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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-11 (विषय: साथी)

आदरणीय लघुकथा प्रेमियो,
सादर वन्दे।
 
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" के 11 वें अंक में आपका स्वागत हैI "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" के पहले दस  आयोजन बेहद सफल रहे। नए पुराने सभी लघुकथाकारों ने बहुत ही उत्साहपूर्वक इनमें सम्मिलित होकर इन्हें सफल बनाया कई नए रचनाकारों की आमद ने आयोजन को चार चाँद लगाये I इस आयोजनों में न केवल उच्च स्तरीय लघुकथाओं से ही हमारा साक्षात्कार हुआ बल्कि एक एक लघुकथा पर भरपूर चर्चा भी हुईI  गुणीजनों ने न केवल रचनाकारों का भरपूर उत्साहवर्धन ही किया अपितु रचनाओं के गुण दोषों पर भी खुलकर अपने विचार प्रकट किए, जिससे कि यह गोष्ठियाँ एक वर्कशॉप का रूप धारण कर गईं। इन आयोजनों के विषय आसान नहीं थे, किन्तु हमारे रचनाकारों ने बड़ी संख्या में स्तरीय लघुकथाएं प्रस्तुत कर यह सिद्ध कर दिया कि ओबीओ लघुकथा स्कूल दिन प्रतिदिन तरक्की की नई मंजिलें छू रहा  हैI यह कहना कोई अतिश्योक्ति न होगी कि यह सभी आयोजन लघुकथा विधा के क्षेत्र में मील के पत्थर साबित हुए हैं। तो साथियो, इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है....
 
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-11 
विषय : "साथी"
अवधि : 28-02-2016 से 29-02-2016
(आयोजन की अवधि दो दिन अर्थात 28 फरवरी दिन रविवार से 29 फरवरी 2016 दिन सोमवार की समाप्ति तक)
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो  28 फरवरी दिन रविवार  लगते ही खोल दिया जायेगा)
.
अति आवश्यक सूचना :-
१. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
२. सदस्यगण एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।
३. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
४. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
५. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी लगाने की आवश्यकता नहीं है।
६. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
७. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
८. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है।
९. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं। रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें।
१०. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें।
११. रचना/टिप्पणी सही थ्रेड में (रचना मेन थ्रेड में और टिप्पणी रचना के नीचे) ही पोस्ट करें, गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी बिना किसी सूचना के हटा दी जाएगी I
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
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Replies to This Discussion

आदरणीय डॉ  बृजेश जी आप ने बहुत उम्दा कथानक चुना. बधाई इस कथानक के लिए. मगर यह एक प्रवाहमय लघुकथा नहीं बन पाई है. यानि पञ्च लाइन और प्रवाह उम्दा होता तो यह सब से उम्दा लघुकथा होती .

क्षमा करे आदरणीय डॉ.बृजेश कुमार त्रिपाठी जी ,इसमें कौन किसका बेरहम साथी हैं स्पष्ट नहीं हो पा रहा हैं बेशक हो सकता हैं मेरे समझ में कमी हो।बेहतरीन कथानक के लिए हार्दिक बधाई आपको
मेरे विचार से कथा की दूसरी पंक्ति में स्पष्ट किया गया है, कि कोई तो है बेरहम साथी जिसका स्पष्ट नाम आदि बताना ज़रूरी नहीं है। हालाँकि शीर्षक भी यहाँ कुछ और ही होना चाहिए था। सादर

प्रतिभागिता हेतु अभिनन्दन स्वीकारें किन्तु यह रचना प्रदत्त विषय से बिलकुल भटकी हुई है आ० डॉ बृजेश कुमार त्रिपाठी जीI    

जनाब बृजेश  साहिब  , अच्छी लघु कथा हुई है  ..... मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं

वाह !क्या बात है आपकी इस लघुकथा का आदरणीय ब्रिजेश कुमार जी । बेहतरीन कथानक पर एकदम कसी हुई कथा देखने को मिली । शिल्प गजब का है और कथ्य तो लाजवाब कर गया एकदम से । ढेरों बधाई इस सार्थक लघुकथा के लिये ।
बढ़िया रचना आद बृजेश कुमार त्रिपाठी जी

लघुकथा : साथी

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“बाबूजी, कितनी बार कहा कि दरवाजे के सामने खड़ा यह बरगद का पेड़ कटवा दीजिये, पर आप है कि सुनते ही नहीं.”

“नहीं बेटा, यह पेड़ बहुत पुराना है और तुम्हारे दादा जी ने लगाया था, मेरा बचपन इसकी छाँव में बीता है.”

“किन्तु बाबूजी समूचे घर का लुक इस पेड़ के कारण ख़त्म हो जाता है.”

“ऐसा नहीं है बेटा इस पेड़ के कारण ही सामने की सड़क से आने वाली गन्दी हवायें सीधे घर में नहीं आती.”

“बाबूजी, मैं ये सब नहीं जानता, मैंने लकड़हारों को बुलवा लिया है आज ही यह पेड़ कटेगा.”

पेड़ और बाबूजी की सांसे शाम होते होते कट गये. दरवाजे पर पहरेदारी करती खांसती आवाज सदा के लिए खामोश हो गयी थी.

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

पवित्र बरगद की पवित्र दोहरी भूमिका और दुखांत के साथ पर्यावरण चेतना व बुजुर्गों की निशानी का अहम संदेश सम्प्रेषित करती हुई रचना के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय गणेश जी बागी जी।

प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय शेख़ शाहज़ाद उस्मानी जी.

प्रदत्त विषय को बखूबी परिभाषित किया है भाई गणेश बागी जीI पेड़ और बाबूजी की साँसों को एक सामान बताकर लघुकथा को और भी मार्मिक बना दिया हैI इस सुंदर लघुकथा पर हार्दिक बधाई प्रेषित हैI   

आदरणीय गुरुदेव, आपसे प्रशंसा पा कर यह लघुकथा सार्थक हुई, बहुत बहुत आभार.

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