For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-51 (विषय: मुसाफिर)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-51 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. प्रस्तुत है:  
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-51
विषय: मुसाफिर 
अवधि : 29-06-2019  से 30-06-2019 
.
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं। 
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें।
.
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 4728

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

लघुकथा गोष्ठी क्र.51

स्वरचित एवं मौलिक

वसुंधरा की कोख में निरंतर बहने वाला जल विभिन्न रूप धरकर अपने अस्तित्व की रक्षा करने हेतु हमेशा सचेत रहता उसे कुछ गर्व था इस बात का कि वह जीवन के लिये अपरिहार्य बन चुका है .
कूप,झील,ताल-तलैया,बावड़ी,जोहड़,नदी,समन्दरऔर बर्फीले पर्वतों से पिघलती शिलाएं सभी उसकी आन बान शान बनकर साथ साथ चलते रहे मीठे और खारे जल का अपना अपना स्थान मानव मन में जगह बनाने में सफल रहा.पर हाय री कीस्मत!धरा के अंतःमार्ग से बाहर निकलकर जल दीर्घ निश्वासें भरने लगा था भू का पथरीला,माटीमसृण,हरियाला,जलजीवजंतुओं की पनाहगार वाला रास्ताउसे थकाने लगा था.लहरों की चंचलता,नमक निर्मिति का पुनीत दानकर्म,द्रव्य खनिजों की बहुलता जैसे गुण तिरोहित हो रहे थे.
नेत्र बंद किये जल ने अपने पालक वरूण देवको याद किया.अपनी विशिष्टताओं का हवाला देकर शपथ ली धरा गगन के बीच सृष्टि के अंत तक साथ देगा उस मानवका,जो उसे सजाता,संवारता,पूजता और
उपयोग में लाता है.
अपनी खूबियों की गठरी लिये फिर चल पड़ा 'जल'..अब उसे कैद करने के नाम पर बांधों में बांधा गया,
नलों,पाइपों,वाटर हार्वेस्टिंग यंत्रों में रोका गया,बोतलों में पैक किया गया,पर्वतों को काट वृक्षों को धराशायी कर नन्ही छिटपुट धाराओं में झलक दिखाने भर का अवसर मानव अपनी खुशफहमी कायम रखकर देने लगा था.
कहीं छायादार पेड़ मिलते तो दो पल आराम ही कर लेता..तपती धूप में बेहाल वह खुद को ही ढूंढने का प्रयास कर रहा था.कहीं कोई माटी का घड़ा या प्याऊ नहीं..ओफ्फ!मूर्च्छित हालत में देर तक उसांसे भरता वह संभला तो खेतिहर किसान के घर में हैंड पंप से फिसलते कनखियों से देख कान उधर ही लगा दिये.
किसान चार पांच पियक्कड़ों से घिरा जुआ खेलता हुआ बीवी पर चीख रहा था-'जा!टैंकर आ गओ.
ले आ पानी!चार दिन हो गए बिन न्हाए सबने.
-कुएं,बावड़ी,ताल,जोहड़ सारे पाट राखे हैं तम मानुसों ने...के करै धरती मैया भी...मजबूर है.
धरती मैया की कोख से बाहर निकालके तमनै बड़े जुलुम करे हैं जी!इस पवित्तर जल पै रहम करो नई तो कहर बरसैगा..योई पानी बहाके ले जागा सारी दुनिया नै जी.
बूंद बूंद भर लो अंजुरी में अपनी...जे हाथ ही हैं म्हारे जो अच्छे करम कर सकै हैं...
यो बहता पानी थक लिया अब...इसनै हाथों से संभाल लो बस.
मत करो इसका दोहन...नई पीढ़ी नै भी साथ जान दो.
जल पानी की ठेली को देखकर कुछ पल के लिये ठिठक गया था ...उसे अहसास हो रहा था मानो
उसके थके हारे तपते तन पर किसी भले मानस ने ठंडे छींटे मार दिये हैं अपनी कोमल हथेलियों की अंजुरी में भरकर...

बहुत सुंदर रचना, जल की महत्ता और पर्यावरण को समेटे ये रचना बहुत कुछ कहना चाहती है, रचना में आने वाले क्षेत्रीयसंवाद सहज ही बढ़िया बने है... हालांकि मुझे इसके प्रदत्त विषय पर होने में थोडा संशय है, बरहाल मेरी ओर से बधाई स्वीकार करें...

आदाब। विषयांतर्गत जल की कथा-व्यथा उभारती बहुत बढ़िया रचना हार्दिक बधाई आदरणीया डॉ. अंजू लता सिंह जी। विगत दिनों मैंने भी एक रचना लिखी थी "जल में ढल" । आशा है आपको भी पसंद आयेगी। कृपया सोशल मीडिया पर पढ़ियेगा और राय दीजिएगा। सादर।

जल की सुन्दर व्यथा-कथा आदरणीय अंजू लता  सिंह जी . आदरनीय वीरेंदर वीर मेहता जी की बात विचारणीय है. 

