For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गुस्ताखियाँ....

शानों पे लिख गया कोई इबारत वो रात की। 
...महकती रही हिज़ाब में शरारत वो रात की। 
......करते रहे वो जिस्म से गुस्ताखियाँ रात भर -
..........फिर ढह गयी आगोश में इमारत वो रात की।

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 607

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on November 12, 2017 at 1:41pm

आदरणीय  Dr Ashutosh Mishra साहिब सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 11, 2017 at 2:31pm

खूबसूरत रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील जी सादर

Comment by Sushil Sarna on November 9, 2017 at 7:38pm

आदरणीय सलीम रज़ा रेवा साहिब, आदाब। ... सर सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on November 9, 2017 at 7:38pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... सृजन पर आपकी मुक्त व्याख्या का दिल से आभार। अपने प्रयास को सराहा आपके तहे दिल से शुक्रिया। प्रयास करूंगा को अपने सृजन को अरूज़ में ढाल सकूं।

Comment by Sushil Sarna on November 9, 2017 at 7:37pm

आदरणीय मो.आरिफ साहिब, आदाब सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।

Comment by SALIM RAZA REWA on November 9, 2017 at 12:08pm
आ. ख़ूबसूरत रचना के लिए बधाई
Comment by Samar kabeer on November 8, 2017 at 5:37pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,मुक्तक को उर्दू में 'क़ित'अ'कहते हैं,और ये विधा भी ग़ज़ल की तरह अरूज़ की पाबन्द होती है,ग़ज़ल और इसमें फ़र्क़ सिर्फ़ इतना होता है कि ग़ज़ल का हर शैर इकाई का दर्जा रखता है और उसका संबंध दूसरे शैर से नहीं होता,और मुक्तक या क़ित'अ का उसूल ये है कि ऊपर की तीन पंक्तियों का सार अंतिम पंक्ति में आना अनिवार्य होता है,यानी एक बात जो हम कहना चाहते हैं,उसकी भूमिका में तीन पंक्तियां होंगी और चौथी में उस बात का निष्कर्ष होग, जैसे मिसाल के तौर पर एक क़ित'अ नरेश कुमार'शाद'का देखिये जो उन्होंने 'भर्तहरि'के अफ़कार के अनुवाद में लिखा :-
'नाक में लौंग तेरे नीलम की
नज़र आती है। दिलनशीं ऐसे
किसी चम्पा कली पे इक भँवरा
बैठ कर चूसता हो रस जैसे'
इस प्रयास के लिए बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Mohammed Arif on November 8, 2017 at 7:59am
आदरणीय सुशील सरना जी आदाब, बहुत ही ख़ूबसूरत अहसास । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sushil Sarna on November 7, 2017 at 8:45pm

 आदरणीय    Afroz 'sahr'  जी आदाब , मैंने इसे मुक्तक के रूप में लिखा है।  बाकी इसमें अहसासों की और जिस्मानी मीठी सी नोंक झोंक है। भावों को शब्दों में  ढालने का प्रयास भर है। आप आये , आपका तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Afroz 'sahr' on November 7, 2017 at 8:35pm
आदरणीय सुशील जी ये कौन सी सिन्फ़ है । और आप क्या कहना चाहते हैं। अगर ये क़ताअ है तो कृपा कर इसके अर्कान लिखें यदि ये क़ताअ नहीं है तो इस सिन्फ़ ए सुखन से मुझे अवगत कराने का कष्ट करें। सादर,,,,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Sep 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service