For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-112 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-112
विषय : सच-झूठ/सच्चा-झूठा
अवधि : 30-07-2024 से 31-07-2024 
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, 10-15 शब्द की टिप्पणी को 3-4 पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाए इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.    
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सकें है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)

Views: 341

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

सच्चा झूठा

आज मिश्राजी का जन्मदिन था और इत्तेफ़ाक से रविवार का दिन भी था। हमेशा की तरह इस रविवार भी मिश्रा जी ने अपने दोनों जुड़वा बेटों अनिकेत और बाबुल को बारी बारी बुलाकर सौ सौ रुपए दिए और एक ही सामान लेने दुकान पर भेज दिया। ऐसा मिश्राजी हर रविवार करते थें।

हमेशा की तरह अनिकेत ने सामान लाकर पिता के हाथ में रख दिया और बाकी बचे दस रुपए पिताजी को लौटा दिए। बाबुल भी वही सामान लेकर आया लेकिन हमेशा की तरह बाकी के पैसे पिता को नहीं लौटाए। 

मिश्रा जी समझ गए थे कि जो सामान अनिकेत 90 रुपए में लाकर दस रुपए लौटा देता है, वही सामान लाने पर बाबुल पैसे कभी नहीं लौटाता। आज मिश्रा जी ने जन्म दिन के शुभ अवसर पर दोनों बच्चों को सीख देने के लिए बुलाया।

दोनों बच्चे आएं और पिता के पास बैठ गए। बाबुल एक सुंदर सा पेन खरीद लाया था जिसे मिश्रा जी को देकर बोला 'हैप्पी बर्थडे पापा।'

मिश्रा जी उस मंहगे पेन को देखते रहे और बिल्कुल भूल गए कि उन्हें बच्चों को क्या सीख देनी थी।

मौलिक एवं अप्रकाशित

आदाब मंच। हार्दिक बधाई प्रदत्त विषयांतर्गत बेहतरीन रचना के साथ गोष्ठी का बढ़िया आग़ाज़ करने हेतु मुहतरम जनाब मिथिलेश वामनकर साहिब।  अंतिम चार पंक्तियों को किसी दूसरे तरीके से पेश करके लेखकीय अभिव्यक्ति और विवरण को टाला जा सकता है। यहां कथनोपकथन में झकझोरने वाली बात या चिंतन उत्पादक पंच समेटा जा सकता है मेरे विचार से।

//मिश्रा जी समझ गए थे कि जो सामान अनिकेत 90 रुपए में लाकर दस रुपए लौटा देता है, वही सामान लाने पर बाबुल पैसे कभी नहीं लौटाता।//

(इसकी ज़रूरत नहीं है। यह भाव कथनोपकथन में दिया जा सकता है)

//आज मिश्रा जी ने जन्म दिन के शुभ अवसर पर दोनों बच्चों को सीख देने के लिए बुलाया।//- (यह कथन बोधकथा की ओर ले जा रहा है रचना को मेरे विचार से)

//दोनों बच्चे आएं (आये) और पिता के पास बैठ गए।// - इस वाक्य की आवश्यकता नहीं लगती

//मिश्रा जी उस मंहगे पेन को देखते रहे और बिल्कुल भूल गए कि उन्हें बच्चों को क्या सीख देनी थी।// - यह भी लेखकीय अभिव्यक्ति लगती है इसे किसी झकझोरने वाले कथनोपकथन में बदला जा सकता है मेरे विचार से।

मेरी समझ अनुसार।

आदरणीय उस्मानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आपके सुझाव अनुसार पुनः प्रयास करता हूं। सादर।

इसी कथ्य को किसी दूसरी शैली में भी ढाला जा सकता है ..जैसे पिता द्वारा अपनी डायरी में इसका जिक्र करना,या किसी मित्र को पत्र में जिक्र करना या टेलीफोन में बताना..कई बार शैली के बदलाव से भी सामान्य दिख रहे कथानक में उठान आ जाता है

