आदरणीय साथिओ,
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लघुकथा को समय देने के लिए धन्यवाद आदरणीय सिद्दिक़ी जी ,आभार ,सादर
मुहतरमा बरखा शुक्ला जी आदाब, प्रदत्त विषय पर लघुकथा का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।
बहुत -बहुत धन्यवाद आदरणीय कबीर जी ,आभार ,सादर
प्रदत्त विषय पर लघुकथा कहने का अच्छा प्रयास है. लेकिन निन्नी और नौकर के घर न पहुँचने का मतलब यह कैसे निकाल लिया कि वे दोनों भाग गए? कोई और कारण भी तो हो सकता है न? तो इसका अर्थ तो यह निकला कि पति-पत्नी की तकरार महज़ एक क़यास पर ही आधारित है. बहरहाल, बधाई स्वीकार करें.
आदरणीय सर ,कुछ सुधार किया है ,सादर
आक्रोश
लीना ने घबराते हुए पति निलेश को बताया ,”सुनिए निन्नी अभी तक कोचिंग से नहीं आयी है।”
“अरे आ जाएगी ,मोबइल लगायो उसे । “निलेश बोले ।
“अरे कब से लगा रही हूँ , बंद आ रहा है ।”लीना बोली ।
“उसकी किसी सहेली से पूछो ।”पति बोले ।
लीना के पूछने पर सहेली ने बताया “आज वो कोचिंग ही नहीं आयी ।”
ये सुन कर निलेश भी घबरा गए ।और फिर चौंक कर घर के नौकर राजू के बारे में पूछते हुए बोले “वो राजू कहाँ है ,मुझे लेने दफ़्तर भी नहीं आया ।”
“वो तो ४ बजे मुझे किट्टी पार्टी में छोड़ कर बोला “राशन लेकर साहब को लेने चला जाऊँगा ।”लीना ने बताया ।
तभी लीना का मोबाइल बजा ,उसने जल्दी से उठाया ,निन्नी का फ़ोन था ,बोली “माँ मै राजू के साथ हूँ ,मुझे खोजने का प्रयास मत करना “,ऐसा कह कर उसने फ़ोन काट दिया ।
लीना ने निलेश को बताया
“तुम्हें अपनी पार्टी से फ़ुर्सत मिले तब तो घर पर ध्यान दो , गाँव से राजू को आगे पढ़ाने का लालच देकर ले आयी ,यहाँ उसे नौकर बना कर रख लिया ।”निलेश बोले ।
“खाना ,रहने की जगह सब तो उसे मिल रही थी ,उसके पिताजी को रुपए भी तो भिजवाती थी ,इन सबका ये सिला दिया ।”लीना रोते हुए बोली ।
“पर उसे तो पढ़ना था न । “निलेश बोले ।
“एक बार दिलवाई तो थी परीक्षा पास ही कहाँ हो पाया ।”लीना बोली
“तुम घर के काम के चक्कर में उसे पढ़ने ही कहा देती थी ।तुमने अपना समीकरण लगाया ,उसने अपने आक्रोश में अपना समीकरण लगा लिया ।”निलेश बोले ।
“अब उठो ,चल कर पुलिस की मदद से बेटी को खोजे ,अभी ज़्यादा देर नहीं हुई है ।”लीना बोली ।
मौलिक व अप्रकाशित
बेहतरीन प्रयास । हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया बरखा शुक्ला जी ।
अच्छी लघुकथा है आदरणीया बरखा जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। आदरणीय योगराज सर की टिप्पणी से मैं भी सहमत हूँ। आपकी संशोधित लघुकथा मैंने पढ़ी है पर मुझे लगता है कि उसमें अभी और सुधार हो सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि आपकी लघुकथा का शीर्षक अभी भी लघुकथा में उभर कर नहीं आ पा रहा है। इस बिंदु पर विचार करेंगी तो लघुकथा और बेहतर हो जाएगी। आप थोड़े से संसोधन से ऐसा कर सकती हैं। एक बार पुनः बधाई। सादर।
मार्गदर्शन के लिए बहुत -बहुत धन्यवाद आदरणीय महेंद्र जी ,आपके सुझाव पर ध्यान दे कर सुधार का प्रयास करूँगी ।आभार ,सादर
आदरणीय कम शब्दों में बड़ी बात। लघुकथा भावुक भी करती है और सटीक संदेश भी देती है। बधाई
बहुत -बहुत धन्यवाद आदरणीय आशीष जी ,आभार ,सादर
येन केन प्रकारेण-
"तो फिर क्या सोचा आपने रघुबीर जी, इस बार किसके समर्थन से सरकार में जाने का सोच रहे हैं!", बच्चू खान ने हाथ में ग्लास को उठाते हुए कहा.
"आप तो जानते ही हैं बच्चू भाई, हम तो उसी तरफ रहते हैं जिधर सबसे बेहतर आसार रहते हैं", रघुबीर जी ने अपना ग्लास उठाया और बिना चियर्स बोले गटकने लगे.
बच्चू खान ने अपना ग्लास खाली किया और थोड़े चिंता भरे शब्दों में कहा "लेकिन आपकी पार्टी ने तो उस दल से किसी भी हाल में समर्थन नहीं लेने का ऐलान किया है, फिर आप क्या करेंगे?
"आप भी बहुत भोले हैं बच्चू भाई, ये कहाँ लिखा है कि पार्टी नहीं बदली जा सकती. जंग और राजनीति में सब जायज़ है, एक एक पैग और लगाते हैं".
रघुबीर जी के ठहाके काफी देर तक गूंजते रहे, बच्चू खान भी धीरे धीरे अपना ग्लास ख़त्म करते रहे.
मौलिक एवम अप्रकाशित
बिल्कुल सही , आजकल राजनितिक लोगों की यही दशा है कब किस का सिद्धांत किस के साथ मेल खा जाए पता ही नहीं चलता। बहुत बहुत बधाई।
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