For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुर्सी को जानों -----डॉ o विजय शंकर

कुर्सी को जानों
कुर्सी को पहचानों ,
कुर्सी है तो जीवन है, जान है.
कुर्सी है तो भोंडापन भी ज्ञान है ,
अन्यथा क्या ज्ञान है, क्या विज्ञान है ,
डिग्रियों के लिए कूड़ेदान है।
कुर्सी है तो आस है ,
अपना चतुर्दिश विकास है |

तख़्त उलटते रहे होंगें ,
सिंहासन डोलते रहे होंगें ,
कुर्सी न उलटती है, न डोलती है ,
न उसे कोई ऐसा ख़तरा होता है ,
हाँ , कुर्सी पर जो बैठा हो
वो औरों के लिए जरूर ख़तरा होता है |
कोई कहता है ताक़त बन्दूक से आती है,
कोई कहता है ताक़त तोप से आती है ,
हमने देखा है , ताक़त कुर्सी से आती है,
कुर्सी पर न हो तो शेर भी कमजोर होता है ,
कुर्सी चढ़े तो कुछ देर चूहा भी शमशेर होता है |

ये कुर्सी - सभ्यता है ,
कुर्सी है तो सभ्यता है,
शान है, उत्थान , नाम है,
नाम के आगे पीछे महान है ,
वरना दुनियाँ बड़ी बेईमान है ,
आपकी कोई नहीं पहचान है |
एक बार कुर्सी से हट कर दुनियाँ देखिये ,
बगैर कुर्सीवालों के बीच जाइए और देखिये ,
एक अलग ही दुनियाँ नज़र आती है ,
कुर्सी कुर्सी हंसती है ,चिढ़ाती है,
प्रगति के हर कदम पे अड़ंगे लगाती है,
बैठने वालों के जरिये से कुर्सी ,
अलग अलग तरह की आवाजें निकालती है.
कुछ चढ़ा दो , तो , चढ़ावे के हिसाब से पुचकारती है |
तरस आता है कुर्सी पर बैठे लोगों पर ,
कुर्सी आदमी को इस तरह गुलाम बनाती है।
इस कदर गुलाम बनाती है.
औकात भुलाती है, औकात से गिराती है ,
खुद कभी नहीं गिरती , आदमी को रोज गिराती है ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 714

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 13, 2015 at 7:46pm
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय डॉ O आशुतोष मिश्रा जी , सादर।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 13, 2015 at 4:00pm

आदरणीय विजय सर ....कमाल की कुर्सी महिमा का चित्रण किया है  आपने ..वाकई कुर्सी का खेल अदभुटी है ..इस शानदार रचना के लिए तहे दिल बधाई सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 12, 2015 at 11:51am
आदरणीय डॉ o गोपाल नारायण जी , रचना को स्वीकार करने के लिए आपका ह्रदय से आभार। आपकी उपस्थिति कुछ अंतराल बाद हुयी है , आशा है आप सानंद हैं,
आपकी सद्भावनाओं के लिए धन्यवाद , सादर।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 12, 2015 at 11:44am

कोई कहता है ताक़त बन्दूक से आती है,
कोई कहता है ताक़त तोप से आती है ,
हमने देखा है , ताक़त कुर्सी से आती है,
कुर्सी पर न हो तो शेर भी कमजोर होता है ,
कुर्सी चढ़े तो कुछ देर चूहा भी शमशेर होता है |  बेहतरीन अभिव्यक्ति i विजय  सर i

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 11, 2015 at 4:08am
आदरणीय हरी प्रकाश दुबे ,प्रशंसा एवं उत्साह वर्धन हेतु आभार एवं बधाई के लिए धन्यवाद , सादर।
Comment by Hari Prakash Dubey on February 10, 2015 at 6:59pm

बैठने वालों के जरिये से कुर्सी ,

अलग अलग तरह की आवाजें निकालती है.

कुछ चढ़ा दो , तो , चढ़ावे के हिसाब से पुचकारती है |

तरस आता है कुर्सी पर बैठे लोगों पर ,

कुर्सी आदमी को इस तरह गुलाम बनाती है।... बहुत खूब आदरणीय डॉ विजय शंकर सर ! सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 10, 2015 at 12:28pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, रचना के लिए अच्छे शब्दों हेतु आभार, बधाई हेतु ह्रदय से धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on February 10, 2015 at 12:26pm
रचना की प्रशस्ति के लिए आभार , आदरणीय डॉ o उषा चौधरी साहनी जी, बधाई हेतु धन्यवाद , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 10, 2015 at 10:27am

आदरणीय विजय भाई . एक कटु सत्य से दो चार करा है , आपने , बहुत खूब , बधाइयाँ ।

Comment by Usha Choudhary Sawhney on February 10, 2015 at 8:38am
आदरणीय विजय शंकर सर, कुर्सी व कुर्सी पर विराजमान व्यक्ति का सत्य अत्यंत गहनता व पारदर्शिता से दर्शाया है आपने। बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service