मुहतरमा डॉ. अंजू लता सिंह जी आदाब,प्रदत्त विषय पर अच्छी लघुकथा लिखी आपने,बधाई स्वीकार करें ।

आपने मंच के नियमानुसार रचना के नीचे मौलिक व अप्रकाशित नहीं लिखा?

बढिया साहित्यिक कथा , लेकिन शीर्षक को परिभाषित नही कर पा रही हैं।प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आपको ।

हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ अंजु लता सिंह्जी।बेहतरीन लघुकथा।

बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीया अंजु दी।

 दुहाई रिमिक्स्ड !  (लघुकथा) :

"मैं क़ाफ़िर हूँ  यारो; न धरम है, न ठिकाना!....
इबादत कर दिखाना है, पाखण्ड करते जाना है! बस, जीते जाना है!"

"तुम बेवफ़ा हरग़िज़ न थे; पर तुम वफ़ा कर न सके!"

"कितनी भलीं थीं, वो राहें हम जिन पे बाप-दादा संग थे चलते रहे!"

"तो फ़िर .. तू क़ाफ़िर तो नहीं! मग़र बदनसीब ये जग तूने देखा; तुझको काफ़िरी आ गई!"

"हाँ, प्यार का नाम मैंने सुना था मग़र; प्यार स्वार्थ है, ये जग ने दी है ख़बर!"

"जब से धन से मुहब्बत तू करने लगा! तू उसी की इबादत करने लगा!"

"मैं शातिर हूँ यारो; न घर है, न ठिकाना! धन कमाते जाना है, बस मॉडर्न होते जाना है!"

"होठों पे असली बात, ये कैसे अब आई! सुधर जा मेरे भाई; दुहाई है दुहाई!"

महानगर के अत्याधुनिक अपार्टमेंट्स की पाँचवी मंज़िल के अत्यंत महँगे किराये के फ़्लैट के अत्याधुनिक वॉशरुम में पूर्णनग्नावस्था में स्नान-आनंद लेते हुए तुकबंदी के ये स्वर गूंज रहे थे। लिव-इन-रिलेशनशिप के सफ़र में सब कुछ था उन दोनों स्मार्ट धनवान युवा युगल के पास; असंतोष और कुंठा भी!


(मौलिक व अप्रकाशित)

सुन्दर भाव के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी 

आदाब। रचना पर समय देने के लिए शुक्रिया जनाब ओमप्रकाश क्षत्रीय 'प्रकाश' जी।

रचना संबंधित अपनी बात नीचे टिप्पणी में कह दी है। मार्गदर्शन निवेदित।

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,ये किस शैली की लघुकथा है? मैं समझ नहीं सका,बहरहाल बधाई स्वीकार करें ।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय निलेश जी सादर, प्रस्तुत छंद पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार. होतीं 'हैं'…"
2 minutes ago
Ashok Kumar Raktale commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"  आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, प्रस्तुत घनाक्षरी की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार.…"
8 minutes ago
Ashok Kumar Raktale commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय भाई शिज्जु शकूर जी सादर, मेरा तो अनुभव रहा है, यदि कोई आपको रचना के पुनरावलोकन की सलाह दे…"
9 minutes ago
Ashok Kumar Raktale commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"   आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुत छंद पर आपकी सराहना पाकर रचनाकर्म सार्थक हुआ. आपका…"
17 minutes ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"कार्यालयों में अपना काम करवाने की एवज में इस तरह का शोषण एक दुखद स्तिथि है। बधाई आदरणीया एक अच्छी…"
54 minutes ago
vibha rani shrivastava replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"बहुत-बहुत धन्यवाद उस्मानी जी  -सहमत हूँ आपकी बातों से : सुधार करने का पूरा प्रयास रहेगा."
56 minutes ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"आदरणीय उस्मानी जी युवा द्वारा आतंकी को काफिर कहे जाने से क्या आशय है जबकी काफिर शब्द किसके लिये…"
1 hour ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"रचना पर उपस्थिति के लिये हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी। रचना का भाव स्पष्ट है 'कश्मीरी…"
1 hour ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"हार्दिक आभार आदरणीय शिज्जू शकूर जी।आपको जो अधूरापन लगा उसके बारे में यही कहूँगी कि लघुकथा एक…"
1 hour ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"हार्दिक आभार आदरणीया कल्पना जी"
1 hour ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी"
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"सादर नमस्कार। प्रदत्त विषय को एक नया अहम आयाम देती बढ़िया रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया विभारानी…"
2 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service