हुआ? इतने जोश में निकल कर आईं थी।सब जोश ठंडा पड़ गया थाने तक आते आते।"

"नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है।मैं कुछ आगे पीछे की ऊँच नीच के बारे में सोच रही हूँ।"

"कमाल है, इसमें सोचना क्या है? बलात्कार हुआ है तुम्हारे साथ।"

तभी…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on January 1, 2021 at 6:36pm — 9 Comments

कब तक  - लघुकथा –

कब तक  - लघुकथा –

"अम्मा, ये सारी टोका टोकी, रोकथाम केवल मेरे लिये ही क्यों है?"

"यह सब तेरी भलाई के लिये ही है बिटिया।"

"क्या अम्मा?, मेरी भलाई के अलावा कभी भैया के बारे में भी सोच लिया करो।"

"अरे उसका क्या सोचना? मर्द मानुष है, जैसा भी है सब चल जायेगा।"

"इसलिये उसके किसी काम में रोकटोक नहीं।रात को बारह बजे आये तो भी चलेगा।और मैं दिन में भी अकेली कहीं नहीं जा सकती।"

“तू समझती क्यों नहीं मेरी बच्ची?"

"क्या समझूं अम्मा? भैया बारहवीं में तीन साल…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on November 28, 2020 at 9:52am — 8 Comments

मुझे भी पढ़ना है - लघुकथा –

मुझे भी पढ़ना है - लघुकथा –

"ऐ सुमन, मुन्ना नहीं दिखाई दे रहा?"

"काहे परेशान हो? अभी आ जायेगा।"

"अरे तू समझती काहे नहीं है। यह गाँव देहात नहीं है।शहर का मामला है। एक मिनट में बच्चा गायब हो जाता है।"

"हम सब जानते हैं इसलिये उसकी दादी माँ भी साथ गयी हैं।"

"अरे मगर गये कहाँ हैं वे दोनों?"

"और कहाँ जायेंगे? दो साल से स्कूल जाने का सपना मन में पाल रखा है। स्कूल की प्रार्थना की घंटी सुनते ही दौड़ जाता है।"

"अब क्या करें सुमन? घर की माली हालत तो तुम…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on November 20, 2020 at 6:22pm — 6 Comments

खंडित मूर्ति - लघुकथा –

खंडित मूर्ति - लघुकथा –

"सुमित्रा, यह लाल पोशाक वाली लड़की तो वही है ना जिसकी खबर कुछ महीने पहले अखबार में छपी थी।"

"हाँ माँ यह वही है।"

"इसके साथ स्कूल के चपरासी ने जबरदस्ती की थी ना।"

"हाँ माँ,वही है। आप क्या कहना चाहती हो?"

"मैं यह कहना चाहती हूँ कि इसे पूजा में किसने बुलाया?"

"माँ यह मेरी बेटी के साथ पढ़ती है। उसकी दोस्त है। उसने इसे मुझसे पूछ कर ही बुलाया है।"

"यानी यह तुम्हारी मर्जी से यहाँ आयी है। सब कुछ जानते बूझते हुए।"

“माँ , वह…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on October 23, 2020 at 1:14pm — 8 Comments

छोटू - लघुकथा –

छोटू - लघुकथा –

पत्रकार सम्मेलन से लौटते हुए एक ढावे पर चाय पीने रुक गया।ढावे पर एक नौ दस साल के बच्चे को काम करते देख मेरे अंदर की पत्रकारिता जनित मानवता जाग उठी।मैंने उसे इशारे से बुलाया,"क्या नाम है तुम्हारा?"

वह मेरे चेहरे को टुकुर टुकुर देख रहा था। मैंने पुनः वही प्रश्न दोहराया।वह तो फिर भी वैसे ही गुमसुम खड़ा रहा लेकिन ढावे का मालिक आगया,"साहब, इसका नाम छोटू है।यह गूंगा बहरा है।"

"इसके माँ बाप कहाँ हैं?"

