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ग़ज़ल,,,,,,,,,,,,,,,,,,, गुमनाम पिथौरागढ़ी

२१२ २१२ २१२ २१२

हो रहा है मुझे ये वहम देखिये

आज क़ातिल की भी आँख नम देखिये

आधुनिकता के ऐसे नशे में हैं गुम

नौजवानों के बहके क़दम देखिये

पसरा है नूर सा कमरे में हर तरफ

आये हैं घर पे मेरे सनम देखिये

शहर लगता है शमशान सा इन दिनों

आस्तीनों में किसके है बम देखिये

नाम तेरा लिखा था मैंने इक ही बार

महके उस रोज से ही क़लम देखिये

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by saalim sheikh on September 16, 2014 at 1:50pm

बहुत सुन्दर गजल  ! बधाई  सादर !

Comment by gumnaam pithoragarhi on September 15, 2014 at 6:10pm

dhanywaad dosto .................. aapka saath hamesha prerana deta hai,,,,,,,,,,,,,,,,,,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 15, 2014 at 4:44pm

बढ़िया ग़ज़ल , आदरणीय गुमनाम भाई , आपको दिली बधाइयाँ |

Comment by Pawan Kumar on September 14, 2014 at 3:11pm

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति  ... बधाई सादर!

Comment by ram shiromani pathak on September 14, 2014 at 2:29pm

हो रहा है मुझे ये वहम देखिये

आज क़ातिल की भी आँख नम देखिये//////////waah

नाम तेरा लिखा था मैंने इक ही बार

महके उस रोज से ही क़लम देखिये//waah waah waah 

bahutr hi zordaar gazal gumnaam bhai,,,,,,,,,,,,bahut bahut badhai apko

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on September 13, 2014 at 10:33am

sunder gazal badhai

Comment by Shyam Narain Verma on September 13, 2014 at 10:07am
सुन्दर गज़ल .... सादर बधाई.....
Comment by gumnaam pithoragarhi on September 12, 2014 at 8:33pm

namaskaar dosto.............. aapne saraha koshish safal hui...............................

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 12, 2014 at 4:38pm

पसरा है नूर सा कमरे में हर तरफ

आये हैं घर पे मेरे सनम देखिये...आदरणीय लक्ष्मण जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के इस शेर के लिए बिशेस रूप से बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 12, 2014 at 1:53pm
नाम तेरा लिखा था मैंने इक ही बार
महके उस रोज से ही क़लम देखिये
बात है , कुछ लाजवाब है , बधाई इस ग़ज़ल के लिए आदरणीय गुमनाम पिथौरागढ़ी जी .

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