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अपनी ही परछाई से डर लगता है

मुझको इस तन्हाई से डर लगता है

 

साथ देखकर भाईयों का जग डरता

भाई को अब भाई से डर लगता है

 

मनमोहक है भोलापन उसका इतना

दुनिया की चतुराई से डर लगता है

 

मौन रहूं या झूठ कहूं उलझन में हूं

लोगों को सच्चाई से डर लगता है

 

सारा जीवन सहराओं में भटका हूं

मुझको अब अमराई से डर लगता है

 

कानों में इक सिसकी सीसा घोल गई

मुझको अब शहनाई से डर लगता है

 

ग़म की धूप गई झुलसा इतना मन को

अब सुख की जुन्हाई से डर लगता है

 

साथ निभाऊं शेरों का बेख़ौफ़ मगर

भेड़ों की अगुवाई से डर लगता है

 

सीपी से मन बहलाना है मजबूरी

सागर की गहराई से डर लगता है

 

दूर हमेशा रहा बुराई से लेकिन

कभी कभी अच्छाई से डर लगता है

 

सदियों से क्यूं बाले हो ‘खुरशीद’ जिगर ?

‘क्यूं कि मुझे कजलाई से डर लगता है’

 जुन्हाई= चाँदनी 

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 528

Comment

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Comment by Hari Prakash Dubey on December 25, 2014 at 6:10pm

आदरणीय खुरशीद खैरादी जी.....बहुत खूब कह दिया आपने 

दूर हमेशा रहा बुराई से लेकिन

कभी कभी अच्छाई से डर लगता  है....हार्दिक बधाई !

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 25, 2014 at 12:27pm

खुरशीद जी

क्या कहूं i ऐ मेरे जाने गजल  i

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 25, 2014 at 11:21am
साथ निभाऊं शेरों का बेख़ौफ़ मगर
भेड़ों की अगुवाई से डर लगता है ।
दूर हमेशा रहा बुराई से लेकिन
कभी कभी अच्छाई से डर लगता है ।
क्या खूब कहा है। बहुत बढ़िया ग़ज़ल बानी है , आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी , बधाई , सादर।
Comment by Shyam Narain Verma on December 25, 2014 at 10:18am

आपको इस उम्दा ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 25, 2014 at 9:58am

बहुत सुंदर ग़ज़ल है जनाब बहुत बहुत बधाई हो आपको

Comment by gumnaam pithoragarhi on December 25, 2014 at 9:06am

साथ देखकर भाईयों का जग डरता

भाई को अब भाई से डर लगता है

 

हर एक शेर कमाल हुआ है वाह वाह

Comment by ajay sharma on December 24, 2014 at 10:33pm

bahut hi umda gazal 

Comment by somesh kumar on December 24, 2014 at 8:49pm

आप की इस गज़ल के लिए शब्द नहीं मिल रहे ,बस इतना कहना चाहूँगा ,डर के आगे जीत है और अंधरे के बाद उजाला ,खुसुरत गज़ल पे दिल से दाद 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 24, 2014 at 8:02pm

मौन रहूं या झूठ कहूं उलझन में हूं

लोगों को सच्चाई से डर लगता है

बेहतरीन ग़ज़ल की हार्दिक शुभकामनायें 

Comment by Rahul Dangi Panchal on December 24, 2014 at 7:08pm
मनमोहक है भोलापन उसका इतना
दुनिया की चतुराई से डर लगता है

वाह वाह वाह बहुत सुन्दर ! आदरणीय!

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