For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-116

विषय - "हम और हमारे"

आयोजन अवधि- 13 जून 2020, दिन शनिवार से 14 जून 2020, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.

ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 13 जून 2020, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें

मंच संचालक
ई. गणेश जी बाग़ी 
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम परिवार

Views: 4373

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

अतुकांत कविता

(हम और हमारे)


कितना आसान है
मानव का
बने रहना
मानव।
परंतु
चाहत
करने की
कुछ बड़ा
बना देती है
दानव
अक्सर ही
उसे।
या फिर
तोड़ देती है
उसे ही
कुछ भी
न बन पाने की
कातिल कसक।
देखकर
बनता दानव
या फिर
टूटता मानव
सालता है
सवाल?
कहाँ जा रहे हैं
हम
और
हमारे
संस्कार।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

सुन्दर भावाभिव्यक्ति! हार्दिक बधाई आदरणीय

आद0 गंगाधर शर्मा हिंदुस्तान जी सादर अभिवादन। बेहतरीन विषयानुरूप सृजन पर बधाई स्वीकार कीजिये।

आदरणीय गंगा धर शर्मा जी सादर, बिलकुल ही चिंता का विषय है, भौतिकता का इसतरह इंसान पर भारी होना. जो कि मानव को दानव बना दे या गर्त में धकेल दे. प्रदत्त विषय पर सुंदर अतुकांत रचना आपकी. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर 

आदरणीय गंगाधरजी

गलत संस्कार से युक्त या असंस्कारित मानव दानव ही होता है। उस पर हमारी गलत शिक्षा पद्धति

हृदय से बधाई इस प्रस्तुति के लिए

आदरणीय गंगाधर शर्मा जी चंद शब्दों में आपने बहुत बड़ी बात पिरो दिया,अर्थात गागर में सागर भर दिया, बहुत बहुत बधाई

प्रदत्त विषय पर सुंदर व सार्थक सृजन के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गंगाधर शर्मा जी।

पसर रहा है मौन पलक पर, सपनों नें चादर तानी है
अपने ही घट भीतर बहती, श्वास-श्वास तक अनजानी है
अंतर के सम्वेगों को सब
रटा-रटाया बिसर रहा है,
दूर क्षितिज पर उभर रहा है, सत्य ! कौन हम ? कौन हमारे ?
चिर विछोह में शापित क्रंदन तड़प-तड़प कर किसे पुकारे ?
दूर क्षितिज पर उभर रहा है...

छल नातों के फिर-फिर रचते भाव भूमि पर अग्नि परीक्षा
और कोंचते कंटक-पथ पर पग-यात्रा की करें समीक्षा
पल में उलटें पल में पलटें चित भी उनकी पट भी उनकी
झूठ-झूठ जीते हैं प्रतिपल, उस पर सच की रट भी उनकी
रिसते घावों को आघाती
नयन अश्रुयों से धो दे पर-
अवचेतन तक आलोड़ित पीड़ाएँ आखिर कौन सँवारे ?
दूर क्षितिज पर उभर रहा है...

जग बंधों में बाँधी मुठ्ठी जब खोली तब रीती पाई
लेकिन उत्तर है अनबूझा, सारी पूँजी कहाँ गवाई
हीरे मोती समझ भाग्य में क्या थे मात्र बुलबुले टाँके
या फिर बस रेतीले कण थे जो मणियों सम हमने आँके
स्वर्ण ढेरियाँ राख सरीखी
भ्रम टूटा तब तद्क्षण त्यागीं
आनन्दित उन्मुक्त हृदय से बहते चले अश्रु के धारे
दूर क्षितिज पर उभर रहा है...

मन में पूजित छद्म देव की प्रतिमा कण-कण चटक रही है
बद्ध प्राण को अनुबन्धों की सीमा रेखा खटक रही है
सन्धिपत्र पर अंकित थीं जो घुलने लगीं सन्धियाँ सारी
पीड़ाओं की भस्म रमाकर खुलने लगीं ग्रन्थियाँ सारी
और समय की वक्ष-स्थली पर
निश्छल निर्मल निर्झर निर्झर
मीठे स्रोते फूट रहे हैं, सूख रहे हैं सागर खारे
दूर क्षितिज पर उभर रहा है...

