For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-127

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 127वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब इरफ़ान सिद्दीक़ी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"क्या नदी जिस में रवानी हो न गहराई हो "

2122           1122            1122                22

फ़ाइलातुन   फ़इलातुन      फ़इलातुन           फ़इलुन/फ़ेलुन

बह्र:  रमल मुसम्मन् मख्बून मक्तुअ रूप

रदीफ़ :-  हो
काफिया :- आई( गहराई, रुसवाई, बीनाई, तमाशाई, शानसाई, आई, गाई, खाई  आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 22 जनवरी दिन शुक्रवार  को हो जाएगी और दिनांक 23 जनवरी दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 22 जनवरी दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 8150

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आ. भाई तस्दीक अहमद जी, सादर अभिवादन । उत्साहवर्धन के लिए आभार ।

दौर ऐसा न समय हमको दिखाये भगवन
इस तरफ गहरा  कुआँ और उधर खाई हो......

आ. धामी जी, अच्छी गजल के लिए हार्दिक बधाई।

2122 1122 1122 22
जिनके चेहरे पे क़शिश जुल्फ़ में रानाई हो
काश उनसे भी मेरी थोड़ी शनासाई हो ।।1

लफ़्ज़ ख़ामोश रहें दिल की बात हो दिल से।
रब करे उसकी मुहब्बत में ये गहराई हो ।।2

चाँद छूने की तमन्ना तो हो जाए पूरी ।
मेरी चाहत पे अगर आपकी बीनाई हो ।।3

वो तबस्सुम ,वो नज़ाक़त ,वो अदाएं उसकी ।
हूर कोई जमीं पर जैसे उतर आई हो ।।4

ऐसे हालात में मुमकिन है भला वस्ल कहाँ।
हो कुँआ मेरी तरफ़ उसकी तरफ़ खाई हो ।।5

हाले दिल जान के यूँ मुस्कुरा के चल देना ।
तुम भी औरों की तरह एक तमाशाई हो ।।6

वफ़ा वो इतनी किफ़ायत से यहाँ करते हैं ।
वक्त आ जाए तो इस क़र्ज़ की भरपाई हो ।।7


मुँह छुपा कर वो निकलते हैं इसी कूचे से ।
ऐसा लगता है किसी बात से रुसवाई हो ।।8

इस कदर ग़म है मेरे साथ यहाँ मुद्दत से ।
जैसे हर रस्म निभाने की कसम खाई हो ।।9


इतने शिकवे गिले हैं आशिक़ों की कौन सुने ।
अब अदालत में कहीं इश्क़ पे सुनवाई हो ।।10

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

आ. भाई नवीन जी , सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। लेकिन गिरह नदारत है देखिएगा। हार्दिक बधाई स्वीकारें ।

इतने शिकवे गिले हैं आशिक़ों की कौन सुने ।
अब अदालत में कहीं इश्क़ पे सुनवाई हो....................आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी, सुंदर सृजन के लिए बधाई स्वीकार करें।

आदरणीय भाई Naveen Mani Tripathi जी
सादर अभिवादन
एक शानदार तरही ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल करें। साँतवे शैर में टंकण त्रुटि है वो वफ़ा---- होना चाहिए और गिरह का मिसरा भी नदारद है।

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

'जिनके चेहरे पे क़शिश जुल्फ़ में रानाई हो '

इस मिसरे में 'क़शिश' को ''कशिश" लिखें,पहले भी बता चुका हूँ ।

'लफ़्ज़ ख़ामोश रहें दिल की बात हो दिल से'

ये मिसरा बह्र में नहीं है, देखियेगा ।

'हूर कोई जमीं पर जैसे उतर आई हो'

इस मिसरे में 'ज़मीं' शब्द को 11 पर लेना उचित नहीं,देखियेगा ।

'वफ़ा वो इतनी किफ़ायत से यहाँ करते हैं'

इस मिसरे में आपने 2122 को 1122 पर लेने का फ़ाइदा लिया है,लेकिन आपकी जानकारी के लिये बता दूँ कि 'वफ़ा' शब्द को 11 पर लेना उचित नहीं,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-

'वो वफ़ा इतनी किफ़ायत से यहाँ करते हैं'

और सबसे अहम बात, आपने मंच के नियमानुसार तरही मिसरे पर गिरह नहीं लगाई है?

आ0 कबीर सर सादर नमन । बहुत अच्छी इस्लाह हो गयी है सर । कमियों को अवश्य दूर करता हूँ ।पुनः सादर आभार ।

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी नमस्कार। बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई बधाई।पाँचवा बहुत पसंद आया।

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी अच्छी ग़ज़ल कहने के लिए बधाइयां अमृतसर की बातों पर गौर फरमाएं

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का उम्दा प्रयास है बधाई स्वीकार करें, मंच के नियमानुसार तरही मिसरे पर गिरह नहीं लगाई गई है। सादर। 

बहुत खूब आदरणीय ।4थां शे'र बहुत अच्छा है।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)
"आ. अजय जी इस बहर में लय में अटकाव (चाहे वो शब्दों के संयोजन के कारण हो) खल जाता है.जब टूट चुका…"
8 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. सौरभ सर .ग़ज़ल तक आने और उत्साहवर्धन करने का आभार ...//जैसे, समुन्दर को लेकर छोटी-मोटी जगह…"
48 minutes ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।  अब हम पर तो पोस्ट…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service