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जीवन को नर्क नित किया मीठे से झूठ ने - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/२२२/१२१२


भटकन को पाँव की भला कैसे सफर कहें
समझो इसे अगर तो हम लटके अधर कहें।१।
**
गैरों से  जख्म  खायें  तो  अपनों  से बोलते
अपनों के दुख दिये को यूँ बोलो किधर कहें।२।
**
बातें सुधार से  अधिक  भाती  हैं टूट की
दीमक हैं देश धर्म को उन को अगर कहें।३।
**
टूटन  दरो - दीवार  की  करते  रफू  मगर
जाते नहीं हैं छोड़ कर घर को जो घर कहें।४।
**
जाने हुआ है क्या कि सब लगती हैं रात सी
दिखती नहीं है एक भी जिसको सहर कहें।५।
**
जीवन को नर्क नित किया मीठे से झूठ ने
कड़वा भले लगेगा सच अब तो मगर कहें।६।
**
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 8, 2020 at 4:14pm

आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by TEJ VEER SINGH on May 8, 2020 at 12:45pm

हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी ।बहुत बढ़िया गज़ल।

गैरों से  जख्म  खायें  तो  अपनों  से बोलते
अपनों के दुख दिये को यूँ बोलो किधर कहें।२।

बातें सुधार से  अधिक  भाती  हैं टूट की
दीमक हैं देश धर्म को उन को अगर कहें।३।

Comment by सालिक गणवीर on May 7, 2020 at 6:30pm

आदरणीय 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 6, 2020 at 6:42am

आ. भाई सुरेंद्रनाथ जी, सादर आभार ।

Comment by नाथ सोनांचली on May 6, 2020 at 6:10am

आद0 लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन। अच्छी ग़ज़ल कही आपने। बधाई स्वीकार कीजिये।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 4, 2020 at 6:59pm

आ. भाई समर कबीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर आपकी उपस्थिति से उत्साहवर्धन हुआ । हार्दिक आभार ।

Comment by Samar kabeer on May 4, 2020 at 3:15pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।

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