आदरणीया प्रतिभा जी, सुझाव हेतु हार्दिक आभार। आपके सुझाव अनुसार पुनः प्रयास करता हूं। सादर

आदरणीय मिथिलेश जी

आपकी कुशल कलम को  लघुकथा पर भी चलते देखना अच्छा लगता है।ईमानदारी की सीख देने को तत्पर पिता का अपने उपहार को देखकर असमंजस में आ जाना कि दस रुपये का हिसाब नहीं देने पर डाँटूँ या पैसे बचाकर उपहार खरीदने पर प्यार करूँ...अच्छा भाव है.. हार्दिक बधाई 

आदरणीया प्रतिभा जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार आपका। परिवार के सदस्यों को आपस में जोड़े रखने के लिए कई बार झूठ एक अहम भूमिका निभाता है और मरते रिश्तों के लिए संजीवनी का काम करता है। सादर

आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। सादर

लघुकथा हेतु बधाई आदरणीय मिथिलेश जी।

आदरणीय मनन कुमार सिंह जी हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर 

बोल (लघुकथा) :


चंचल, नटखट कन्नू अपनी मम्मी के पास गया और उसे लाड़ सा करते हुए बोला, "स्कूल में सब टीचर्स कहते हैं हमेशा सच बोलना चाहिए, झूठ कभी नहीं बोलना चाहिए।"
"हॉं, ये तो अच्छी बात है सीखने की। लेकिन तुम परेशान से क्यों दिख रहे हो?" मॉं ने उसके चेहरे की उदासी पढ़ते हुए कहा।
"मम्मी तुम यह बताओ, क्या मुझे प्यार करने वाली दादी मुझसे झूठ भी तो बोल सकती है न?"
"क्यों? ऐसा क्या बोल दिया उन्होंने, बेटू?"
"पहले तुम यह बताओ कि गुस्से में सच निकलता है या झूठ?"
"गुस्से में तो इंसान कुछ भी बोल सकता है!"
"तो फ़िर दादी ने गुस्से में झूठ ही बोला होगा!"
"सीधे-सीधे बता न, क्या बोल दिया उन्होंने तुमसे?"
"आज तो वो बहुत ही गुस्से में थीं मम्मी!"
"तो?"
"वो मुझसे बोलीं...!" इतना ही कहकर कन्नू सिसकने लगा।
"बेटा, बता तो सही.. क्या कहा उन्होंने?"
"कितनी बदतमीज़ औलाद पैदा हुई है! ये कहा मुझसे!" मॉं के पल्लू में चेहरा छिपा कर कन्नू रोने लगा।


(मौलिक व अप्रकाशित)

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा पंचक - राम नाम
"वाह  आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत ही सुन्दर और सार्थक दोहों का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
yesterday
दिनेश कुमार posted a blog post

प्रेम की मैं परिभाषा क्या दूँ... दिनेश कुमार ( गीत )

प्रेम की मैं परिभाषा क्या दूँ... दिनेश कुमार( सुधार और इस्लाह की गुज़ारिश के साथ, सुधिजनों के…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

दोहा पंचक - राम नाम

तनमन कुन्दन कर रही, राम नाम की आँच।बिना राम  के  नाम  के,  कुन्दन-हीरा  काँच।१।*तपते दुख की  धूप …See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"अगले आयोजन के लिए भी इसी छंद को सोचा गया है।  शुभातिशुभ"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका छांदसिक प्रयास मुग्धकारी होता है। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह, पद प्रवाहमान हो गये।  जय-जय"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी, आपकी संशोधित रचना भी तुकांतता के लिहाज से आपका ध्यानाकर्षण चाहता है, जिसे लेकर…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई, पदों की संख्या को लेकर आप द्वारा अगाह किया जाना उचित है। लिखना मैं भी चाह रहा था,…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए है।हार्दिक बधाई। भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ । "
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, हार्दिक धन्यवाद  आभार आपका "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service