(मौलिक और अप्रकाशित)

आदरणीया प्राची सिंह जी, उत्तम बिम्ब सृजित किए हैं। अनुपम गीत हुआ है। सादर हार्दिक बधाई

आद0 प्राची सिंह जी सादर अभिवादन। बढ़िया बिम्म प्रतिबिंबित हुए हैं इस रचना में। बहुत बहुत बधाई आपको

आदरणीया डॉ. प्राची सिंह जी सादर नमस्कार, प्रदत्त विषय पर रिश्ते-नातों, संस्कारों की समीक्षा करता सुंदर चिंतनपरक गीत रचा है आपने. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर 

आदरणीया प्राचीजी

आपकी यह रचना सचमुच हृदय से निकली है यह आध्यात्मिक जीवन की शुभ शुरुवात है। यह श्मशान वैराग्य नहीं है यह श्री राधेकृष्ण या अपने ईष्ट को पाने की राह में सार्थक कदम है। पारिवारिक कर्तव्यों को निभाते हुए भी हम इस मार्ग पर आगे बढ़ते जाएँ भले ही गति धीमी रहे तो ईश्वर के साक्षात दर्शन इसी जन्म में ही सम्भव हो जाए।

इस रचना को ओबीओ से जुड़े सभी सक्रिय सदस्यों को पढ़ना चाहिए।

हृदय से बारम्बार बधाई आभार इस विचारणीय प्रस्तुति के लिए।

और समय की वक्ष-स्थली पर ...... रचना में जो प्रवाह है इस पँक्ति में बाधित है। रचना को तीन बार पढ़ने के बाद आपको सुझाव देने की गलती कर रहा हूँ।

1... अविगत समय के वक्ष-स्थल पर

2... और समय के वक्ष-स्थल पर  [मात्रा कम होगी पर प्रवाह बाधित नहीं है]

सादर

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय रवि भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो  कर  उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. नीलेश भाई , ग़ज़ल पर उपस्थिति  और  सराहना के लिए  आपका आभार  ये समंदर ठीक है,…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"शुक्रिया आ. रवि सर "
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. रवि शुक्ला जी. //हालांकि चेहरा पुरवाई जैसा मे ंअहसास को मूर्त रूप से…"
3 hours ago
Ravi Shukla commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"वाह वाह आदरणीय नीलेश जी पहली ही गेंद सीमारेखा के पार करने पर बल्लेबाज को शाबाशी मिलती है मतले से…"
3 hours ago
Ravi Shukla commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु भाई ग़ज़ल की उम्दा पेशकश के लिये आपको मुबारक बाद  पेश करता हूँ । ग़ज़ल पर आाई…"
3 hours ago
Ravi Shukla commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय अमीरूद्दीन जी उम्दा ग़ज़ल आपने पेश की है शेर दर शेर मुबारक बाद कुबूल करे । हालांकि आस्तीन…"
3 hours ago
Ravi Shukla commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय बृजेश जी ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिये बधाई स्वीकार करें ! मुझे रदीफ का रब्त इस ग़ज़ल मे…"
3 hours ago
Ravi Shukla commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"वाह वाह आदरणीय  नीलेश जी उम्दा अशआर कहें मुबारक बाद कुबूल करें । हालांकि चेहरा पुरवाई जैसा…"
3 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय  गिरिराज भाई जी आपकी ग़ज़ल का ये शेर मुझे खास पसंद आया बधाई  तुम रहे कुछ ठीक, कुछ…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. गिरिराज जी मैं आपकी ग़ज़ल के कई शेर समझ नहीं पा रहा हूँ.. ये समंदर ठीक है, खारा सही ताल नदिया…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. अजय जी "
5 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service