For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रकृति में सुकून---डॉ o विजय शंकर

प्रकृति प्रेमी है वह ,
प्रकृति से असीम प्रेम करता है,
पहाड़ों पर, समुद्र-तटों पर, जंगलों में, रेगिस्तान में ,
कहाँ नहीं जाता है वह , कई कई दिन ,
कई कई रातें बिताता है ,
प्रकृति की गोद में ही सुख पाता है ,
वहीं खो जाता है वह ।
बस प्रकृति की सर्वोत्त्तम कृति से डरता ,
बहुत घबड़ाता है ,
उनसे कुछ दूर ही रहता है वह ,
सर्वोत्तम कृति की प्रकृति , समझ ही नहीं पाता है वह ,
उनकी उष्णता , उदासीनता , विद्वता , कुछ समझ नहीं पाता ,
उनके बीच तो जैसे खुद को भी खो देता है वह,
भटका, उदास पाता है वह, दुखी हो जाता है वह।
जल्दी ही दूर कहीं प्रकृति की सूनी गोद में लौट जाता है वह,
वहीं सुकून पाता है वह ,
वहीं सुकून पाता है वह ॥


मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 771

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 15, 2015 at 11:35pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , दर्शन क्या बस एक प्रश्न है, सारी कायनात से बहुत प्यार है बस कायनात के नूर से वो खुद बहुत दूर है, रचना को समय देने और उस पर सोंचने के लिए आपका आभार। बधाइयों के लिए धन्यवाद , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 15, 2015 at 8:55pm

आदरणीय विजय भाई , बहुत सुन्दर चिंतन , प्रकृति से प्यार पर उसकी कृति से दूरी । लाजवाब रचना हुई है । आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 15, 2015 at 3:37am
आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी, आभार, सादर।
Comment by Hari Prakash Dubey on February 14, 2015 at 9:34am

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर फिर से पढ़ा रचना को , सुन्दर रचना .. //प्रकृति प्रेमी है वह//...//प्रकृति की गोद में ही सुख पाता है//...बस प्रकृति की सर्वोत्त्तम कृति से डरता ,.....
बहुत घबड़ाता है ,...../सर्वोत्तम कृति की प्रकृति , समझ ही नहीं पाता है वह / लाजवाब ..गंभीर दर्शन , हार्दिक बधाई सर ! सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 13, 2015 at 7:58pm
आदरणीय डॉ O आशुतोष मिश्रा जी, रचना आपको पसंद आई , बहुत अच्छा लगा जानकर,आभार,आपकी सद्भावनाओं हेतु ह्रदय से धन्यवाद, सादर।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 13, 2015 at 5:01pm

आदरणीय विजय सर सीधे सादे शब्दों में निहित गहन चिंतन की बात ....वाकई मनुष्य मनुष्य के लिए सबसे बड़ा रहस्य स्वयं है ..न तो मनुष्य दुसरे मनुष्य को ही जानता है  न खुद को ही ..ये रचना मुझे बेहद पसंद आयी इस शानदार रचना के लिए ढेर सारे बढ़ाए सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 13, 2015 at 6:36am
आदरणीय डॉ O गोपाल नारायण जी, रचना आपको अच्छी लगी , लेखन सार्थक हुआ, आपकी अनेक प्रशस्तियों के लिए बहुत बहुत आभार , आपकी शुभ कामनाओं के लिए धन्यवाद , सादर।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 12, 2015 at 6:55pm

विजय सर !

आपकी इस रचना में  between the lines  बहुत कुछ अन्तर्हित है  i निम्नांकित पंक्तियो ने तो मेरे  पाठक मन को झकझोर कर रख  दिया i अनिवर्चनीय  रचना है यह i सादर i

बस प्रकृति की सर्वोत्त्तम कृति से डरता ,
बहुत घबड़ाता है ,
उनसे कुछ दूर ही रहता है वह ,
सर्वोत्तम कृति की प्रकृति , समझ ही नहीं पाता है वह

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 12, 2015 at 12:11pm
रचना आपके अन्तर्मन तक पहुंची , यह रचना की सार्थकता है, और मेरा सौभाग्य। आपकी प्रशस्ति हेतु आभार, आदरणीय राजेश कुमारी जी, बधाई हेतु ह्रदय से बहुत बहुत धन्यवाद, सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 12, 2015 at 12:01pm

बस प्रकृति की सर्वोत्त्तम कृति से डरता ,------बस यही एक पंक्ति इस रचना को विस्तार देती है ,जब इंसान प्रकृति से इतना प्यार करता है तो सर्वोत्तम कृति अर्थात इंसान ....को समझ नहीं पाता ,इंसानियत क्या है ?आज वो भ्रमित है रास्ता भटक गया है ,उसका अंत तो प्रकृति में ही विलीन होना तय है ...बहुत गहन उन्नत भाव से गुंथी रचना ..जिसके लिए हार्दिक बधाई आ० डॉ० विजय शंकर जी  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
17 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
Sunday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service