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वक्त मेरे हाथों से, यूँ फिसल गया चुपचाप

212 1222 212 1222

वक्त मेरे हाथों से, यूँ फिसल गया चुपचाप

मेरी हर तमन्ना को, वो कुचल गया चुपचाप

 

चाक दिल, शिकस्ता पा, बेचराग़ गलियों से

भूल अपने ख्वाबों को, मैं निकल गया चुपचाप

 

एक आइना था मैं, कोई वार मौसम का

देखिये मेरी फितरत, ही बदल गया चुपचाप

 

कब तलक बचा रहता, आग थी मेरे अंदर

जलना ही था मुझको तो, देख जल गया चुपचाप

 

साथ खींच कर अपने, दिन को शाम तक देखो

छोड़कर मुझे हैराँ, शम्स ढल गया चुपचाप

 

Meaning:

चाक दिल – जख़्मी दिल, शिकस्ता पा – असहाय, फितरत -  स्वभाव, शम्स – सूरज 

(मौलिक व अप्रकाशित)

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 24, 2017 at 9:02pm

आदरनीय शिज्जु भाई , बहुत शान्दार गज़ल हुई है , सभी अशआर काबिले दाद हैं , बधाइयाँ स्वीकार करें

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 20, 2017 at 9:53pm
वाह आदरणीय बहुत शानदार ग़ज़ल हुई...
Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 20, 2017 at 4:25pm

आदरणीय शिज्जू जी .काफी समय के बाद आपकी रचना के रसास्वादन का सौभाग्य प्राप्त हुआ है आपकी रचनाओं के माध्यम से जहाँ उर्दू के शब्दों की नवीनतम जानकारी मिलती है वही सोच को भी व्यापक आयाम मिलता है नव बर्ष की हार्दिक शुभकामनाये प्रेषित करते हे हार्दिक बधाई प्रेषित कर रहा हूँ /सादर 

Comment by जयनित कुमार मेहता on January 20, 2017 at 5:39am
आदरणीय शिज्जु शकूर जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत की है आपने। बहुत बहुत बधाई आपको।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 19, 2017 at 11:54pm
आदरणीय शिज्जु शकूर साहब,उम्दा गजल के लिए दिली दाद संग मुबारकबाद!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 19, 2017 at 10:52pm

आदरणीय शिज्जू भाई जी, लाज़वाब ग़ज़ल कही है. दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर 

Comment by Samar kabeer on January 19, 2017 at 9:39pm
जनाब शिज्जु शकूर साहिब आदाब,भाई क्या ही उम्दा ग़ज़ल कही है,मज़ा आ गया,दिल ख़ुश कर दिया आपने,वाह बहुत ख़ूब, इस बहतरीन ग़ज़ल के लिये शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

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