आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक आभार आदरणीय मुज़फ़्फ़र इक़बाल सिद्दीक़ी जी। बहुत-बहुत शुक्रिया। सादर।
आदरणीय महेंद्र कुमार जी आदाब,
इस लघुकथा के संबंध में कहना चाहूँगा कि :-
जिज्ञासा का संचार करती और आख़िर दम तक बाँधने में सफल लघुकथा ।
(2) बेहतरीन पात्रानुकूल संवाद ।
(3) सरल-सरस भाषा- शैली का सटीक प्रयोग ।
(4) किसी एक्शन या थ्रिलर नाटक या फिल्मकी पटकथा सी ।
(5) आपकी पारंपरिक फैण्टेसी लघुकथा का आंशिक प्रतिनिधित्व करती लघुकथा ।
(6) कोई मुफीद जज के मिल जाने की बात कहकर वर्तमान न्याय व्यवस्था में भ्रष्टाचार के दंश को दर्शाया है ।
हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
//2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।//
सादर आदाब आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी। आपकी इस समीक्षात्मक टिप्पणी के लिए हृदय से आभारी हूँ। लिखना सार्थक रहा। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर।
अपराध सज़ाएं, पुलिस और अदालतों पर तथा विसंगतियों पर आपकी बारीक़ नज़र की पुष्टि करती एक और यथार्थपूर्ण, कटाक्षपूर्ण और विचारोत्तेजक रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय महेंद्र कुमार साहिब। शीर्षक भी बढ़िया।
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी। हृदय से आभारी हूँ। सादर।
बेहतरीन कथा महेन्द्र कुमार जी ।
धन्यवाद आदरणीया कनक हरलालका जी। हार्दिक आभार। सादर।
बहुत बढ़िया रचना आदरणीय महेंद्र कुमार जी ,बधाई आपको इस रचना के लिए ,सादर
आभारी हूँ आदरणीया बरखा जी। बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर।
//“क्योंकि मैंने गोट ही ऐसी बिछायी है।” थानेदार ने तफ़्सील से अपनी योजना बतानी शुरू की कि वह कैसे उन दोनों के पास अलग-अलग गया और कैसे दोनों के पास चारों विकल्प रखे, “देखो, तुम्हारे पास केवल चार विकल्प हैं। पहला, अगर तुमने यह मान लिया कि तुम दोनों ने मिलकर उस आदमी का ख़ून किया है और अगर तुम्हारे साथी ने नहीं माना तो तुम्हें फ़ौरन छोड़ देंगे लेकिन तुम्हारे साथी को दस साल की जेल होगी। दूसरा, अगर तुमने नहीं माना कि तुम दोनों ने मिलकर उस आदमी का ख़ून किया है और अगर तुम्हारे साथी ने यह मान लिया तो तुम्हें दस साल की जेल होगी और तुम्हारे साथी को फ़ौरन छोड़ दिया जाएगा। तीसरा, अगर तुम दोनों ने ही मान लिया कि तुम दोनों ने मिलकर उसका ख़ून किया है तो मैं ऐसा केस बनाऊँगा कि तुम दोनों को केवल तीन साल की जेल होगी या यह भी हो सकता है कि कोई मुफ़ीद जज मिल जाए तो हम तुम दोनों की सज़ा ही माफ़ करवा दें। और चौथा, अगर तुम दोनों में से किसी ने नहीं माना कि तुम दोनों ने उसका ख़ून किया है तो तुम दोनों को मैं ख़ुद कम से कम सात साल की जेल करवाऊँगा। बाकी तुम ख़ुद समझदार हो। तुम्हारे पास सिर्फ़ सुबह तक का समय है।”//
मेरे अजीज़, इतनी लम्बी एक्सप्लेशन? लघुकथा एक नाज़ुक बेल है भाई, उसकी पीठ पर इतना बोझ अच्छा नहीं होता।
मुझे इसका अंदेशा था सर, इसीलिए लघुकथा लिखते समय मैं बड़े असमंजस में था कि इसे किस तरह रखूँ। एक चीज़ और आपसे जानना चाहूँगा सर कि संवाद से इतर क्या इसे व्याख्यान के रूप में रखा जा सकता है? यदि नहीं तो क्या एक ही लम्बे संवाद की अपेक्षा तीन-चार छोटे संवादों में? मार्गदर्शन की अपेक्षा रहेगी। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।
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