"ये अनाथ है।"

"मैं इसकी एक फोटो ले…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on October 17, 2020 at 10:58am — 4 Comments

सत्य की तलाश  - लघुकथा –

सत्य की तलाश  - लघुकथा –

आधी रात का वक्त था। गाँव से दूर पूर्व की ओर एक खाली पड़े खेत में एक चिता सजाई जा रही थी। चारों ओर से पुलिस उस खेत को घेरे हुए थी।ऐसा लग रहा था जैसे पूरे देश की पुलिस यहाँ एकत्र कर रखी हो।पुलिस के अलावा कोई भी नज़र नहीं आ रहा था।

हाँ पुलिस के घेरे से बाहर अवश्य एक भीड़ जुटी हुई थी।भीड़ में कुछ लोग रो रहे थे। कुछ हँस भी रहे थे।कुछ नारे लगा रहे थे।

इसी बीच एक सौ साल से ऊपर का वृद्ध पुरुष सफेद धोती से अपना जर्जर शरीर लपेटे हुए हाथ में एक लाठी लिए भीड़ को…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on October 7, 2020 at 11:40am — 10 Comments

अवसरवादी  - लघुकथा –

अवसरवादी  - लघुकथा –

आज शहर के लोक प्रिय नेताजी का जन्मदिन  बड़े जोर शोर से मनाया जा रहा था। इस बार इतने सालों बाद बहुत खोज बीन के बाद ये पता चला कि नेताजी की असली जन्म तिथि दो अक्टूबर ही है।किसी को कोई आश्चर्य भी नहीं हुआ क्योंकि नेताजी जिस जमाने में पैदा हुए थे उस वक्त स्कूल में दाखिले के समय कोई जन्म तिथि का प्रमाण पत्र माँगता भी नहीं था।बनवाने का रिवाज़ भी नहीं था।मुँह जुबानी जो भी तारीख बोल दी वही लिख दी जाती थी।

कैसा विचित्र संयोग था कि  नेता  जी का जन्म दिन भी  बापू जी और…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on October 2, 2020 at 7:25pm — 4 Comments

बहुरूपिया - लघुकथा -----

बहुरूपिया - लघुकथा -----

"अरे अरे उधर देखो,  वह कौन आ रहा है। कितना विचित्र पहनावा पहन रखा है। और तो और चेहरा भी तरह तरह के रंगो से बेतरतीब पोत रखा है।चलो उससे बात करते हैं कि उसने ऐसा क्यों किया।"

"नहीं नहीं, पागल मत बनो। कोई मानसिक रोगी हुआ तो? पता नहीं क्या कर बैठे?"

"तुम तो सच में बहुत डरपोक हो सीमा|"

इतने में पास से गुजरते एक बुजुर्ग ने उन बालिकाओं का वार्तालाप सुना तो बोल पड़े,"डरो नहीं, ये हमारे मुल्क के बादशाह हैं। यह इनका देश की गतिविधियों को जाँचने परखने…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on July 23, 2020 at 6:16pm — 6 Comments

अच्छे दिन - लघुकथा -

अच्छे दिन - लघुकथा -

"गुड्डू, लो देखो मैं तुम्हारे लिये कितनी सारी ज्ञान वर्धक जानकारी की पुस्तकें लाया हूँ।"

"दादा जी, आप कहाँ से लाये और कैसी पुस्तकें हैं? आप तो पार्क में टहलने गये थे।"

"हाँ बेटा, वहीं पार्क के गेट के बाहर फुटपाथ पर एक लड़का पुस्तकें, पत्रिकायें, समाचार पत्र आदि बेचता है। शिक्षाप्रद कहाँनियों की पुस्तकें हैं|"

"क्या इससे उसका गुजारा हो जाता है?"

"बेटा, वह एम ए, बी एड है, लेकिन नौकरी नहीं है। अतः इसके साथ ही वह लोगों के पानी, बिजली और…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on July 17, 2020 at 11:26am — 2 Comments

मंत्री का कुत्ता - लघुकथा -

मंत्री का कुत्ता - लघुकथा -

मेवाराम अपने बेटे की शादी का कार्ड देने मंत्री शोभाराम जी की कोठी पहुंचा। दोनों ही जाति भाई थे तथा रिश्तेदार भी थे। मेवाराम यह देख कर चौंक गया कि मंत्री जी के बरामदे में शुक्ला जी का पालतू कुत्ता बंधा हुआ था।अचंभे की बात यह थी कि शुक्ला और मंत्री जी एक ही पार्टी में होते हुए भी दोनों  एक दूसरे के कट्टर विरोधी थे।

