आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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प्रयास पर आपका अनुमोदन मिला ,लिखना सार्थक हुआ , आपका हार्दिक आभार आदरणीय योगराज प्रभाकर जी सादर
मोहतरमा प्रतिभा साहिबा , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती हुई और राजनीति को आईना दिखाती सुन्दर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
सही है "गोकुल डेयरी है न ..." क्स्स्म से ऐसे लोगों को तो लगाये दस और बार-बार गिनती भूलकर फिर १ से शुरुवात करे .. बहरहाल ये अलग बात . अब आपकी कथा पर... हर बार कि तरह इस बार भी शानदार प्रस्तुती .. बधाई स्वीकारें आदरणीया _/\_
बार बार कितनी भी गिनती भूलकर इन्हें कूटा जाए पर टेढ़ी पूँछ सीधी होगी असंभव .. टिपण्णी के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय सुधीर जी
समकालीन राजनीति की विकृतियों, विरूपताओं की निन्दनीय व उपहासास्पद कृत्यों का कलात्मक चित्रण पेश करती इस लघुकथा में व्यंग्य जिस तीक्ष्णता व प्रखरता से मुखतरित हुआ है व प्रशंसनीय है। व्यंग्य सामाजिक चेतना की तीव्रतम अभिव्यक्ित होता है जो सामाजिक शिवत्व की एक साधना है। व्यंग्य में भावुकता नहीं संवेदना होती है, निराशता नहीं सक्रियता होती है। /तो क्या i अपना काम एक बार बन गया तो अम्मा जी के आगे प्रायश्चित कर लेंगे I मंदिर क्या, पूरा घर धुलवा देंगे दूध से I गोकुल डेयरी है ना I/ यह एक पंक्ित राजनीति में व्याप्त अन्तर्विदोधों को बाखूबी उघाड़ती है। प्रदत्त विषय 'प्राश्यिचत' को पूर्णतया तुष्ट करती इस लघुकथा के लिए मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएं ।
कथा के मर्म का इतनी विस्तृत टिपण्णी से अनुमोदन कर आपने उत्साहवर्धन किया ,मेरा लिखना सार्थक हुआ , आपका हार्दिक आभार आदरणीय रवि प्रभाकर जी
हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी
//“तो क्या i अपना काम एक बार बन गया तो अम्मा जी के आगे प्रायश्चित कर लेंगे I मंदिर क्या, पूरा घर धुलवा देंगे दूध से I गोकुल डेयरी है ना I”// बढ़िया पंचलाइन झंझोड़ने वाली|
हार्दिक आभार आदरणीय राम शर्मा जी
आ.प्रतिभा दीदी क्या क्या रजनीतिक हथकंडे अजमा सकता है इंसान .हद हो गई और फ़िर माँ के आगे ही प्रायश्चित , बस यही रचना का मर्म है. बहुर सुंदर कथा कही आपने. अनेकानेक बधाईया आपको
प्रयास के मर्म का अनुमोदन कर उत्साहवर्धन करने के लिए हार्दिक आभार आदरणीया नयना जी
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