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आदरणीय विजय शंकर सर, आपका अनुमोदन आश्वस्तकारी है. हार्दिक आभार आपका.
बहुत जरुरी है कि मिटटी और आकाश दोनों को संभल के रखा जाये, बहुत उम्दा रचना विषय पर | बहुत बहुत बधाई
आज की सबसे बड़ी समस्या को बहुत सरल व सहजता से उकेरीत किया आदरणीय बधाई सुंदर कथा के लिये
जो कुछ हमारे देश में था वो सब विदेश में चला गया और हम उनकी यादों तक बचा कर न रख सके| अब जब विदेशों में वही बातें नये कलेवर में हैं और वो तरक्की कर रहे हैं तो हमें एहसास तो होना ही चाहिए कि क्या खो दिया| आपकी लघुकथा एक ऐसी ही विशेषता की तरफ संकेत कर रही है जो हमारे देशवासी पहले जानते थे, और आज भूल चुके हैं| इसके अतिरिक्त यदि विदेश से कोई संस्कारों को समझ कर आता है, जो देश के विकास के लिए हैं, तो इसका सदैव स्वागत होना ही चाहिए| विषय को सार्थक करती रचना के सृजन हेतु सादर बधाई स्वीकार करें आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी सर|
समसामयिक विषय उठाती बेहद उत्कृष्ट रचना ,हार्दिक बधाई प्रेषित है आदरणीय डॉo विजय शंकर जी सादर
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