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सड़क भी अब मुझसे तेज दौड़ती है

तुम

मेरी प्रतीक्षा करना

उस मोड़ पर

मुड जाता है जो

मेरे घर की ओर

मैं दौड़ कर पहुचुंगा

तब भी

जबकि मैं जानता हूँ

सड़क भी अब

मुझसे तेज दौड़ती है !!

मेरी आवाज़ सुन लेना

ग़र मैं पुकार न सकूं

मेरा दर्द महसूस करना

ग़र मैं कराह न सकूं !!

मैं इतना साहसी नहीं

छीन सकूं दुनिया से तुम्हें

इतना कमजोर भी नहीं 

की विद्रोह न कर सकूं

तुम्हे पाने के लिए

तुम

मेरी प्रतीक्षा करना

उस मोड़ पर

मुड जाता है जो

मेरे घर की ओर

मैं दौड़ कर पहुचुंगा

तब भी

जबकि मैं जानता हूँ

सड़क भी अब

मुझसे तेज दौड़ती है !! 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by Hari Prakash Dubey on November 13, 2014 at 9:29pm

प्रोत्साहन के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय राजेश कुमारी जी !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 13, 2014 at 9:02pm

बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति ...बधाई आपको हरिप्रकाश जी .

Comment by Hari Prakash Dubey on November 13, 2014 at 12:26pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय श्री डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 13, 2014 at 11:24am

बेहतरीन  आदरणीय दुबे जी

सड़क भले आपसे तेज दौडती है  पर् रेस  में कछुआ  बाजी मार गया i

Comment by Hari Prakash Dubey on November 12, 2014 at 9:47pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय श्री सुनील जी ।

Comment by shree suneel on November 12, 2014 at 9:17pm
Shandaar rachanayen aapki taraf se aa rahin hain Hari prakash jee. Badhaiyaan..
Comment by Hari Prakash Dubey on November 12, 2014 at 7:24pm

आदरणीय श्री सुशील सरना  जीआपका हार्दिक आभार  

Comment by Sushil Sarna on November 12, 2014 at 7:05pm

बहुत ही सुंदर मनोभावों की रचना …हार्दिक बधाई आदरणीय 

Comment by Hari Prakash Dubey on November 12, 2014 at 12:50pm

आदरणीय विजय निकोर जी आपका हार्दिक आभार ,प्रणाम 

Comment by vijay nikore on November 12, 2014 at 12:43pm

इस अच्छी रचना के लिए बधाई

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