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वाह बहुत सार्थक रचना कल्पना जी गहरे से जगह बनाती हुई. बधाइ आपको
आदरणीया कल्पना भट्ट जी , अच्छी एवं सीख देती लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई। ..
बहुत बढ़िया लघुकथा विदेश भेजे गए पुतापुत्रियाँ का यही होता है. बधाई.
बच्चे माता-पिता की आकांक्षाओं के लिए कर्जे में डूबे हैं| नवीनतम विषय और बहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीया कल्पना जी, कृपया सादर बधाई स्वीकार करें|
बहुत बढिया प्रस्तुति आदरणीया ! बधाई प्रेषित कर रहा हूँ |
मार्मिक रचना कल्पना जी। बधाई। और सत्य भी। डॉलर का बोझ है ही इतना ज्यादा कि लोग दब जाते हैं। त्रासदी पर आपकी दृष्टि पसंद आई
अच्छा कथानक चुना है आ० कल्पना भट्ट जी I रचना प्रदत्त विषय के साथ न्याय कर रही है I बधाई स्वीकारें, हालाकि लघुकथा थोडा और कसावट व समय मांग रही है I
//"हाँ बेटे, दोनों सवेरे-शाम घर के बाग में चाय की चुस्कियां लेते थे और तुम दोनों बेटों पर फक्र कर कहते थे कि तुम दोनों ने उनके वातानुकूलित बड़े घर का सपना पूरा किया है। तुम्हारी भेजी हुई हर वस्तु को हमें दिखाते थे।//
मैं नहीं समझता कि किसी की अचानक मृत्यु की खबर देने के एकदम बाद कोई ऐसी बात कहेगा ! ज़रा गौर करें I यह शब्द "पमजे" क्या है ? क्या "पंजे" तो नहीं ?
बहुत बेहतरीन रचना प्रदत्त विषय पर , आकांक्षाओं का बोझ बहुत भारी पड़ जाता है कभी कभी | बहुत बहुत बधाई आपको
बहुत खूब कल्पना जी .. माता-पिता का अति की आकांक्षाएं बच्चों पर थोपने का नतीजा कुछ यूँ भी भुगतना पड़ जाता हैं...
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