मेवाराम को यह बात हज़म नहीं हुई। उसके पेट में गुड़्गुड़ होने लगी।इस राज को जानने को वह  उतावला सा हो गया।

आखिरकार चलते चलते उसने मंत्री…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on July 14, 2020 at 11:02am — 4 Comments

विकास - लघुकथा -

विकास - लघुकथा -

दद्दू अखबार पढ़ रहे थे। दादी स्टील के गिलास में चाय लेकर आगयीं,

"सुनो जी, विकास की कोई खबर छपी है क्या?"

"कौनसे विकास की खबर चाहिये तुम्हें?"

"कमाल की बात करते हो आप भी? कोई दस बीस विकास हैं क्या?"

"हो भी सकते हैं। दो को तो हम ही जानते हैं।"

"दो कौन से हो गये। हम तो एक को ही जानते हैं।"

"तुम किस विकास को जानती हो?"

"अरे वही जिसको पूरे प्रदेश की पुलिस खोज रही है।और आप किस विकास की बात कर रहे हो?"

"हम उस विकास की…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on July 6, 2020 at 6:30pm — 4 Comments

पिता (लघुकथा)

रघुनाथ  ट्यूर से लौटा तो पिताजी  दिखाई नहीं दिये।  वे बरामदे में ही बैठे अखबार पढ़ते रहते थे। उनके कमरे  में  भी नहीं थे।रघुनाथ का नियम था कि वह कहीं  से आता था तो पिता के चरण स्पर्श  करता था।

"शीला, पिताजी नहीं दिख रहे। कहीं गये हैं क्या?"

"मुझे कौनसा बता कर जाते हैं? तुम हाथ मुंह धोलो। चाय पकोड़े लाती हूँ।" शीला के लहजे से रघुनाथ को कुछ शंका हुई।

इतने में उसका सात वर्षीय बेटा बिल्लू भी आगया।

"बिल्लू, बाबा तुम्हारे साथ गये थे क्या?"

"बाबा तो गाँव वापस चले…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on June 26, 2020 at 9:00am — 6 Comments

बाप (लघुकथा) -(पितृ दिवस के उपलक्ष में)

सुलेखा दौड़ती हांफ़ती घर में घुसी।

"क्या हुआ बिटिया? क्यों ऐसे हांफ़ रही हो?"

"कुछ नहीं पापा। एक कुत्ता पीछे लग गया था।"

"तो इसमें इतने परेशान होने की क्या बात है? तुम तो मेरी बहादुर बेटी हो।"

"पापा आप नहीं समझोगे।ये दो पैर वाले कुत्ते बहुत गंदी फ़ितरत वाले होते हैं।"

"दो पैर वाले कुत्ते? तुम ये क्या ऊल जलूल बोल रही हो।"

तभी सुलेखा का भाई सूरज हाथ में हॉकी लेकर बाहर की ओर लपका,"अरे बेटा सूरज इतनी रात को यह हॉकी लेकर.......?"

"पापा मैं उस कुत्ते को…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on June 22, 2020 at 8:00pm — 4 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मतभेद
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
3 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

मार्गशीर्ष (दोहा अष्टक)

कहते गीता श्लोक में, स्वयं कृष्ण भगवान।मार्गशीर्ष हूँ मास मैं, सबसे उत्तम जान।1।ब्रह्मसरोवर तीर पर,…See More
3 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
3 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post लघुकविता
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय दयारामजी"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मतभेद
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।"
16 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
Monday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-169

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मन में केवल रामायण हो (,गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बेहतरीन 👌 प्रस्तुति और सार्थक प्रस्तुति हुई है ।हार्दिक बधाई सर "
Monday
Dayaram Methani commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मन में केवल रामायण हो (,गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, अति सुंदर गीत रचा अपने। बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post लघुकविता
"सही कहा आपने। ऐसा बचपन में हमने भी जिया है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' shared their blog post on Facebook
Sunday
Sushil Sarna posted blog posts
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service