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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-39 (विषय: समीकरण")

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-39 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. गत तीन वर्ष में गोष्ठी के पिछले 38 अंकों में हमारे साथी रचनाकारों ने जिस उत्साह से इसमें हिस्सा लिया और इसे सफल बनाया, यह वास्तव में हर्ष का विषय हैI पिछले कुछ आयोजनों में हमारे वरिष्ठ साथिओं की लगातार अनुपस्थिति हालाकि पीड़ादायक रही है. फिर भी हमारे लघुकथाकार अनवरत उच्च-स्तरीय रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं. और बहुत से साथी उन पर सार्थक चर्चा भी कर रहे हैं जिससे रचनाकारों का भरपूर मार्गदर्शन भी हो रहा है. बहरहाल, इस कड़ी को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है:
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-39
विषय: "विषय: समीकरण" 
अवधि : 29-06-2018  से 30-06-2018 
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अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक हिंदी लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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आपका भी स्वागत है आदरणीय गणेश बाग़ी जी ।

सुस्वागतम अभिनंदन आपका और सभी सहभागी सुधिजन का।

आप सभी का हार्दिक हार्दिक स्वागत है .

सभी साथियों का स्वागत और हार्दिक आभार।

ओ बी ओ लघुकथा गोष्ठी में आप सभी गुणीजनों का वंदन है।अभिनंदनों है ।

विदाई
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" मैंने शैलजा की स्वीकृति ले ली है । वह पूरी तरह से सहमत है ।" आनंद जी ने पत्नी को खुश होकर कहा ।
" क्या कहा ! ज़रा फिर से तो कहना , मुझे यकीन ही नहीं हो रहा है । " शारदा देवी ने बड़े आश्चर्य से कहा ।
" यह सच है भाग्यवान । शैलजा ने हामी भर दी है ।"
" मुझसे भी अब उसका दु:ख देखा नहीं जाता । इसी दिन का इंतज़ार कर रही थीं । "
" हम शैलजा को बहू नहीं बेटी की तरह विदा करेंगे । आज से पाँच साल पहले हमारी बहू बनकर आई थी मगर ईश्वर को कुछ और ही मंज़ूर था । हमारा बेटा असमय ही काल का ग्रास बन गया और शैलजा तभी से घुट -घुट जी रही है । बहुत अच्छा हुआ जो शैलजा ने सही समय पर हामी भर दी । पिता समान ससुर का मान रख लिया । " कहते-कहते उनकी आँखों से आँसू छलक पड़े । इतने में आनंद जी के परम मित्र समाज सेवी और मानव अधिकार कार्यकर्ता नवीन प्रताप जी का आगमन हुआ ।
" क्यों भई ! किस बात को लेकर आँसू बहाए जा रहे हैं ?"
" आइए ! आइए ! नवीन भाई । आपने जो सलाह दी थी वो कारगर हो गई । बहू ने शादी के लिए हाँ कर दी है । मैंने लड़का तो पहले ही देख लिया था । उसके घर वाले भी राज़ी है ।"
" मैंने आपको कोई ग़लत सलाह नहीं दी थी आनंद जी । ज़माना तेज़ी बदल रहा है । पुराने समीकरणों को हम नहीं बदलेंगे तो फिर कौन बदलेगा ? जवान विधवाओं को भी जीने का अधिकार है ।"
" सच कहा आपने ।" आनंद जी ने अपने आँसू पोंछते हुए कहा ।

मौलिक एवं अप्रकाशित ।

विधवा विवाह के बदलते समीकरण पर बहुत बढ़िया रचना के साथ बेहतरीन विचारोत्तेजक व प्रेरक आग़ाज़ के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद और शुक्रिया मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़  साहिब।

लघुकथा पर सटीक और सकारात्मक टिप्पणी से पोषित करने का हार्दिक आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी ।

बिल्कुल सही ,आरिफ साहब।  पुराने समीकरणों को हम नहीं बदलेंगे तो कौन बदलेगा। 
बहुत अच्छी लघुकथा है ,बधाई 

हार्दिक बधाई आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ साहब जी। गोष्ठी का शुभारंभ एक बेहतरीन लघुकथा से करने हेतु।आपने जो विषय चुना है वह मार्मिक भी है और समय की माँग भी है।यदि युवावस्था में स्त्री विधवा होती है तो इस तरह की पहल अति आवश्यक है।लाज़वाब प्रस्तुति।

हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी ।

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