आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय मुहम्मद आरिफ जी
लघुकथा का प्रयास सराहनीय है अतएव बधाई स्वीकार करें.
आपकी टिप्पणी से संबल मिला । हार्दिक आभार आदरणीय सत्यनारायण जी ।
एक विनम्र गुज़ारिश है, सुझाव है मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब कि इस बेहतरीन कथानकमय रचना के अंत में ऐसी कोई पंक्ति जोड़ कर इसे विषयांतर्गत बढ़िया रूप दिया जा सकता है :
//दूर कहीं ठहाके गूंज रहे थे "भ्रष्टाचार " रूपी उस विषपान करने वाले "सांप" और "बिच्छू" रूपी नेताओं, अधिकारियों और देशद्रोहियों के। श्रोता जनता पराजित योद्धा ही बनी रही।//
सादर
वाह! वाह!! बहुत ही ग़ज़ब इस्लाह है । ऐसी इस्लाह तह भी दर्शाती है कि आप लघुकथा के प्रति कितने समर्पित हैं । यह आपका नि:स्वार्थ समर्पण का प्रतीक है । आपकी जितनी प्रशंसा करूँ कम है । कुछ ऐसी ही कोशिश करता हूँ । दिली आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी ।
आदरणीय आरिफ भाई जी, बहुत ही सशक्त कथानक है आपकी लघुकथा पर परन्तु प्रस्तुतिकरण में थोड़ी झोलझाल हो गई बस । होता है कई बार ऐसा भी....। लघुकथा का शीर्षक चयन बहुत बढ़ीया लगा। शुभकामनाएं स्वीकारें ।
आपकी टिप्पणी सर आँखों पर आदरणीय रवि प्रभाकर जी । हार्दिक आभार ।
आ. भाई आरिफ जी, हार्दिक बधाई ।
हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी ।
लघु कथा जो सन्देश देना चाहती है वो मिल रहा है इंसान इन विषेले जानवरों से भी ज्यादा विषैला हो चुका है तथा औरों को भी विष बाटता है
बहुत बहुत बधाई आपको मोहम्मद आरिफ जी
हृदयतल से आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी ।
जनाब मोहम्मद आरिफ साहब आदाब। लघुकथा का प्रयास अच्छा है। रचना पढ़ने पर यह महसूस हुआ कि रचना वह नही कह पायी जो कहना चाहा गया है।
रचना की शुरुआत बहुत समय पहले की बात यानी बहुत पहले के समय का जिक्र करती है। और अंत अलग दिख रहा है। इस पर भी विचार कीजियेगा ।सादर जी।
आपकी सलाह सर आँखों पर आदरणीय सुरेंद्र जी । हार्दिक आभार ।
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