For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122 1122 1122 22

दिल सलामत भी नहीं और ये टूटा भी नहीं ।
दर्द बढ़ता ही गया ज़ख़्म कहीं था भी नहीं ।।

काश वो साथ किसी का तो निभाया होता ।
क्या भरोसा करें जो शख़्स किसी का भी नहीं ।।

क़त्ल का कैसा है अंदाज़ ये क़ातिल जाने ।
कोई दहशत भी नहीं है कोई चर्चा भी नहीं ।।

मैकदे में हैं तेरे रिंद तो ऐसे साक़ी ।
जाम पीते भी नही और कोई तौबा भी नहीं ।।

सोचते रह गए इज़हारे मुहब्बत होगा ।
काम आसां है मगर आपसे होता भी नहीं ।।

वो बदल जाएंगे इकदिन किसी मौसम की तरह।
इश्क से पहले कभी हमने ये सोचा भी नहीं ।।

रूठ कर जाने की फ़ितरत है पुरानी उसकी ।
मैंने रोका भी नहीं और वो रुकता भी नहीं ।।

कोशिशें कुछ तो ज़रा कीजिए अपनी साहब ।
मंज़िलें ख़ुद ही चली आएंगी ऐसा भी नहीं ।।

हिज्र के बाद भी दिल में रही इतनी सी ख़लिश ।
हाले दिल आपने मेरा कभी पूछा भी नहीं ।।

मौलिक अ प्रकाशित

--नवीन मणि त्रिपाठी

Views: 634

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dimple Sharma on June 13, 2020 at 3:29pm

आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी नमस्ते , एक सवाल था जैसा की आपने इस बहर के विषय में बताया तीसरी छूट के अनुसार एक लघु अलग से ले सकते हैं तो मेरा सवाल है कि क्या ये हर मिसरे पर कर सकते हैं या पूरी ग़ज़ल के एक ही मिसरे पर ये छूट है ? कृप्या मार्गदर्शन करें।

Comment by Dimple Sharma on June 13, 2020 at 3:25pm

आदरणीय नवीन जी नमस्ते ,इस खुबसूरत ग़ज़ल पर बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 9, 2020 at 3:59pm

आ. भाई नवीन जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on June 9, 2020 at 11:29am

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, 'फ़िराक़' साहिब की ज़मीन में ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।

बाक़ी जनाब रवि भसीन जी बता ही चुके हैं ।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 8, 2020 at 4:23pm

आदरणीय रवि भसीन 'शाहिद' साहिब, आदाब ।

बहूर के विषय में दी गई अद्भुत जानकारी के लिए आपका हार्दिक आभार। 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 8, 2020 at 4:20pm

आदरणीय सालिक गणवीर साहिब, आदाब।

बहूर के विषय में दी गई अद्भुत जानकारी के लिए आपका हार्दिक आभार। 

Comment by सालिक गणवीर on June 8, 2020 at 12:41pm

आदरणीय रवि भसीन 'शाहिद'साहिब

सादर अभिवादन

शंका समाधान के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर.

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 8, 2020 at 12:19pm

आदरणीय सालिक गणवीर साहिब, नमस्कार। जी, रदीफ़ "भी नहीं" दरअस्ल 112 के वज़न पर है। ये बह्रे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ (मक़तू'अ) है, ये मीर साहिब द्वारा इस्तेमाल की गई कुल 28 बुहूर में भी है, और दीवान-ए-ग़ालिब की कुल 19 बुहूर में भी शामिल है। इसमें तीन छूटें ली जा सकती हैं। एक तो पहले रुक्न को 2122 के स्थान पर 1122 ले सकते हैं:
न बँधे तिशनगी-ए शौक़ के मज़्मूँ 'ग़ालिब'
1122 / 1122 / 1122 / 22
गरचे दिल खोल के दरया को भी साहिल बाँधा
2122 / 1122 / 1122 / 22

दूसरी छूट ये है कि आख़िरी रुक्न को 22 के स्थान पर 112 ले सकते हैं:
रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो 'ग़ालिब'
2122 / 1122 / 1122 / 22
कहते हैं अगले ज़माने में कोई मीर भी था
2122 / 1122 / 1122 / 112

तीसरी छूट, जो और भी कई बुहूर में ली जाती है, ये है कि आख़िरी रुक्न में एक लघु अतिरिक्त ले सकते हैं:
मिह्रबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त
2122 / 1122 / 1122 / 22(1)
मैं गया वक़्त नहीं हूँ कि फिर आ भी न सकूँ
2122 / 1122 / 1122 / 112

ग़म-ए-हस्ती का 'असद' किससे हो जुज़-मर्ग इलाज
1122 / 1122 / 1122 / 112(1)
शम्अ' हर रंग में जलती है सहर होते तक
2122 / 1122 / 1122 / 22

Comment by सालिक गणवीर on June 8, 2020 at 7:27am

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी साहिब

सादर अभिवादन

शानदार ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें. आदरणीय 'एक स्पष्टीकरण की उम्मीद है आपसे. ग़ज़ल की बह्र का आखिरी अरकान 22 है मगर रदीफ़ 'भी नहीं'याने 212,क्या इस बह्र में ऐसी छूट मिलती है?

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 7, 2020 at 11:22am

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी साहिब, इस शानदार ग़ज़ल पर दाद और मुबारकबाद क़ुबूल करें। जनाब, पाँचवें शे'र के ऊला का आख़िरी लफ़्ज़ "होगा" होना चाहिए, क्योंकि "इज़हार" पुल्लिंग है:
सोचते रह गए इज़हार-ए-मुहब्बत होगा

आख़िरी शे'र के ऊला के लिए एक सुझाव देना चाहूँगा:
2122 1122 1122 22
वस्ल के बाद भी दिल में रही इतनी सी ख़लिश

आदरणीय, कुछ टंकण त्रुटियाँ दुरुस्त कर लीजिये:
1 ज़ख़्म
2 काश, शख़्स
4 साक़ी
5 आसाँ
6 जाएँगे, इक दिन, इश्क़
8 मंज़िलें, आएँगी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
12 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
3 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service