For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-103

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 103वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब अहमद फराज़ साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो "

221     2121      1221       212

मफ़ऊलु    फाइलातु      मफाईलु       फाइलुन       

(बह्र: मुजारे मुसम्मन् अखरब मक्फूफ महजूफ )

रदीफ़ :- मुझे न दो  
काफिया :- आएँ( सदाएँ, बलाएँ, दुआएँ, हवाएँ,आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 25 जनवरी दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 26 जनवरी दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 25 जनवरी दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 13658

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीय जनाब मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह बहुत बहुत शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी के लिए मुस्तक़बिल के लिए दुआ व आशीर्वाद की ज़रुरत है आभार सादर 

बेठो क़रीब आके कहो दिल की बात फिर,
हर बार दूर जाके सदाएं मुझे न दो।

आसिफ ज़ैदी साहिब बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई क़ुबूल कीजिए 

जनाब आसिफ़ जैदी साहब बढिया ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद देती हूँ 



221     2121      1221       212

इतनी मेरे करम की सिलाएँ  मुझे न दो ।।
जलता  चराग हूँ  मैं  हवाएं  मुझे न दो ।।

कर दे न मुझको ख़ाक कहीं तिश्नगी की  आग ।
अब तो मुहब्बतों की दुआएं मुझे न दो ।।

जीना मुहाल कर दे यहां खुशबुओं का दौर ।
घुट जाए दम मेरा वो फ़जाएँ  मुझे  न दो ।।

यूँ ही तमाम फर्ज अधूरे हैं अब तलक ।
सर पर अभी से और बलाएँ मुझे न दो ।।

पूछा करो कसूर कभी अपनी रूह से ।
गर बेगुनाह हूँ तो सजाएं मुझे न दो ।।

इतना भी कम नहीं कि तग़ाफ़ुल में जी रहा ।
तुम महफिलों में अपनी जफाएँ मुझे न दो ।।

तुम इश्तिहार खूब छपाओगे कर्ज का ।
नीलाम हो न जाऊं वफ़ाएँ मुझे न दो ।।

कुछ तो शरारतें थीं तुम्हारी अदा की यार ।
मुज़रिम बना के सारी खताएँ मुझे न दो ।।

गर बेसबब ही रूठ के जाना तुम्हें है तो ।
हर  बार  दूर जा  के  सदाएं  मुझे  न दो ।।

मैं खुश हूँ आ के आज तो हिज्रे दयार में ।
बीमारे ग़म की यार दवाएं मुझे  न दो ।।

               डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
                मौलिक अप्रकाशित

मोहतरम जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब बहुत उम्दा बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें। चराग़, ख़ुश्बुओं, फ़ज़ाएं, फ़र्ज़, क़ुसूर, सज़ाएं, महफ़िलें, जफ़ाएं, ख़ूब, क़र्ज़, मुजरिम, ख़ताएं, ख़ुश पर ग़ौर करें माज़रत सादर

आ0 ज़ैदी साहब तहे दिल से शुक्रिया ।

आ0 नवीन मणी त्रिपाठी जी बहुत ही अच्छी ग़ज़ल हुई है, इसके लिए हृदय तल से बधाई।

आ0 अग्रवाल साहब तहेदिल से शुक्रिया ।

आदरणीय नवीन जी , बेहतरीन प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें। गर बेगुनाह हूँ में तनाफुर से बचने के लिए यूँ कह सकते हैं:- हूँ बेगुनाह मैं तो .... सादर

जनाब डॉ. नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'कर दे न मुझको ख़ाक कहीं तिश्नगी की  आग ।
अब तो मुहब्बतों की दुआएं मुझे न दो'

इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,देखें ।

'गर बेगुनाह हूँ तो सजाएं मुझे न दो'

इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखें ।

'तुम इश्तिहार खूब छपाओगे कर्ज का ।
नीलाम हो न जाऊं वफ़ाएँ मुझे न दो'

इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,देखियेगा ।

'मैं खुश हूँ आ के आज तो हिज्रे दयार में'

इस मिसरे में 'हिज्र-ए-दयार' की तरकीब ठीक नहीं ।

आ0 कबीर सर अति महत्वपूर्ण इस्लाह हेतु सादर आभार और नमन । 

आदरणीय समर कबीर साहब, मैने कहीं पढ़ा था कि ह के बाद अगर मात्रा लगा हुआ ह आये जैसा  कि यहां बेगुनाह हूँ मे है तो  ऐब-ए-तनाफ़ुर नही होता। कृपया इस बाबत मार्ग दर्शन करें।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
11 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
22 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service