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"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-121

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-121 

विषय - "एक से इक्कीस"

आयोजन अवधि- 14 नवम्बर 2020, दिन शनिवार से 15 नवम्बर 2020, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.

ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 14 नवम्बर 2020, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

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ई. गणेश जी बाग़ी 
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
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ओ बी ओ लाइव महोत्सव में आपकी प्रतीक्षा है ....

अस्तगामी सूर्य ,
समेटते किरणें ,
चिन्तित बड़ा था ..
सन्मुख
विजय गर्व मत्त
खिलखिलाताअन्धेरा
खड़ा था....
तभी .
दीपक एक
जल उठा
किसी कुटीर द्वार से ...
अंधेरे को जैसे पस्त करता
सूर्य को आश्वस्त करता
निश्चिंत जाओ ,प्रियवर
दायित्व तेरा मेरी धरोहर ,
राह को खोने न दूंगा ,
मैं अंधेरा होने न दूंगा ,
ज्योति की ज्वाला उठाए ,
कल सुबह तक "मैं "जलूंगा ...।।।।

मौलिक व अप्रकाशित

अतुकांत कविता 

बदलाव की दरकार.....

कठिन समय संत्रास-त्रासदी भरा

घिर आई दुःख की कारी बदरिया

उमंगों,उत्साह,प्रेम से रीता जीवन

भावहीन होकर मौन हो गया

हताशाभरी राहें,दहशत ने डेरा डाला

चपेटता मन को आशंकाओं भरा तूफान

समय मांगता,नव शैली सृजन कर

कोरे जीवन के आसमान के केनवास पर

उम्मीद की कड़कती दामिनी से रौनक देकर

अनुरामयी नीर मेघों से हर्षोल्लास की बारिश से

खुशहाली का इंद्र्धनुष निर्मित कर

थम गया जो अनवरत जीवनक्रम.......

सुप्त विचारों को कर उद्धेलित

जाग्रत कर अन्तर्मन के मृतप्राय संघर्ष को

लक्षयप्राप्ति में अश्वदौड़ का धावक बन ....

तभी जीवन की शाश्वता सिद्ध होगी........

सार्थक होगा निरर्थक जीवन........

बदलाव की दरकार हैं......

समझदारी से पग-पग आगे बढ़कर....

परिलक्षित हुये बुझे ज्ञान से गुलजार कर.....

ठहरी साँसों में नव ऊर्जा संचरित कर

जीवन को नया आयाम देने का......

अपनत्व का रंग बिखेरने का.......

एक नया अस्तित्व गढ़ने का......

स्वरचित व अप्रकाशित ।

बबीता गुप्ता 

कुछ् रचनाये भाव से इतनी भारी होती है कि स्वतः ब ह्ती है पढनी नही पडती // आपकी ये रचना भी ऐसी ही है 

आ. बबीता बहन, अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

गजल


२१२२/२१२२/२१२२/२१२


छोड़ कर रिश्ते ज़माना एक से इक्कीस हो
भर रहा केवल ख़जाना एक से इक्कीस हो।१।
*
सादगी रिश्ते  न  छोड़े  तो  सयाना  मैं नहीं
दे दिया उस ने भी ताना एक से इक्कीस हो।२।
*
काम वैसे है सियासत  का जगाना नेह पर
भा गया नफरत उगाना एक से इक्कीस हो।३।
*
जब तलक पायी नहीं सँस्कार की तालीम ये
कब हुआ मानव सयाना एक से इक्कीस हो।४।
*
स्वर्ण की नगरी बसायी बस हवस के वास्ते
है किसे यह स्वर्ण खाना एक से इक्कीस हो।५।
*
दीप से  जुड़  दीप  रचते  हैं  यहाँ दीपावली
पर मनुज ने गुर न जाना एक से इक्कीस हो।६।
*
मौलिक व अप्रकाशित

बेहतरीन लक्ष्मण जी बहुत खूबसूरत  

आ. भाई अरूण जी, रचना पर उपस्थिति व सराहना के लिए धन्यवाद।

अतुकांत कविता.....

एक से इक्कीस

दीपावली की वेला है

एक से इक्कीस भले

दीप से दीप जले !

राजा से रंक भले

दुःख को समझते हैं

पड़ौसी का बारिश में उड़ा छप्पर

बालक ही उठा लाते हैं,

बड़ो के सहयोग से

दोबारा रखवाते हैं...!

आवारा है.....

पर गरीबों के मसीहा हैं,

बेचारे..........!

सूरज के निकलने से

धूप के उनसे मुँह चुराने तक

अमावस की कालिमा में

चिराग जलाते हैं ।

कोरोना के अंतहीन गहरे अँधियारें में

भूखे नंगे मीलों चलकर थके - हारे मजबूर

प्यासे........

वन्देमातरम गाते हैं....

सूखे कुँए में छलाँग लगाते हैं,

आँखों से औझल हो जाते है...

एक से शुरु हो इक्कीस तक,

मानव-श्रंखला बन जाती है.....

तब कही जाकर सरकार जाग पाती है।

मौलिक एवं अप्रकाशित

आ. भाई चेतन प्रकाश जी, अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

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आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

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